रक्षा सौदों में तेजी लाएगा मंत्रालय, समयसीमा दो साल से घटाकर छह महीने करने का प्रस्ताव

रक्षा मंत्रालय रक्षा सौदों की खरीद में तेजी लाने के लिए समयसीमा तय करेगा। इसकी समयसीमा दो साल से घटाकर छह महीने करने का उद्देश्य है।

Defence Ministry to fast Defence Deals

रक्षा सौदों की डील में तेजी लाएगा रक्षा मंत्रालय Photograph: (आईएएनएस)

नई दिल्लीः रक्षा मंत्रालय आज डिफेंस एक्विजिसन काउंसिल यानी डीएसी से रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए समयसीमा को तय करने की मंजूरी मांगेगा। डीएसी की अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कर रहे हैं। रक्षा मंत्रालय ऐसा कदम इसलिए उठा रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देश की आत्मरक्षा करने की क्षमता नौकरशाही प्रक्रियाओं का शिकार न हो। 

मंत्रालय रक्षा अधिग्रहण या फिर रक्षा उपकरणों की खरीद के समय को घटाकर छह महीने कराना चाहता है। अभी तक के नियमानुसार कोई रक्षा अधिग्रहण करने में दो साल लगते हैं। 

अधिग्रहण में तेजी लाना है उद्देश्य

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, तीन प्रमुख अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि रक्षा मंत्रालय चाहता है कि जटिल पूंजी अधिग्रहण प्रक्रिया को और अधिक कुशल बनाया जाए ताकि जरूरी अधिग्रहण में देरी न हो। अभी तक यह प्रक्रिया मैनुअली संचालित होती है। 

डीएपी दस्तावेज को अंतिम बार साल 2020 में संशोधित किया गया था। बीते कुछ वर्षों में राफेल लड़ाकू विमानों, राफेल-मैरीटाइम लड़ाकू विमानों को अभी भी सीसीएस द्वारा मंजूरी दी जानी है। इसके अलावा स्कॉर्पियन श्रेणी की पनडुब्बियों, प्रोजेक्ट 75 I एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन पनडुब्बियों और प्रीडेटर ड्रोन की खरीदारी में देरी हुई है। 

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, डीएसी के समक्ष प्रस्तुत प्रस्ताव में प्रस्ताव के लिए अनुरोध यानी आरएफपी, फील्ड मूल्यांकन परीक्षण और अनुबंध वार्ता समिति के लिए सख्य समय सीमा निर्धारित की गई है। इसके लिए छह महीने की समय सीमा तय की गई है। 

अधिकारियों ने क्या बताया?

अधिकारियों ने बताया कि मोदी सरकार चाहती है कि सशस्त्र बलों को किसी खास प्लेटफॉर्म के अधिग्रहण के लिए रक्षा मंत्रालय से स्वीकृति की आवश्यकता (एओएन) के लिए आवेदन करने से पहले ही आरएफपी तैयार कर लेना चाहिए। अब तक, सशस्त्र बलों द्वारा आरएफपी की पूरी प्रक्रिया डीएसी द्वारा किसी खास पूंजी अधिग्रहण के लिए एओएन दिए जाने के बाद शुरू होती थी।

इसके बाद अगला चरण हथियार प्रणाली का फील्ड इवैल्युशन ट्रायल है जिसमें मौजूदा नियमों के अनुसार, वर्षों लग जाते हैं क्योंकि सशस्त्र बल चाहते हैं कि सिस्टम का परीक्षण ध्रुवीय परिस्थितियों के साथ-साथ रेगिस्तान में भी किया जाए। यह देखते हुए कि अब परिस्थितियों का अनुकरण किया जा सकता है, रक्षा मंत्रालय चाहता है कि पूंजीगत उपकरणों का अनुकरणीय परिस्थितियों में परीक्षण करके समांतर रूप से परीक्षण पूरा किया जाए। 

इसके बाद अंतिम चरण में रक्षा मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों द्वारा संचालित सीएनसी शामिल है। इसे भी आपूर्तिकर्ता के साथ बातचीत के बजाय छह महीने में पूरी कर लेना चाहिए। अनुबंध मूल्य पर बातचीत और वित्त मंत्रालय द्वारा अनुमोदन के बाद ही मामला प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सुरक्षा पर कैबिनेट समिति के पास पहुंचता है।

पूंजी अधिग्रहण की प्रक्रिया की समयसीमा को कम करके रक्षा मंत्रालय उच्च स्तरीय प्लेटफॉर्मों की खरीद के मामले में तेजी से निर्णय लेना चाहता है। देरी की वजह से यदि किसी सौदे का मूल्य बदलता है तो ऐसी स्थिति में मंत्रालय सशक्त बलों के साथ-साथ स्वयं को भी जिम्मेदार बनाना चाहता है। 

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