रांची: चंपई सोरेन के अगले राजनीतिक कदम को लेकर चल रहा सस्पेंस आखिरकार खत्म हो गया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) से नाराज होने की कई हफ्तों की अटकलों और हाल में निजी कारणों का हवाला देकर दिल्ली की कई बार यात्रा कर चुके चंपई सोरेन 30 अगस्त को रांची में भाजपा के मुख्यालय में पार्टी से जुड़ेंगे। झारखंड में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।

असम के मुख्यमंत्री और झारखंड के सह-प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा ने सोमवार रात सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर चंपई सोरेन की अमित शाह के साथ मुलाकात की एक तस्वीर डाली। इस तस्वीर में वे भी नजर आ रहे हैं। इस तस्वीर के साथ हिमंत बिस्वा सरमा ने लिखा चंपई सोरेन 30 अगस्त को आधिकारिक रूप से बीजेपी में शामिल हो जाएंगे।

न्यूज -18 की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि चंपई सोरेन बिना किसी खास शर्त के भाजपा में शामिल हो रहे हैं। सूत्र ने कहा, 'वह हमारी पार्टी के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन होंगे क्योंकि वह एक जाने-माने आदिवासी नेता हैं और आगामी झारखंड चुनाव में वह हमारे लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।'

चंपई सोरेन के साथ और कौन भाजपा में शामिल होगा?

सूत्रों के अनुसार अभी केवल चंपई सोरेन और उनके बेटे ही भाजपा में शामिल होंगे। सूत्र ने कहा, 'उनके समर्थन वाले विधायकों सहित उनके साथ शामिल होने वाले किसी अन्य व्यक्ति के बारे में बाद में निर्णय लिया जाएगा।' उन्होंने कहा कि बीजेपी ऐसी पार्टी के रूप में नहीं दिखना चाहती जो चुनाव से पहले केवल टिकट और पद के लिए लोगों को खुले तौर पर अपने खेमे में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

चंपई सोरेन के आने से भाजपा को क्या फायदा?

67 साल के चंपई सोरेन को झारखंड की राजनीतिक गलियारों में 'टाइगर' के नाम से भी जाना जाता है। उनके आने से भाजपा को बड़े बदवाल की उम्मीद है। खासकर जिस तरह हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए आदिवासी वोटों में बड़ी गिरावट देखने को मिली है, उसमें कुछ बदलाव की उम्मीद पार्टी को होगी।

चंपई सोरेन का भाजपा में जाना पार्टी के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद झामुमो इसे आदिवासी विरोधी कदम बता रही थी। यह माना भी जा रहा था कि आदिवासियों की सहानुभूति झामुमो की ओर चली गई है। माना गया कि संभवत: यह भी बड़ा कारण रहा जिसकी वजह से भाजपा को कुछ अहम सीटें लोकसभा चुनाव में गंवानी पड़ी। इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की हार भी शामिल है।

चंपई सोरेन का पार्टी में स्वागत करते हुए लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा है कि यह कदम झामुमो का अंत होगा जिसकी शुरुआत राज्य के लिए आंदोलन के रूप में हुई थी लेकिन आखिरकार ये 'सत्ता के दलालों के हाथों में पहुंच गया।' निशिकांत दुबे का लगातार हेमंत सोरेन परिवार के साथ टकराव रहा है।

चंपई सोरेन का झामुमो से क्यों हुआ मोहभंग?

झामुमो के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक और सोरेन परिवार के करीबी चंपई सोरेन ने इस साल फरवरी में झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। हेमंत सोरन की ईडी द्वारा गिरफ्तारी के बाद ऐसे हालात बने थे। हालांकि, हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने पर चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद जुलाई में छोड़ना पड़ा। इसी प्रकरण के बाद से चंपई सोरेन की नाराजगी की खबरें आने लगी थी।

पिछले करीब 10-12 दिनों में चंपई सोरेन ने झामुमो से अलग होने के कई संकेत दिए। इसके बाद से उनके भाजपा में जाने की अटकलें लगने लगी थी। उन्होंने साफ कहा था कि वे राजनीति से संन्यास लेने के बारे में नहीं सोच रहे हैं। चंपई सोरेने ने कहा था कि अपने राजनीतिक जीवन के चार दशकों से अधिक समय तक लोगों के हितों के लिए संघर्ष करने के बाद इसे छोड़ने का विकल्प उनके सामने नहीं है।

चंपई सोरेन ने 18 अगस्त को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक लंबी पोस्ट लिखी और झामुमो के संस्थापक शिबू सोरेन के साथ अपने जुड़ाव को याद किया। साथ ही उन्होंने बताया कि कैसे स्वास्थ्य कारणों से सक्रिय राजनीति में शिबू सोरेन की भागीदारी की कमी से झामुमो का पतन होना शुरू हुआ।

चंपई सोरेन ने कुछ और बातें भी गिनाई और कहा कि उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कर्तव्यों का पालन करने की अनुमति नहीं दी गई थी 'क्योंकि सत्ता किसी और के हाथों में थी।' उन्होंने कहा कि बार-बार अपमान के कारण उनके पास केवल तीन विकल्प बचे थे - 'राजनीति से इस्तीफा लेना, अपना खुद का संगठन स्थापित करना या लोगों के कल्याण के लिए काम करने के लिए एक उपयुक्त साथी ढूंढना।' इसके बाद ऐसी भी अटकलें लग रही थी कि चंपई सोरेन अपनी खुद की पार्टी बना सकते हैं।