बदायूंः संभल के जामा मस्जिद पर जारी विवाद के बीच बदायूं स्थित जामा मस्जिद भी चर्चा में है। यहां जामा मस्जिद और नीलकंठ महादेव मंदिर को लेकर चल रहे विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। यह मामला सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में विचाराधीन है। मंगलवार को हुई सुनवाई में मुस्लिम पक्ष की बहस पूरी नहीं हो सकी। जिसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 10 दिसंबर तय कर दी।
यह मामला 2022 में तब शुरू हुआ जब वादी मुकेश पटेल ने याचिका दायर कर दावा किया कि जामा मस्जिद के स्थान पर नीलकंठ महादेव मंदिर मौजूद था। याचिका में इस स्थल पर हिंदू पूजा के अधिकार की मांग की गई थी। इस पर कोर्ट ने सुनवाई शुरू की और पहले सरकारी पक्ष की बहस पूरी हुई। अब कोर्ट को यह तय करना है कि मामला सुनवाई योग्य है या नहीं।
हिंदू पक्ष ने मस्जिद के मंदिर होने का किया दावा
हिंदू महासभा के वकील विवेक रेंडर ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उनके पास पर्याप्त प्रमाण हैं जो यह साबित करते हैं कि विवादित संपत्ति एक हिंदू मंदिर है। उन्होंने कहा, “हमने संपत्ति के कागजात और पुरातात्विक प्रमाण पेश किए हैं जो इसे जामा मस्जिद के रूप में प्रमाणित नहीं करते। हमारा केवल यह अनुरोध है कि यहां पूजा में कोई रुकावट न आए।”
वकील रेंडर ने कहा कि हम चाहते हैं कि जो पूजा अर्चना होती चली आ रही है, उसमें कोई व्यवधान उत्पन्न न किया जाए। हमे पूजा अर्चना करने की अनुमति प्रदान की जाए। जिला गजेटियर में राजा लखनपाल का जिक्र है। उन्हीं के परिवार से ये प्रॉपर्टी आती है। लखनपाल बदायूं जिले के आखिरी राजा थे।
उन्होंने यह भी कहा कि विशेष उपासना स्थल अधिनियम, 1991 और वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होते क्योंकि यह संपत्ति पुरातत्व विभाग के अधीन है।
#WATCH | Petition against Shamsi Shahi mosque in Budaun | Advocate Vivek Render says, “We have all the evidence that property in dispute is a Hindu temple. We only want that prayer – that the worship that has been going on – that is not to be interrupted and it continues… We… pic.twitter.com/TfBU3DZAnR
— ANI (@ANI) December 3, 2024
मुस्लिम पक्ष की दलील- मुकदमे का कोई आधार नहीं
मुस्लिम पक्ष के वकील अनवर आलम और अस्रार अहमद सिद्दीकी ने इस मामले को “फर्जी और शांति भंग करने की कोशिश” करार दिया। अनवर आलम ने कोर्ट में दलील दी कि मुकदमे का कोई आधार नहीं है। उन्होंने कहा, “सरकार के गजेटियर में जामा मस्जिद को धरोहर स्थल के रूप में दर्ज किया गया है। केवल माहौल बिगाड़ने के उद्देश्य से यह मुकदमा दायर किया गया है।”
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि वादी प्रत्यक्ष नहीं है और हिंदू महासभा को मुकदमा दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। आलम ने यह भी कहा, “अगर मंदिर का अस्तित्व नहीं है तो सर्वेक्षण की मांग क्यों की जा रही है?” मुस्लिम पक्ष के वकील असरार अहमद सिद्दीकी ने भी वही बात दोहरायी। उन्होंने कहा, “जो मामला दर्ज किया गया है वह फर्जी है। यह शांति भंग करने के लिए किया गया है। उनका (हिंदू पक्ष का) इस मस्जिद पर कोई अधिकार नहीं है…”
#WATCH | On Budaun’s Jama Masjid Shamsi case, advocate representing the Muslim side, Asrar Ahmed Siddiqui says, “The case that has been filed is fake. It has been done to disturb the peace. They (the Hindu side) have no rights over this mosque…” pic.twitter.com/fafoH74vkI
— ANI (@ANI) December 3, 2024
संभव विवाद के बाद गहराया मुद्दा
यह विवाद तब और गहरा गया जब 24 नवंबर को संभल जिले में एक मुगलकालीन मस्जिद के एएसआई सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क गई। इस हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई और कई पुलिसकर्मी व स्थानीय लोग घायल हो गए। इस घटना के बाद प्रशासन ने 27 लोगों को गिरफ्तार किया। अब 10 दिसंबर को कोर्ट यह तय करेगा कि यह मामला सुनवाई योग्य है या नहीं। इस बीच दोनों पक्ष अपने-अपने दावे मजबूत करने में जुटे हुए हैं।