'सार्वजनिक स्थलों पर स्तनपान को न मानें कलंक', सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी के साथ केंद्र सरकार को दिए ये निर्देश

शीर्ष कोर्ट ने यह फैसला उस याचिका पर सुनाया, जिसमें सार्वजनिक स्थानों में स्तनपान, बाल देखभाल कक्ष और क्रेच बनाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। पीठ की यह टिप्पणियां संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक के बयान के संदर्भ में आईं।

NAN SCAM, Chhattishgarh, Supreme court,

Photograph: (IANS)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक और कार्यस्थलों में स्तनपान करवाने को कलंक नहीं माना जाना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सार्वजनिक भवनों में स्तनपान व बाल देखभाल कक्ष बनाने के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से जारी सलाह पर कार्रवाई का निर्देश भी दिया।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने कहा, देश के नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 51 ए (ई) में निहित महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं को त्यागने के उनके कर्तव्य की याद दिलाना गलत नहीं होगा। अपने बच्चों को स्तनपान कराने के लिए माताओं के अधिकार के प्रयोग को सुविधाजनक बनाने के सरकार के कर्तव्य के अलावा, नागरिकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सार्वजनिक स्थानों व कार्यस्थलों पर स्तनपान की प्रथा को कलंकित नहीं किया जाए। शीर्ष कोर्ट ने यह फैसला उस याचिका पर सुनाया, जिसमें सार्वजनिक स्थानों में स्तनपान, बाल देखभाल कक्ष और क्रेच बनाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। पीठ की यह टिप्पणियां संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक के बयान के संदर्भ में आईं। उसके अनुसार, सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान को कलंकित माना जाना महिलाओं को गैरजरूरी तनाव और दबाव का शिकार बनाता है।  

पीठ ने कहा, स्तनपान बच्चे के जीवन, अस्तित्व व सेहत के उच्चतम प्राप्य मानक के विकास के अधिकार का अभिन्न अंग है। यह मां व बच्चे दोनों के स्वास्थ्य व कल्याण के लिए जरूरी है। शिशु का स्वास्थ्य महिलाओं की स्थिति और मां के रूप में तथा देश के सामाजिक व आर्थिक विकास में योगदानकर्ता के रूप में उनकी भूमिका से जुड़ा है।

माताओं को स्तनपान की सुविधा देना सरकार का दायित्व : SC

साथ ही शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि बच्चे को स्तनपान कराने का अधिकार मां के साथ ही अटूट रूप से जुड़ा है, ऐसे में यह सरकार का दायित्व है कि वह माताओं को अपने बच्चों को स्तनपान कराने की सुविधा देने के लिए पर्याप्त सुविधाएं और वातावरण सुनिश्चित करें। ऐसा अधिकार और दायित्व संविधान के अनुच्छेद 21 और अंतरराष्ट्रीय कानून के साथ-साथ किशोर न्याय ( बच्चों का संरक्षण और देखभाल) अधिनियम, 2015 में निहित बच्चे के सर्वोत्तम हित के मूलभूत सिद्धांत से उत्पन्न होता है।

साथ ही पीठ ने श्रम और रोजगार मंत्रालय के साथ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव की ओर से 27 फरवरी, 2024 को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सार्वजनिक भवनों में स्तनपान/नर्सिंग रूम, क्रेच के लिए जगह आवंटित करने के लिए जारी की गई सलाह पर विचार किया। एडवाइजरी में फीडिंग रूम के लिए जगह आवंटित करने, 50 या अधिक महिला कर्मचारियों वाले हर सार्वजनिक भवन में कम से कम एक क्रेच सुविधा शामिल करने का प्रावधान है। इस पर गौर करते हुए पीठ ने कहा कि यह सलाह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15(3) के तहत मौलिक अधिकारों के अनुरूप है। कोर्ट ने कहा, हम मानते हैं कि मौजूदा सार्वजनिक स्थानों पर जहां तक संभव हो, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन निर्देशों को प्रभावी बनाया जाए।  

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