नई दिल्लीः देश की राजधानी दिल्ली में 27 साल बाद भाजपा की सरकार बनने जा रही है। दिल्ली की 70 सीटों में से 48 पर भाजपा ने परचम लहराया, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) को 22 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। वहीं कांग्रेस के हाथ इस बार भी खाली ही रहे। 

दिल्लीवासियों को लुभाने के लिए आप और कांग्रेस के बरक्स भाजपा ने भी कई बड़े वादे किए थे। साथ ही उसने आम आदमी पार्टी की योजनाओं को भी जारी रखने की बात कही थी।

भाजपा ने गरीब महिलाओं को ₹2,500 मासिक सहायता, वरिष्ठ नागरिकों के लिए पेंशन और यमुना सफाई जैसी योजनाओं पर जोर दिया है, लेकिन इसके लिए सालाना 25,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त जरूरत होगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार अपने संसाधनों का पुनर्वितरण कर पाएगी या केंद्र सरकार से विशेष वित्तीय सहायता की मांग करेगी? 

दिल्ली सरकार का बजट

दिल्ली का बजट ₹76,000 करोड़ का है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा शिक्षा क्षेत्र को दिया गया है, जिसे ₹16,396 करोड़ (22%) आवंटित किए गए हैं। इसके बाद आवास एवं शहरी विकास के लिए ₹9,800 करोड़ (13%), स्वास्थ्य एवं जन स्वास्थ्य के लिए ₹8,685 करोड़ (11%), परिवहन अवसंरचना के लिए ₹7,470 करोड़ (10%), जल आपूर्ति और स्वच्छता के लिए ₹7,195 करोड़ (9%), और सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण के लिए ₹6,694 करोड़ (9%) रखे गए हैं। वहीं केंद्र ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए बजट में दिल्ली सरकार को कुल 1348 करोड़ रुपये दिए हैं।

राजस्व संकट और बढ़ती वित्तीय चुनौतियां

राज्य सरकार के वित्त विभाग ने पिछले वर्ष चेतावनी दी थी कि वेतन और प्रशासनिक खर्चों के बढ़ते दबाव के कारण पहली बार घाटे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा, कर राजस्व, गैर-कर स्रोतों और केंद्रीय अनुदानों में कमी का अनुमान है, जो ₹64,142 करोड़ से घटकर ₹62,415 करोड़ हो सकता है।

अब, सरकार द्वारा घोषित ₹2,500 मासिक गारंटी योजना (अर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं के लिए) राजकोष पर भारी असर डाल सकती है। आय मानदंड अभी तय नहीं किया गया है, लेकिन पहले प्रस्तावित इसी तरह की एक योजना के तहत 38 लाख महिलाएं पात्र थीं, जिसकी अनुमानित वार्षिक लागत ₹11,000 करोड़ थी।

योजनाओं के लिए राज्य पर कितना पड़ेगा वित्तीय बोझ

दिल्ली में 60 वर्ष से अधिक आयु के 24,44,476 नागरिक हैं, जिनमें से 13,78,797 लोग ₹2,500 मासिक पेंशन (60-69 आयु वर्ग) के दायरे में आते हैं। इस योजना को लागू करने के लिए सरकार को हर साल ₹4,100 करोड़ की आवश्यकता होगी।

यमुना सफाई और कचरा प्रबंधन इस चुनाव में महत्वपूर्ण मुद्दे बने। पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने ₹8,000 करोड़ यमुना पुनरोद्धार पर खर्च किए हैं। दिल्ली के लैंडफिल साइट्स को तीन वर्षों में खत्म करने के लिए भी भारी वित्तीय संसाधनों की जरूरत होगी।

नई सरकार को अपने मौजूदा और नए कल्याणकारी योजनाओं को पूरा करने के लिए हर साल ₹25,000 करोड़ अतिरिक्त चाहिए। इसमें ₹11,000 करोड़ केवल आप सरकार की मुफ्त पानी और बिजली योजनाओं को जारी रखने के लिए होंगे।

केंद्र सरकार से विशेष पैकेज की संभावना?

नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्व संकट से निपटना होगी। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि "आप सरकार पहले ही 18,000 करोड़ रुपए के वित्तीय घाटे में थी, ऐसे में नई सरकार को पूंजीगत व्यय में कटौती करनी होगी या केंद्र सरकार से वित्तीय मदद लेनी होगी।" 

दिल्ली भाजपा अध्यक्ष विरेंद्र सचदेवा ने कहा कि केंद्र सरकार पहले भी आयुष्मान भारत योजना समेत अन्य परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता देने को तैयार थी, लेकिन आप सरकार ने इन्हें लागू नहीं किया। उन्होंने कहा, "अब जब बीजेपी सत्ता में है, हम बजट में धन की व्यवस्था करेंगे, वित्तीय अपव्यय को रोकेंगे और भ्रष्टाचार समाप्त करेंगे।"

स्वास्थ्य, मेट्रो और बुनियादी ढांचे की जरूरतों पर खर्च

स्वास्थ्य क्षेत्र में भी भाजपा सरकार के सामने बड़ी वित्तीय चुनौतियां हैं। दिल्ली में 7 नए अस्पतालों और 17 अस्पतालों के विस्तार के लिए ₹10,200 करोड़ की जरूरत होगी, साथ ही ₹8,000 करोड़ सालाना इनके संचालन पर खर्च होंगे। वहीं, दिल्ली मेट्रो की फेज-III की बची हुई परियोजनाओं और फेज-IV के विस्तार के लिए ₹2,700 करोड़ की आवश्यकता होगी।

इसके अलावा दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए भी फंडिंग की जरूरत है। पिछले कुछ वर्षों में सड़क निर्माण और मरम्मत को लेकर असंतोष बढ़ा है। 2023-24 में 3,126 करोड़ रुपए सड़क परियोजनाओं के लिए आवंटित थे, जो 2024-25 में घटकर 1,768 करोड़ रह गए हैं।

सरकार को कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखने, नई योजनाओं के लिए फंड जुटाने और राजस्व घाटे से बचने के लिए कड़े फैसले लेने होंगे। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, सामाजिक कल्याण और बुनियादी ढांचे के लिए बड़े बजट का प्रावधान किया गया है, लेकिन बढ़ते वेतन खर्च, गिरते राजस्व और नई योजनाओं के वित्तीय बोझ के बीच सरकार के लिए संतुलन बनाना मुश्किल साबित हो सकता है।