नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) सरकार द्वारा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) रिपोर्ट पर जिस तरह का रवैया अपनाया गया, उसे लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली की सरकार को फटकार लगाई। जस्टिस सचिन दत्ता की एकल पीठ ने कहा कि रिपोर्ट को सदम में रखना नहीं पड़े, इसलिए सरकार ने विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर अपने कदम पीछे खींच लिए।
कोर्ट ने कहा, ‘जिस तरह से आपने अपने पैर खींचे हैं, उससे आपकी प्रामाणिकता पर संदेह पैदा होता है। आपको तुरंत रिपोर्ट अध्यक्ष को भेजनी चाहिए थी और सदन में इस पर चर्चा की पहल करनी चाहिए थी।’ कोर्ट की ओर से कहा गया है कि दिल्ली सरकार द्वारा उपराज्यपाल वीके सक्सेना को सीएजी रिपोर्ट भेजने में देरी और जिस तरह से सरकार ने इस मामले को हैंडल किया, उससे ‘आपकी विश्वसनीयता पर संदेह’ पैदा होता है।
‘आप’ ने कोर्ट से क्या कहा?
कोर्ट को जवाब देते हुए आप सरकार ने सवाल उठाया कि इतने करीब चुनाव होने पर विधानसभा सत्र कैसे बुलाया जा सकता है। गौरतलब है कि पिछली सुनवाई के दौरान दिल्ली विधानसभा सचिवालय ने कोर्ट को बताया था कि सीएजी रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने से कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि उसका कार्यकाल फरवरी में खत्म हो रहा है। यह जवाब सात भाजपा विधायकों द्वारा विधानसभा में कैग रिपोर्ट पेश करने की मांग को लेकर दायर याचिका के जवाब में दिया गया था। मामले पर अभी और विस्तृत सुनवाई आज ही होनी है।
क्या है कैग रिपोर्ट का विवाद?
हाल में दिल्ली के मुख्यमंत्री के सरकारी आवास में नवीकरण कार्यों की योजना, निविदा और इसके निष्पादन में कई अनियमितताओं को उजागर करने वाली एक लीक हुई CAG रिपोर्ट सामने आई थी। दिल्ली में चुनाव से ठीक पहले सामने आई सीएजी की रिपोर्ट ने राजधानी में राजनीति को और गर्मा दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शुरुआत में मुख्यमंत्री आवास के रेनोवेशन में 2020 में 7.61 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई थी। हालांकि, अप्रैल 2022 तक परियोजना की लागत बढ़कर 33.66 करोड़ रुपये हो गई, मूल अनुमान से 342 प्रतिशत अधिक है।
वहीं, 11 जनवरी को सामने आई सीएजी की रिपोर्ट में दिल्ली की अब खत्म की जा चुकी नई शराब नीति के कार्यान्वयन में कथित अनियमितता की वजह से सरकारी खजाने को 2,026 करोड़ रुपये के राजस्व के नुकसान का भी अनुमान लगाया गया है।
रिपोर्ट में बड़े घोटाले की आशंका जाहिर की गई है। इसमें कीमत तय करने में पारदर्शिता की कमी, लाइसेंस जारी और नवीनीकरण में नियमों का उल्लंघन, गड़बड़ियां करने वालों को दंडित न करना, और उपराज्यपाल, कैबिनेट या विधानसभा से मंजूरी न लेना जैसी बातें शामिल हैं। लाइसेंस देने से पहले कंपनियों की वित्तीय स्थिति को जांचा नहीं गया। यहां तक कि घाटे में चल रही कंपनी को भी लाइसेंस दे दिया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने जो रिटेल शराब लाइसेंस छोड़े गए थे, उनके लिए फिर से टेंडर नहीं निकाला, जिससे खजाने को लगभग 890 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इसके अलावा, जोनल लाइसेंसधारियों को दी गई छूट से 941 करोड़ रुपये का और नुकसान हुआ। इसके अलावा, कोविड प्रतिबंधों के आधार पर जोनल लाइसेंसधारकों को 144 करोड़ रुपये की लाइसेंस शुल्क छूट दी गई, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को राजस्व की हानि हुई। जबकि अनुबंध में ऐसा प्रावधान नहीं था। वहीं, सुरक्षा जमा राशि को सही तरीके से नहीं वसूला गया जिससे 27 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ।
(समाचार एजेंसी IANS के इनपुट के साथ)
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