चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने ड्रग मामले में सुनाया फैसला Photograph: (P&H; HIGH COURT/ PEXELS)
चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। न्यायालय के इस आदेश के अनुसार, छोटी मात्रा में ड्रग्स के साथ पकड़े गए लोगों को बेल अवश्य दी जानी चाहिए। अदालत का यह निर्णय नारोकिटिक ड्रग ऐंड साइकोटोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत छोटे मादक पदार्थों के मामले से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन एजेसिंयों के तरीके को बदल सकता है।
मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अनूप चित्कारा ने कुलदीप सिंह उर्फ कीपा को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि छोटी मात्रा में ड्रग्स से जुड़े अपराध जमानती हैं। अदालत ने यह भी कहा कि यह एनडीपीएस की धारा- 37 के सख्त जमानत प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं। अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि छोटी बरामदगी के लिए पहली बार अपराध करने वालों को सलाखों के पीछे रखना जमानत के मामलों में न्यायिक विवेक के उद्देश्य को विफल कर देगा।
क्या है पूरा मामला?
कुलदीप सिंह ने एनडीपीएस की धारा-21 के तहत दर्ज मामले में फंसने के बाद उच्च न्यायालय का रुख किया था। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, इस मामले में सह-आरोपी द्वारा कबूलनामे के बाद कुलदीप का नाम आया था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, अक्तूबर 2024 में बठिंडा जिले के तलवंडी साबो में पुलिस ने गुरदीप सिंह से एक ग्राम हीरोइन बरामद की थी। हिरासत में पूछताछ के दौरान गुरदीप ने कथित तौर पर दावा किया कि उसने कुलदीप से ड्रग खरीदा था।
हालांकि पहले ट्रायल कोर्ट ने अग्रिम जमानत से इंकार कर दिया था जिसके बाद कुलदीप ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। कुलदीप के वकील ने अदालत में यह दलील दी कि स्वीकारोक्ति पुलिस के समक्ष दी गई थी, ऐसे में इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा वकील ने कहा कि चूंकि बरामद की गई सामग्री एनडीपीएस अधिनियम के अंतर्गत "छोटी" श्रेणी में वर्गीकृत है। ऐसे में अपराध को जमानती माना जाना चाहिए।
उच्च अदालत ने क्या कहा?
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति चित्कारा ने निर्णय दिया कि कानून सभी एनडीपीएस अपराधों को गैर-जमानती मानने का आदेश नहीं देता है। उन्होंने कहा "अगर ऐसे मामले में किसी आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं मिलती है तो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (2023) की धारा-482 का अधिनियम अपने आप ही निरर्थक हो जाएगा।"
न्यायमूर्ति ने आगे सुप्रीम कोर्ट के ऐसे मामलों का भी जिक्र किया। तूफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य और हरियाणा राज्य बनाम समर्थ कुमार के मामलों का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत पुलिस के समक्ष दिए गए बयान मुकदमे में स्वीकार्य नहीं हैं।
अदालत ने कहा " प्रतिबंधित सामग्री याचिकाकर्ता से नहीं मुख्य आरोपी से बरामद की गई थी, जिसने पुलिस हिरासत में रहते हुए याचिकाकर्ता को ऐसे बयान में फंसाया जो कानूनी तौर पर मान्य नहीं होगा। "
क्या कहते हैं नियम?
फैसले में स्पष्ट किया गया कि भारतीय न्याय सुरक्षा संहिया, 2023 की पहली अनुसूची के अनुसार, तीन साल से कम कारावास की सजा वाले अपराधों को जमानती श्रेणी में रखा गया है। चूंकि एनडीपीएस अधिनयम के तहत थोड़ी मात्रा में हेरोइन रखने की सजा एक साल है इसलिए यह जमानती श्रेणी में आता है।
न्यायमूर्ति चित्कारा ने टिप्पणी की, " न्यायालय द्वारा विचार किए जाने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि क्या ऐसे अपराध एनडीपीएस अधिनियम के तहत स्वाभाविक रूप से जमानती हैं। यदि वे नहीं हैं तो यह एक बेतुकी स्थिति पैदा करेगा जहां मामूली उल्लंघनों को गंभीर मादक पदार्थ तस्करी अपराधों के समान ही कठोर माना जाएगा।"
उन्होंने कहा, "यदि विधानमंडल का इरादा एनडीपीएस अधिनियम के तहत सभी अपराधों को गैर-जमानती के रूप में वर्गीकृत करना था तो उसने स्पष्ट रूप से एक सरल 'सभी'-समावेशी उपसर्ग का उपयोग करके ऐसा किया होता।"
उन्होंने यह भी कहा कि ड्रग की मात्रा को छोटे, मध्यम और वाणिज्यिक श्रेणी में वर्गीकृत करने का उद्देश्य सजा और जमानत की शर्तों में आनुपातिकता सुनिश्चित करना है। इसे अनदेखा करना विधायी मंशा के विपरीत होगा।
अदालत के फैसले का क्या असर होगा?
चूंकि पंजाब और हरियाणा में ऐसे मामले अधिक होते हैं। ऐसें में उच्च न्यायालय का यह आदेश दोनों राज्यों में पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रभाव देखने को मिलता है। जज ने यह भी चेतावनी देते हुए कहा कि एनडीपीएस के तहत मनमाने ढंग से लोग हिरासत में लिए जाते हैं।
उन्होंने कहा "जब कोई व्यक्ति थोड़ी मात्रा में ड्रग्स के साथ पकड़ा जाता है तो कानून यह मांग नहीं करता कि उसके साथ ड्रग तस्कर जैसा व्यवहार किया जाए। निष्पक्षता का सिद्धांत कायम रहना चाहिए।"