नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए कहा है कि सीबीआई को राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में तैनात केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्य सरकार से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने यह फैसला आंध्र प्रदेश में कार्यरत केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसी एक्ट) के तहत दो एफआईआर दर्ज को चुनौती दिए जाने के मामले में दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले को भी पलट दिया जिसमें इन कर्मचारियों के खिलाफ सीबीआई जांच की कार्रवाई को रद्द करने का आदेश दिया गया था।
क्या था मामला?
दरअसल, केंद्र सरकार के दोनों आरोपी कर्मचारियों ने उनके खिलाफ प्राथमिकी के खिलाफ पहले आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का रुख किया था। इन्होंने दलील दी थी कि अविभाजित आंध्र प्रदेश राज्य की ओर से दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (डीएसपीई) के तहत सीबीआई के लिए दी गई सामान्य सहमति अब राज्य के बंटवारे के बाद मान्य नहीं हो सकती। इनका कहना था कि अब नए गठित आंध्र प्रदेश राज्य से सीबीआई को जांच के लिए एक नई सहमति लेने की जरूरत है। इसके बाद हाई कोर्ट ने सीबीआई को कार्रवाई रोकने का आदेश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सीटी रविकुमार और राजेश बिंदल की पीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के इस आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने नियमों की हाई कोर्ट द्वारा व्याख्या से असहमति जताते हुए माना कि 1990 के सरकारी आदेश के अनुसार डीएसपीई अधिनियम के अधिकार क्षेत्र के तहत मामलों की जांच के लिए सीबीआई को सामान्य सहमति दी गई थी। फिर, बाद के आदेशों से इस सामान्य सहमति को नए आंध्र प्रदेश में भी बढ़ाया गया।
इसके अलावा, कोर्ट ने इस तथ्य का भी जिक्र किया वर्तमान मामले में, कथित अपराध केंद्र सरकार के कानून के तहत केंद्र सरकार के कर्मचारी के खिलाफ थे।
कोर्ट ने ऐसे में स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार के किसी कर्मचारी के खिलाफ केंद्रीय कानून के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं है, भले ही कर्मचारी उस राज्य में तैनात हो। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने यह व्याख्या करने में गलती की कि ऐसे मामलों में राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता होती है।
सीबीआई और सहमति का विवाद
सीबीआई दरअसल डीएसपीई एक्ट (दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट) के अंतर्गत आती है। इसके अनुसार राज्यों को राज्य के भीतर केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एजेंसी को सहमति देने की आवश्यकता होती है। ऐसा इसलिए कि कानून व्यवस्था और पुलिस राज्य सरकारों के अंतर्गत आती है।
हर मामले के लिए अलग-अलग सहमति जारी करने से बचने के लिए राज्य आम तौर पर सीबीआई को एक व्यापक सामान्य सहमति जारी कर देते हैं। हालांकि, सामान्य सहमति वापस लेने के बाद, एजेंसी को राज्यों में प्रत्येक मामले की जांच करने की अनुमति लेनी होती, और राज्य इससे इनकार भी कर सकते हैं।
हाल में पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने सामान्य सहमति वापस ली है। आंध्र प्रदेश ने भी चंद्रबाबू नायडू सरकार के दौरान नवंबर 2018 में सहमति वापस ले ली थी, लेकिन जून 2019 में जगन मोहन रेड्डी सरकार ने इसे बहाल कर दिया था।