महाराष्ट्र विधानसभा में बुधवार को एक ऐसी राजनीतिक झलक देखने को मिली, जिसने सूबे की भविष्य की राजनीति को लेकर अटकलें तेज कर दी हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धवठाकरे को सदन में खुले मंच से सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में शामिल होने का न्यौता दिया। यह टिप्पणी भले ही हंसी-ठिठोली के अंदाज में आई हो, लेकिन इसके पीछे के राजनीतिक संदेश को हल्के में नहीं लिया जा रहा है खासकर उस वक्त जब ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे हाल ही में ‘मराठी अस्मिता’ के मुद्दे पर साथ मंच साझा कर चुके हैं और उपमुख्यमंत्रीएकनाथशिंदे की सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी है।

विधान परिषद में बुधवार नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे के विदाई समारोह कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री फड़नवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे सभी ने उनकी कार्यशैली की सराहना की। ठाकरे ने अपने संबोधन में दानवे को मेहनती और पार्टी के प्रति निष्ठावान बताया और विश्वास जताया कि वे अगली बार फिर शिवसेना (यूबीटी) से ही चुनकर आएंगे।

इसके जवाब में फड़नवीस ने सदन में ठिठोली के अंदाज में कहा, "देखिए उद्धव जी, 2029 तक (हमारे) वहाँ (विपक्ष में) जाने की कोई गुंजाइश नहीं है... लेकिन अगर आप यहाँ आना चाहते हैं, तो इस पर विचार करें... यह आप पर निर्भर करता है... इस पर विचार किया जा सकता है।" इस प्रस्ताव के बाद सदन में हंसी का माहौल बन गया, लेकिन इसके राजनीतिक मायनों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। फड़नवीस ने यह भी कहा कि अंबादास दानवे कहीं भी (पक्ष या विपक्ष) हों, लेकिन उनके असली विचार दक्षिणपंथी हैं।

उद्धवठाकरे ने भी इसे “हल्के-फुल्के माहौल” में कही गई बात बताते हुए ज्यादा गंभीरता से न लेने की बात कही, लेकिन सियासी गलियारों में इसे 'एक नई बातचीत की शुरुआत' माना जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि उसी दिन विधान भवन परिसर में ठाकरे और फड़नवीस की सौहार्दपूर्ण बातचीत और दानवे की विदाई पर आयोजित रात्रिभोज में बीजेपी का आमंत्रण, इस बदले हुए माहौल की ओर इशारा करता है।

यह प्रस्ताव ऐसे वक्त आया है जब हाल ही में उद्धवठाकरे ने अपने चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसेप्रमुख राज ठाकरे से दो दशक बाद मुलाकात की थी। यह मुलाकात ‘मराठी अस्मिता’ के नाम पर हुई थी, जब राज्य सरकार ने मराठी स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी लागू करने का फैसला वापस लिया। दोनों ठाकरे बंधुओं ने सार्वजनिक मंच से यह संकेत भी दिया कि वे एकजुट रहेंगे और मुंबई सहित महाराष्ट्र में सत्ता में वापसी का लक्ष्य रखेंगे।

हालांकि अभी तक मनसे और शिवसेना (यूबीटी) के बीच किसी औपचारिक गठबंधन की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन संजय राउत जैसे वरिष्ठ नेताओं ने इसे "समय की मांग" बताया है। इस संदर्भ में फड़नवीस का प्रस्ताव केवल मजाक नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संकेत भी माना जा रहा है।

भाजपा और उद्धवगुट की शिवसेना दोनों ही खेमों के सूत्र मानते हैं कि यह प्रस्ताव केवल औपचारिकता नहीं था। फड़नवीस के इस बयान को उपमुख्यमंत्रीएकनाथशिंदे और उनके खेमे के लिए भी एक ‘राजनीतिक संदेश’ माना जा रहा है, खासकर तब जब शिंदे गुट के कुछ मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं और सरकार की छवि पर असर पड़ रहा है।