उद्धव-राज ठाकरे की साझा रैली पर सीएम फड़नवीस का तंज- विजय उत्सव नहीं, ‘रुदाली’ का मंचन लगा

शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने शनिवार को कई सालों के बाद एकसाथ मंच साझा किया।

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महाराष्ट्र में शनिवार को ठाकरे बंधुओं ने 'विजय दिवस' का आयोजन किया और वर्षों बाद एक मंच पर दिखे। इसके बाद राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने तंज कसते हुए कहा कि यह कार्यक्रम विजय उत्सव नहीं, बल्कि 'रुदाली' (विलाप करने वाली) का मंचन लग रहा था।

गौरतलब है कि मुंबई में हिंदी भाषा के आदेश को वापस लेने की घोषणा के बाद शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे पहली बार एक साथ मंच पर आए। 

फड़नवीस ने कहा, "यह रैली मराठी भाषा की रक्षा के नाम पर होनी चाहिए थी, लेकिन पूरी चर्चा उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने और सत्ता में वापस आने की कोशिशों पर केंद्रित रही।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि राज ठाकरे ने मजाक में कहा कि जो काम बाला साहब ठाकरे नहीं कर सके, वह मैंने करा दिया- राज और उद्धव को एक साथ मंच पर ला दिया। इसके लिए मैं उनका धन्यवाद करता हूँ। फड़नवीस ने चुटकी लेते हुए कहा, बालासाहेब ठाकरे मुझे आशीर्वाद दे रहे होंगे। वे दावा करते हैं कि यह विजय उत्सव था, लेकिन यह रुदाली दर्शन बनकर रह गया।"

उद्धव पर कटाक्ष करते हुए, मुख्यमंत्री ने कहा कि रैली में शायद ही मराठी भाषा के मुद्दे पर बात की गई और इसके बजाय उनकी सरकार के गिरने की शिकायत करने और सत्ता में लौटने के तरीकों पर चर्चा करने का मंच बन गई।

मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि बीएमसी (बृहन्मुंबई नगर निगम) शिवसेना ने 25 साल तक शासन किया लेकिन मुंबई में असली विकास नहीं ला सके, जबकि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने बीडीडी चॉल और पत्रा चॉल जैसी जगहों पर मराठी लोगों को उनके अधिकार के मकान दिए, जो ठाकरे गुट को असहज कर रहा है। 

फड़नवीस ने अपनी पहचान दोहराते हुए कहा, "मैं गर्व से कहता हूँ कि मैं मराठी भी हूँ और हिंदू भी। आज मराठी और गैर-मराठी, दोनों हमारे साथ हैं।" 

मिलकर चुनाव लड़ेंगे राज और उद्धव

उधर, वर्ली की रैली में उद्धव और राज ठाकरे ने भविष्य में मिलकर नगर निगम चुनाव लड़ने की बात कही और भाजपा पर आरोप लगाया कि वह महाराष्ट्रियों को बाँटकर हिंदी थोपना चाहती है। इस रैली में बड़ी संख्या में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे कार्यकर्ता जुटे, जिसे दोनों दलों के लिए राजनीतिक संजीवनी के रूप में देखा जा रहा है।

बता दें कि महाराष्ट्र में त्रिभाषी नीति को लेकर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने पहले अलग-अलग विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था। हालांकि, दोनों ने शनिवार एक साथ रैली की। इसे विजय उत्वस का नाम दिया गया था। क्योंकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने हाल ही में भाषा को लेकर विवाद बढ़ने के बाद राज्य में त्रिभाषी नीति को वापस ले लिया है। उन्होंने रिपोर्ट तैयार करने के लिए पूर्व योजना आयोग के सदस्य नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति के गठन की घोषणा की है। समिति की रिपोर्ट आने तक तीसरी भाषा के रूप में प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को लागू करने का आदेश वापस ले लिया गया है।

हालाँकि, कांग्रेस ने इस विजय उत्सव लेकर ठाकरे बंधुओं को याद दिलाया कि हिंदी भाषा थोपे जाने के विरोध में पूरे राज्य में नागरिक समाज, शिक्षाविदों और विभिन्न संगठनों ने मिलकर आवाज उठाई थी, और सरकार का आदेश उन्हीं दबावों के चलते वापस लिया गया। कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण और प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाळ ने दावा किया कि हिंदी थोपने के खिलाफ राज्य भर में व्यापक बैठकें और विरोध कार्यक्रम हुए, और यही असली वजह रही नीति वापसी की।

संजय शिरसाट ने उद्धव और राज पर साधा निशाना

महाराष्ट्र के सामाजिक न्याय मंत्री संजय शिरसाट ने एक बयान में कहा है कि मनसे प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे सिर्फ मराठी भाषा के मुद्दे पर एक मंच पर आए थे, न कि किसी राजनीतिक गठबंधन के तहत।  संजय शिरसाट ने कहा कि राज ठाकरे ने अपने भाषण में केवल भाषा को लेकर बात की, जबकि उद्धव ठाकरे ने अपने भाषण में राजनीतिक बातें कीं। उन्होंने इस सभा के कुछ और पहलुओं पर भी सवाल उठाए।

उन्होंने कहा कि आमतौर पर जब किसी बड़ी सभा का समापन होता है तो मंच पर मौजूद सभी नेता एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर जनता के सामने हाथ उठाते हैं, लेकिन इस बार राज ठाकरे ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने अकेले ही हाथ ऊपर उठाया, जिससे यह साफ झलकता है कि दोनों नेताओं के बीच सिर्फ मराठी भाषा को लेकर सहमति बनी है, न कि कोई गहरा राजनीतिक गठबंधन है।

शिरसाट ने कहा कि यह सभा कोई राजनीतिक रैली नहीं थी, क्योंकि अगर यह राजनीतिक सभा होती, तो महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के अन्य घटक दल एनसीपी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी इसमें शामिल होते। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे चुनाव में साथ नहीं आ सकते हैं। यह सब सिर्फ बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव को ध्यान में रखकर किया जा रहा "राजनीतिक खेल" है।

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