लद्दाख में पैंगोंग झील के पास चीन ने बनाया नया पुल, सैटेलाइट तस्वीरों में चलती गाड़ियां आईं नजर

क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने के लिए जापान पहुंचे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने टोक्यो में पत्रकारों से बात करते हुए कहा है कि भारत के साथ बेहतर रिश्ते के लिए चीन को यह चाहिए की वह एलओसी और पिछले समझौतों का सम्मान करे।

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China built a new bridge near Pangong Lake in Ladakh beside lac moving vehicles were seen in satellite images

प्रतिकात्मक फोटो (फोटो- IANS)

नई दिल्ली: लद्दाख में भारत और चीन के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास चीनी सेना द्वारा 400 मीटर लंबे पुल का निर्माण किया गया है। एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है जिसमें कहा गया है कि ताजा सैटेलाइट तस्वीरों में पुल पर हल्के मोटर वाहनों को आते-जाते हुए देखा गया है।

रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि इस पुल की जानकारी जनवरी 2022 में दी गई थी जो अब बन कर तैयार हो गया है।

जहां पर पुल निर्माण किया गया है वह क्षेत्र साल 1958 से चीन के नियंत्रण क्षेत्र में आता है। चीन के लिए यह पुल बहुत ही खास है क्योंकि इससे चीनी सेना पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण तटों से आसानी से आवाजाही कर सकती है। चीन द्वारा एलएसी पर पुल के निर्माण पर भारत सरकार की भी प्रतिक्रिया सामने आई है।

नए पुल से कम होगी दूरी और बचेगा समय

इंटेल लैब के उपग्रह इमेजरी विशेषज्ञ डेमियन साइमन ने पुल के रणनीतिक महत्व पर जोर डालते हुए कहा है कि इससे चीनी सेना को बहुत ही फायदा होगा। साइमन ने कहा है कि नए पुल के जरिए चीन काफी तेजी और कम समय में अपनी सेना की तैनाती कर पाएगा।

उनके अनुसार, पुल के बनने से पहले चीनी सेना को झील के पूरे पूर्वी हिस्से को घूम कर उसे कवर करना पड़ता था। इससे उन्हें लंबी दूरी तय करना पड़ता था और इसमें समय भी अधिक लगता था।

लेकिन पुल के निर्माण होने के बाद उनकी यात्रा की दूरी 50 से 100 किलोमीटर कम हो जाएगी और इससे समय की भी बचत होगी। पुल के निर्माण से पहले जब कभी भी संघर्ष की स्थितियां उत्तपन्न होती थी तो ऐसे समय में चीनी सेना तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दे पाती थी।

पैंगोंग झील के दोनों किनारों को जोड़ता है पुल

नई उपग्रह की तस्वीरों से यह पता चलता है कि चीन द्वारा बनाया गया पुल पैंगोंग झील के दोनों किनारों पर मौजूदा सड़कों को जोड़ता है। उत्तर की ओर यह पुल खुर्नक किले की ओर जाने वाली सड़क को जोड़ता है।

यह किला एक पुरानी तिब्बती संरचना है जिसे 1958 में चीन ने अपने कब्जे में ले लिया था। वहीं दक्षिण की ओर से यह पुल चीनी सैन्य शहर रुतोग की ओर जाने वाली एक सड़क को इससे जोड़ता है।

विदेश मंत्रालय ने क्या कहा

रिपोर्ट के अनुसार, इस पुल के बार में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने पुराने रुख को दोहराते हुए कहा है कि यह क्षेत्र लगभग 60 वर्षों से अवैध चीनी कब्जे में है। विदेश मंत्रालय ने आगे कहा कि भारत इस कब्जे को मान्यता नहीं देता है।

साल 2020 में दोनों देशों में बढ़ा था तनाव

बता दें कि मई 2020 में दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा था। इस दौरान लद्दाख के गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी जिसमें भारतीय सेना के 20 सैनिकों की जान गई थी।

चीन ने चार सैनिकों के मारे जाने की सूचना दी थी हालांकि कई सूत्रों ने 40 चीनी जवानों के मारे जाने का दावा किया था। यही नहीं पैंगोंग झील के उत्तरी तट पर भी झड़पें हुई थी लेकिन बाद में दोनों देशों के सेनाओं ने आपस में समझैता कर लिया था।

तनाव के बाद भारत ने उठाया यह कदम

इस तनाव के बाद भारत ने लद्दाख में अपने बुनियादी ढांचे के विकास पर काफी जोर दिया था। क्षेत्र में हर मौसम में वहां तक पहुंच बनाने के लिए भारत द्वारा यहां पर कई सुरंगे भी खोली गई है।

भारत ने 2021 में 87 पुलों का निर्माण किया था और 2022 में सीमांत बुनियादी ढांचे के विकास के लिए दो हजार करोड़ रुपए से भी अधिक का निवेश किया है।

भारत चीन के रिश्ते पर विदेश मंत्री ने क्या कहा है

क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने के लिए जापान पहुंचे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने टोक्यो में पत्रकारों से बात करते हुए भारत और चीन के रिश्ते के बारे में बयान दिया है। विदेश मंत्री ने कहा है कि चीन के साथ भारत के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं चल रहे हैं।

मई 2020 के गलवान घाटी की झड़प को याद करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि संघर्ष के कारण जो हालात पैदा हुए थे, वह मुद्दा अभी भी सुलझ नहीं पाया है और इसे लेकर दोनों देशों के बीच तनाव जारी है। जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि बेहतर रिश्ते के लिए चीन को एलओसी और पिछले समझौतों का सम्मान करना होगा।

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