नई दिल्ली: दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मंगलवार को नई आबकारी नीति मामले के संबंध में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की ताजा रिपोर्ट की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की। रिपोर्ट में बताया गया है कि आबकारी विभाग की नीतियों और उनके क्रियान्वयन में पारदर्शिता की कमी रही, जिससे सरकार को लगभग ₹2,002.68 करोड़ का नुकसान हुआ।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सरकार से संबंधित भारत के कैग द्वारा दिल्ली में शराब के विनियमन एवं आपूर्ति पर निष्पादन लेखा परीक्षा प्रतिवेदन वर्ष 2024 का प्रतिवेदन संख्या 1 की प्रतियां सदन पटल पर प्रस्तुत करती हूं।

बता दें कि दिल्ली सरकार के कुल कर राजस्व का लगभग 14% योगदान आबकारी विभाग से आता है। यह विभाग शराब और नशीले पदार्थों के व्यापार को नियंत्रित और विनियमित करता है, साथ ही शराब की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की भी जिम्मेदारी निभाता है। 1 जुलाई 2017 से जीएसटी लागू होने के बाद, मानव उपभोग के लिए शराब ही एकमात्र ऐसा उत्पाद था जिस पर उत्पाद शुल्क लागू रहा। इसलिए, आबकारी विभाग का मुख्य राजस्व शराब की बिक्री से आता है।

कैग रिपोर्ट में बताया कितना हुआ घाटा 

कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि शराब नीति में कई अनियमितताएं और लापरवाह फैसले लिए गए, जिससे दिल्ली सरकार को बड़ा नुकसान हुआ
 941.53 करोड़ का नुकसान – कई जगहों पर खुदरा शराब की दुकानें नहीं खुलीं
890 करोड़ का घाटा – सरेंडर किए गए लाइसेंसों को दोबारा नीलाम करने में सरकार नाकाम रही
144 करोड़ की छूट – कोविड-19 का बहाना बनाकर शराब कारोबारियों को दी गई
27 करोड़ का नुकसान – शराब कारोबारियों से उचित सुरक्षा जमा राशि नहीं ली गई

मुख्यमंत्री की तरफ से कैग की रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत किए जाने के बाद विधानसभा के स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने इसकी प्रतियां सदन के अन्य सदस्यों को वितरित करने का निर्देश दिया। इसके बाद विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि मैं आपको भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट को सदन में प्रस्तुत करने से अवगत कराना चाहता हूं। सदन में सीएजी की रिपोर्ट पर चर्चा करने के लिए इसे उजागर करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अब यह रिपोर्ट सदन में विचाराधीन है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि सदन के कई सदस्य पहली बार चुनकर आए हैं। इस पृष्ठभूमि से अवगत होने के बाद उन्हें इसमें रचनात्मक रूप से भाग लेने में मदद मिलेगी।

साल 2017-2018 के बाद नहीं पेश हुई सीएजी रिपोर्ट

उन्होंने आगे कहा कि सीएजी एक संवैधानिक संस्था है। यह संस्था जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा देती है। इसे संवैधानिक प्रहरी भी कहा जाता है। इसकी कार्यप्रणाली को सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की मूल संरचना कहा है। सीएजी जनता, विधायिका और कार्यपालिका को यह स्वतंत्र और विश्वसनीय आश्वासन देती है कि एकत्रित सार्वजनिक धन का प्रभावी ढंग से कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि वर्ष 2017 और 2018 के बाद सीएजी की रिपोर्ट को सदन में प्रस्तुत नहीं किया गया। इस संबंध में विपक्ष के तत्कालीन नेता के नेतृत्व में तत्कालीन विधायकों ने सीएजी की रिपोर्ट को सदन में प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति, तत्कालीन मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से अनुरोध किया था कि राज्य की वित्तीय हालत के बारे में जानकारी प्राप्त करना जरूरी है। मैं इस बात से पीड़ित हूं कि सीएजी रिपोर्ट को दबा दिया गया। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने सीएजी की रिपोर्ट को सदन में प्रस्तुत न करके संवैधानिक प्रावधानों का जानबूझकर उल्लंघन किया।