नई दिल्ली: रक्षा मंत्रालय ने सुखोई-30MKI जेट्स के लिए 240 एयरो-इंजन की खरीद के मकसद से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ 26,000 करोड़ रुपये से अधिक का करार किया। यह एयरो-इंजन इन 259 रूसी विमानों की परिचालन क्षमता को और लंबे समय तक बनाए रखेगा और वे भारतीय वायुसेना से जुड़े रहेंगे। HAL द्वारा 240 AL-31FP एयरो-इंजन का निर्माण उसरे कोरापुट डिवीजन में किया जाएगा। इसके लिए एचएएल रूस से कुछ सामग्रियों की सोर्सिंग करेगा।
भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वी आर चौधरी और रक्षा सचिव गिरिधर अरामाने की उपस्थिति में हुए इस करार के तहत HAL हर साल 30 एयरो-इंजन की आपूर्ति करेगा। सभी 240 इंजनों की आपूर्ति अगले 8 सालों की अवधि में पूरी कर दी जाएगी।
स्वदेशीकरण को बढ़ाने पर जोर
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार इस करार के तहत HAL की योजना स्वदेशी सामग्री का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने की है। इससे एयरो इंजन में डिलीवरी के समय तक पूरी परियोजना में स्वदेशीकरण को 63 प्रतिशत तक बढ़ाना है। इसमें एमएसएमई, सार्वजनिक और निजी उद्योग भी शामिल होंगे। इससे इन इंजनों की मरम्मत और ओवरहाल के लिए स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
सुरक्षा पर प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने 2 सितंबर को ही इस सौदे को मंजूरी दे दी थी। यह इसलिए भी अहम है क्योंकि भारतीय वायुसेना अभी केवल 30 लड़ाकू स्क्वाड्रनों के साथ है। जबकि चीन और पाकिस्तान के खिलाफ दोहरे खतरे से निपटने के लिए कम से कम 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है।
गौरतलब है कि मौजूदा समय में दो इंजन वाले 259 सुखोई में अधिकांश रूस के लाइसेंस के तहत एचएएल द्वारा बनाए गए हैं। यही विमान अभी भारतीय वायुसेना के लड़ाकू बेड़े की रीढ़ हैं। पिछले कुछ वर्षों में दुर्घटनाग्रस्त हुए सुखोई की जगह अब अन्य 12 नए सुखोई का लगभग 11,500 करोड़ रुपये का ऑर्डर दिया जा रहा है।
मिग के लिए भी इंजन बनाएगी एचएएल
सीसीएस ने फरवरी में भारतीय वायुसेना के बेड़े में लगभग 60 मिग-29 लड़ाकू विमानों के लिए 5,300 करोड़ रुपये में नए इंजनों को भी मंजूरी दी थी। इसका निर्माण भी रूसी सहयोग से एचएएल द्वारा किया जाएगा। अपेक्षित थ्रस्ट-टू-वेट अनुपात के साथ लड़ाकू विमानों के लिए स्वदेशी तौर पर एयरो-इंजन बनाने में भारत की विफलता वर्षों से एक बड़ी समस्या रही है। हालांकि, अब लागत कम करने और स्वदेशीकरण को बढ़ाने के लिए भारतीय वायुसेना पहले की बजाय अब बड़ी मात्रा में एयरो-इंजन का ऑर्डर दे रही है। किसी भी लड़ाकू विमान के परिचालन काल के दौरान इंजन को कम से कम दो से तीन बार बदलने की जरूरत होती है।