महिलाओं पर भी चल सकता है पॉक्सो एक्ट का केस, दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कुछ कहा, जानें

न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि पॉक्सो कानून बच्चियों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है, इसमें ये नहीं कहा गया कि सिर्फ पुरुष ही बच्चे के साथ गलत काम कर सकते हैं।

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महिलाओं पर भी चल सकता है पॉक्सो एक्ट का केस, दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कुछ कहा, जानें

दिल्ली हाईकोर्ट। फोटोः IANS

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई भी महिला बच्चे के साथ यौन उत्पीड़न करने पर पॉक्सो कानून (POCSO) के तहत अपराधी बन सकती है। न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि पॉक्सो कानून बच्चियों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है, इसमें ये नहीं कहा गया कि सिर्फ पुरुष ही बच्चे के साथ गलत काम कर सकते हैं।

अदालत ने कहा कि कानून में 'व्यक्ति' शब्द का इस्तेमाल हुआ है, जिसका मतलब सिर्फ पुरुष नहीं, बल्कि कोई भी हो सकता है। एक महिला भी बच्चे के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में पॉक्सो कानून के तहत मुकदमे का सामना कर सकती है।

किस संदर्भ में हाईकोर्ट न कही यह बात

अदालत का यह फैसला पिछले हफ्ते एक पॉक्सो मामले की आरोपी महिला के कोर्ट में दलील के संदर्भ में आई। जिसमें आरोपी ने कहा था कि वह महिला है इसलिए उसके खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप नहीं लगाए जा सकते। उसने कहा कि कानून में सिर्फ 'वह' शब्द का इस्तेमाल हुआ है, जिसका मतलब सिर्फ पुरुष ही हो सकता है।

इस पर अदालत ने कहा कि कानून में 'व्यक्ति' शब्द का इस्तेमाल हुआ है, जिसका मतलब कोई भी हो सकता है। इसलिए महिला भी इस अपराध के लिए जिम्मेदार हो सकती है।

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पॉक्सो कानून बच्चों को बचाने के लिए, गलत काम चाहे कोई करेः हाईकोर्ट

अदालत ने कहा है कि पॉक्सो कानून की धारा 3 और 5 में बताए गए काम बच्चे के साथ किए गए तो अपराध हैं, चाहे उसे करने वाला पुरुष हो या महिला। कोर्ट ने आगे कहा, पॉक्सो कानून बच्चों को बचाने के लिए बनाया गया था, चाहे बच्चे के साथ गलत काम कोई भी करे। इसलिए कानून में ऐसा कोई मतलब नहीं निकाला जा सकता जो कानून के मकसद के खिलाफ हो।

अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत सर्वनाम "वह" और इसके व्युत्पन्न किसी भी व्यक्ति के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, चाहे वह पुरुष हो या महिला। और पॉक्सो प्रावधान की व्याख्या इस तरह से नहीं की जानी चाहिए कि अपराध केवल पुरुष तक ही सीमित हो।"

अदालत ने कहा,  इस दृष्टिकोण से देखने पर, एकमात्र तर्कसंगत निष्कर्ष यह है कि धारा 3(ए), 3(बी), 3(सी) और 3(डी) में आने वाले सर्वनाम 'वह' की व्याख्या इस तरह से नहीं की जानी चाहिए कि उन धाराओं में शामिल अपराध केवल 'पुरुष' तक ही सीमित हो।

हाईकोर्ट ने कहा है कि यौन उत्पीड़न का मतलब सिर्फ पुरुष के शरीर के किसी हिस्से का इस्तेमाल करके ही नहीं होता है। इस तरह का अपराध किसी भी चीज या शरीर के किसी हिस्से को बच्चे के शरीर में डालने से भी हो सकता है। यहां तक कि मुंह का इस्तेमाल करना भी इस अपराध में आता है। इसलिए ये कहना गलत है कि ये अपराध सिर्फ पुरुषों द्वारा किया जा सकता है।

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