चमोली हिमस्खलन त्रासदी: रेस्क्यू ऑपरेशन खत्म, आठ की मौत, 46 को सुरक्षित बचाया गया

हादसे के वक्त माणा में भारतीय सेना और आईटीबीपी के करीब 250 जवान मौजूद थे। उन्होंने बिना किसी आदेश का इंतजार किए तुरंत बचाव कार्य शुरू कर दिया। सैनिकों ने हाथों से बर्फ हटाकर लोगों को बाहर निकाला।

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Photograph: (IANS)

चमोलीः उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा इलाके में आए भयंकर बर्फीले तूफान और हिमस्खलन ने आठ लोगों की जान ले ली है, जबकि 46 लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया। सेना ने रविवार शाम को बचाव अभियान समाप्त करने की घोषणा की।

शुक्रवार सुबह आए हिमस्खलन के दौरान सीमा सड़क संगठन (BRO) के कैंप में काम कर रहे 55 श्रमिक इसकी चपेट में आ गए। बर्फीले तूफान ने श्रमिकों के रहने के लिए बने स्टील कंटेनरों और एक शेड को सैकड़ों मीटर दूर अलकनंदा नदी की ओर धकेल दिया। इस घटना में आठ श्रमिकों की मौत हो गई, जबकि 46 को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। एक श्रमिक खुद अपने घर पहुंच गया। चार के शव रविवार को बरामद हुए।

ब्रिगेड कमांडर ब्रिगेडियर मनदीप ढिल्लों ने बताया कि रविवार को बर्फ में दबे आठवें शव के मिलने के बाद बचाव अभियान समाप्त कर दिया गया। उन्होंने कहा, “यह अभियान चुनौतीपूर्ण था, लेकिन सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ और राज्य प्रशासन के संयुक्त प्रयासों से बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाई जा सकी।”

स्टील कंटेनरों ने बचाई कई जिंदगियां

बचाव अधिकारियों के मुताबिक, स्टील के बने मजबूत कंटेनरों ने कई श्रमिकों की जान बचाने में अहम भूमिका निभाई। इन कंटेनरों को प्रबलित स्टील से बनाया गया था, जो भारी बर्फ के भार को सहन कर सकते थे। कंटेनरों के अंदर फंसे श्रमिकों के पास सिर्फ इतना ऑक्सीजन था कि वे राहत दल के पहुंचने तक जिंदा रह सके।

एक वरिष्ठ बचाव अधिकारी ने कहा, “अगर ये श्रमिक बैरकों या तंबुओं में होते, तो उनके बचने की संभावना बहुत कम होती। इन कंटेनरों ने उन्हें कुचलने से बचाया और अंदर हवा को बंद रखते हुए उन्हें जिंदा रखा।”

फौरन बचाव अभियान ने बचाई कई जानें

हादसे के वक्त माणा में भारतीय सेना और आईटीबीपी के करीब 250 जवान मौजूद थे। उन्होंने बिना किसी आदेश का इंतजार किए तुरंत बचाव कार्य शुरू कर दिया। सैनिकों ने हाथों से बर्फ हटाकर लोगों को बाहर निकाला।

आईटीबीपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यहां सीमा चौकी पर सैनिकों की तैनाती की वजह से बचाव अभियान तुरंत शुरू हो सका। अगर सेना यहां मौजूद नहीं होती, तो राहत दल के पहुंचने में कई घंटे लग सकते थे और इससे मौतों की संख्या बढ़ सकती थी।”

बचाए गए घायल श्रमिकों को सेना और आईटीबीपी के मेडिकल निरीक्षण (MI) कमरों में तत्काल प्राथमिक उपचार दिया गया। 

खराब मौसम बना चुनौती

पूरे राहत अभियान के दौरान भारी बर्फबारी और बारिश ने बचाव कार्य में बाधा डाली। सेना ने विशेष टोही रडार, ड्रोन, क्वाडकॉप्टर और हिमस्खलन बचाव में माहिर खोजी कुत्तों की मदद से लापता लोगों को खोजने का प्रयास किया। हेलीकॉप्टरों के जरिए बचाव उपकरण और घायल श्रमिकों को अस्पताल पहुंचाया गया।

भारतीय सेना की मध्य कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता ने बचाव अभियान की स्वयं निगरानी की। उन्होंने हिमस्खलन स्थल का दौरा कर बचाव कार्यों का जायजा लिया।

भारतीय सेना ने इस प्राकृतिक आपदा में जान गंवाने वाले श्रमिकों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है। सेना ने उन सभी कर्मियों की सराहना की, जिन्होंने बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में जान की परवाह किए बिना बचाव कार्यों को अंजाम दिया।

प्रशासन ने इस हादसे की जांच के आदेश दे दिए हैं। राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा की है।

हिमस्खलन के कहर से मुश्किल होता है बचना

हिमालय के दुर्गम इलाकों में आने वाले हिमस्खलन और हादसे बेहद घातक साबित होते हैं। ऐसे हालातों में जिंदा बच पाना किसी चमत्कार से कम नहीं होता। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि हिमस्खलनों में अब तक 140 से ज्यादा लोग फंस चुके हैं, जिनमें करीब 70 लोगों की जान जा चुकी है।

उत्तराखंड में पर्वतारोहियों से लेकर जम्मू-कश्मीर और सिक्किम में ट्रैकर्स, सैनिकों और पर्यटकों तक – ये प्राकृतिक आपदाएं बार-बार भारत के पर्वतीय क्षेत्रों को अपनी चपेट में लेती रही हैं। इन खतरनाक परिस्थितियों में बचाव अभियान ही जीवन और मृत्यु के बीच का अंतर बन जाते हैं।

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