जम्मू-कश्मीर की चिनाब नदी पर बना दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल, ‘चिनाब रेल ब्रिज’ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार राष्ट्र को समर्पित कर दिया। उन्होंने इस अभूतपूर्व परियोजना को संभव बनाने वाले इंजीनियरों और निर्माण श्रमिकों की पीठ थपथपाई।  

प्रधानमंत्री मोदी ने प्रतिष्ठित चिनाब रेल ब्रिज पर तिरंगा फहराए जाने का जश्न मनाया और इसे राष्ट्रीय गौरव का क्षण बताया तथा इसे सबसे चुनौतीपूर्ण इलाकों में भविष्य के बुनियादी ढांचे के निर्माण की भारत की बढ़ती क्षमता का प्रमाण बताया।

चिनाब ब्रिज की ऊंचाई नदी तल से 359 मीटर है। यानी यह पेरिस के एफिल टावर से 35 मीटर और दिल्ली की कुतुब मीनार से करीब पांच गुना अधिक ऊंचा है। यह 1.315 किलोमीटर लंबा है और इसका निर्माण करीब 1,486 करोड़ रुपये की लागत से हुआ। यह पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक प्रोजेक्ट (USBRL) का एक प्रमुख हिस्सा है।

इंजीनियरिंग की सबसे बड़ी चुनौती क्यों?

इस पुल परियोजना को 2003 में मंजूरी मिली थी और इसके निर्माण में करीब दो दशक लगे। सरकार ने इसे भारत के रेलवे इतिहास में "सबसे बड़ी सिविल इंजीनियरिंग चुनौती" बताया है। चुनौती सिर्फ ऊंचाई ही नहीं थी, बल्कि हिमालयी क्षेत्र की जटिल भौगोलिक स्थिति, सुदूरवर्ती इलाका, सीमित संसाधनों की उपलब्धता और मशीनी उपकरणों की आवाजाही ने इस परियोजना को बेहद कठिन बना दिया था।

ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) के अध्यक्ष, जो 2005 से 2020 तक चिनाब ब्रिज प्रोजेक्ट के भू-तकनीकी सलाहकार भी रहे हैं, ने इस परियोजना को अपने पेशेवर जीवन का एक निर्णायक अध्याय बताया।  इंडियन एक्सप्रेस के अपने लेख में बताया है कि उन्होंने कहा कि चिनाब घाटी अपनी भंगुर चट्टानों, उच्च भूकंपीय गतिविधि और अप्रत्याशित भूभाग के साथ एक मौलिक रूप से भिन्न दृष्टिकोण की मांग करती थी। यहीं पर "डिजाइन-एज-यू-गो" का दर्शन काम आया - एक ऐसा दृष्टिकोण जो लचीलेपन, गहन वैज्ञानिक विश्लेषण और ऑन-साइट प्रतिक्रिया पर आधारित था। यह केवल किताबी सिद्धांतों को लागू करने के बारे में नहीं था; यह सुरक्षा, शक्ति और स्थिरता सुनिश्चित करते हुए प्रकृति की इच्छा के अनुकूल ढलने के बारे में था।

यह ब्रिज रिक्टर स्केल पर 8 तीव्रता के भूकंप और 266 किमी/घंटा तक की हवा की रफ्तार को झेलने में सक्षम है। भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बेंगलुरु की एक समर्पित टीम के साथ, सीताराम ने सैकड़ों बार स्थल का निरीक्षण किया, गहराई से जियोटेक्निकल विश्लेषण किए और ऐसे फाउंडेशन डिजाइन तैयार किए जो रिक्टर स्केल पर 8 तीव्रता के भूकंप और 266 किमी/घंटा तक की हवा की रफ्तार झेल सकें।

-20°C से 40°C तक के तापमान को सहन करने की क्षमता

पुल के निर्माण में 28,660 मेगाटन स्टील का इस्तेमाल हुआ है, जो -20°C से 40°C तक के तापमान और अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन कर सकता है। इतना ही नहीं, इसकी संरचना इस तरह डिजाइन की गई है कि अगर कोई एक पिलर क्षतिग्रस्त भी हो जाए, तो भी ट्रेन कम गति से सुरक्षित रूप से गुजर सकती है।

इस ब्रिज पर पहला ट्रायल रन जून 2024 में सफलतापूर्वक हुआ था, जिसके बाद जनवरी 2025 में वंदे भारत ट्रेन का परीक्षण भी किया गया। इसके चालू होने से कटरा से श्रीनगर के बीच यात्रा का समय लगभग 3 घंटे कम हो जाएगा।

इसी साल 6 अप्रैल को पीएम मोदी ने रामनवमी पर भारत के पहले वर्टिकल लिफ्ट समुद्री पुल, 'नया पंबन रेल ब्रिज' का उद्घाटन भी किया था। 2.08 किमी लंबा यह पुल आधुनिक तकनीकों से लैस है- जिसमें 99 छोटे स्पैन, 72.5 मीटर का एक वर्टिकल लिफ्ट स्पैन, एंटी-कोरोजन तकनीक, उन्नत स्टील, फाइबर रिइंफोर्सड प्लास्टिक का उपयोग हुआ है। इससे बड़े जहाजों की आवाजाही भी आसान हो सकेगी।