नई दिल्लीः बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपने कैडर के साथ होने वाली बैठक में समर्थकों से पैसा लेने की प्रथा को बंद करने का निर्णय लिया है। इस कदम से पार्टी के संसाधनों पर प्रभाव पड़ सकता है। वहीं, यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब पार्टी अपनी चुनावी गिरावट को थामने की कोशिश कर रही है। 

इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि पार्टी के नेता इन दिनों समर्थकों से पैसा मांगने में असहज महसूस कर रहे हैं क्योंकि पार्टी इन दिनों चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही है।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पूर्व में पार्टी के नेता समर्थकों से उनकी इच्छानुसार समर्थन देने के लिए कहते थे। नेता ने कहा कि यह तब किया जाता था जब राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की स्थिति मजबूत थी और तब लोग खुशी-खुशी योगदान देते थे।

हालिया चुनावों में गिर रहा है बसपा का ग्राफ

हालांकि जब से पार्टी चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही और इसका प्रदर्शन गिरता जा रहा है। नेता ने आगे कहा कि चूंकि हमारे अधिकतर कार्यकर्ता कमजोर वर्गों से आते हैं, इसलिए हमने इस प्रथा को बंद करने का निर्णय लिया है। हालांकि, यदि कोई स्वेच्छा से करना चाहता है तो उनका स्वागत है।

हालांकि पार्टी के सभी नेता इस निर्णय से सहमत नहीं हैं। कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी कार्यकर्ताओं की तरफ से मिलने वाली आर्थिक सहायता और सदस्यता के माध्यम से ही पार्टी को सर्वाधिक फंड मिलता था। एक नेता ने कहा "हम ऐसी पार्टी हैं जो उद्यमियों से फंड नहीं रिसीव करती है जैसा कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स की रिपोर्ट में देखा गया है। "

नेता ने कहा कि हम सदस्यता के लिए हर सदस्य से 50 रुपये लेते हैं। बीते साल हुए लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन के बाद पार्टी ने सदस्यता शुल्क 200 रुपये से घटाकर 50 रुपये करने का निर्णय लिया था। पार्टी का कहना था कि इससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और ग्रामीण क्षेत्रों के लोग जुडेंगे। 

सदस्यता शुल्क और फीस से अर्जित की राशि

हालांकि, चुनाव आयोग के पास जमा की गई रिपोर्ट के अनुसार बसपा ने साल 2021-22 में फीस और सदस्यता शुल्क के माध्यम से 600 लाख यानी छह करोड़ रुपये अर्जित किए थे। वहीं, साल 2022-23 में इसे दोगुने से अधिक वृद्धि दर्ज की गई। इस दौरान पार्टी को 1,373 लाख यानी 13 करोड़ से अधिक की राशि अर्जित हुई। इसी तरह 2023-24 में पार्टी को 2,659 लाख रुपये यानी 26 करोड़ से अधिक रुपये इस माध्यम से प्राप्त हुए। 

इन तीनों ही वर्षों में पार्टी को मिले फंड में किसी तरह के दान या अनुदान से प्राप्त राशि का उल्लेख नहीं किया है। 

साल 2007 में उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने से पहले पार्टी की कैडर बैठकें संगठन को मजबूत करने महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती थीं। हालांकि, मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद ये बैठकें बंद हो गईं थीं और अभी हाल ही में फिर से शुरू किया गया था। लेकिन तब से ये बैठकें अनियमित हो गईं हैं। 

400 लोगों की होगी बैठक

एक नेता ने कहा कि बंद कमरे में होने वाली प्रत्येक बैठक में दलित, आदिवासी, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले 400 लोगों को बुलाया जाएगा। 

उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में मार्च से कैडर बैठकें शुरू हुईं। बसपा के एक नेता ने दावा किया कि इस समय चल रहे सदस्यता अभियान के बाद अक्तूबर में एक बार फिर इसी तरह की बैठकों का आयोजन किया जाएगा। ये बैठकें पूरे देश में आयोजित की जाएंगी। वहीं, पार्टी प्रमुख मायावती बसपा को मजबूत बनाने के लिए विभिन्न राज्यों में सार्वजनिक बैठकों को संबोधित कर सकती हैं। 

बसपा अपने पारंपरिक दलित वोटर आधार को बड़ा करना चाहती है और इसके लिए वह अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच अपनी पहुंच बढ़ा रही है।

गौरतलब है कि साल 2012 से पहले ओबीसी की कई जातियां बसपा के साथ थीं और सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन जातियों में राजभर, निषाद, मौर्य, कुशवाहा, सैनी और कुर्मी हैं। हालांकि बाद में इनका रुख समाजवादी पार्टी की तरफ हो गया और 2012 विधानसभा चुनाव में बसपा को हार का सामना करना पड़ा।