नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मकान मालिक को अपनी संपत्ति के उपयोग का अधिकार देते हुए एक बुजुर्ग दंपत्ति के पक्ष में निर्णय सुनाया है। यह मामला लंबे समय से रह रहे किरायेदार को बेदखल करने से जुड़ा था। अदालत ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए दंपति की याचिका को मंजूरी दी।
इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, दंपति में पति एक वरिष्ठ नागरिक और पूर्व सैनिक हैं। उन्होंने अपनी संपत्ति का एक हिस्सा वापस लेने की मांग की थी, जिस पर 1989 से किरायेदार का कब्जा था।
औपचारिक रूप से यह किरायेदारी 2003 में समाप्त हो गई थी, लेकिन किरायेदार ने यह कहते हुए मकान खाली करने से इनकार कर दिया कि दंपति के पास पहले से ही अपने परिवार और कर्मचारियों के लिए पर्याप्त जगह है।
निचली अदालत ने पहले दंपति की बेदखली याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने दंपति द्वारा प्रस्तुत उनकी चिकित्सा जरूरतों के सबूतों को अपर्याप्त माना।
दिल्ली उच्च न्यायालय की पीठ ने क्या कहा
न्यायमूर्ति तारा वितस्ता गंजू की अध्यक्षता वाली पीठ ने निचली अदालत का फैसला पलटते हुए कहा कि मकान मालिक को अपनी संपत्ति का उपयोग करने का पूरा अधिकार है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किरायेदार मकान मालिक की आवश्यकताओं पर सवाल नहीं उठा सकता।
अदालत ने कहा, “मकान मालिक अपनी जरूरतों का सबसे अच्छा न्याय कर सकता है। यह तय करना न्यायालय का काम नहीं है कि मकान मालिक को किस तरह और कहां रहना चाहिए।” अदालत ने यह भी जोड़ा कि किरायेदार को संपत्ति के उपयोग की शर्तें निर्धारित करने का अधिकार नहीं है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने किरायेदार को परिसर खाली करने को कहा
76 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति की पत्नी भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं। उन्होंने अदालत में अपने कठिन हालात का हवाला दिया, जिसे न्यायालय ने गंभीरता से लिया और उनकी याचिका स्वीकार कर ली।
उच्च न्यायालय ने किरायेदार को परिसर खाली करने के लिए छह महीने की मोहलत दी है। इस फैसले ने मकान मालिकों के अधिकारों को लेकर एक स्पष्ट संदेश दिया है कि संपत्ति के उपयोग का अंतिम अधिकार उन्हीं का है।