मुंबईः बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि एक बीमाधारक को भारत में बीमार पड़ने के बाद किए गए चिकित्सा खर्चों के लिए ओवरसीज ट्रैवल इंश्योरेंस पॉलिसी के तहत दावा करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने इस मामले को वापस मुंबई के बीमा लोकपाल (ओम्बड्समैन) के पास भेज दिया है, साथ ही टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की याचिका को स्वीकार कर लिया है।
टाटा एआईजी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर लोकपाल के 4 मई के निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें बीमाधारक को भारत में जारी इलाज के लिए उसकी यात्रा पॉलिसी के तहत दावे की अनुमति देने का निर्देश दिया गया था।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल बीमाधारक ने 17 जनवरी 2023 से 16 मई 2023 तक टाटा एआईजी से “ट्रैवल गार्ड पॉलिसी सिल्वर विदआउट सब लिमिट्स” नामक ओवरसीज ट्रैवल इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी। बीमीत व्यक्ति और उसकी पत्नी 3 मई को यूरोप यात्रा पर गए।
बीमाधारक ने दावा किया कि यात्रा के दौरान उसे चक्कर आने की समस्या हुई और उसने रोम में इसका इलाज कराया। हालांकि, उन्हें अपनी यात्रा बीच में ही छोड़कर 10 मई को भारत लौटना पड़ा, जहां उन्होंने इलाज जारी रखा। बीमाधारक को 15 से 22 मई तक अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां उन्हें दाहिनी कोस्टेरोलेट्रल मेडुला में सबएक्यूट्स इन्फार्क्ट का इलाज हुआ।
बीमाधारक ने अस्पताल में भारत में अपने इलाज के खर्चों के लिए बीमा कंपनी के पास दावा प्रस्तुत किया। टाटा एआईजी ने बीमा पॉलिसी की शर्तों और नियमों के आधार पर दावे को खारिज कर दिया। शिकायत दर्ज होने पर, बीमा लोकपाल ने कंपनी को बीमाधारक का पूरा दावा प्रक्रिया में लेने का निर्देश दिया।
टाटा एआईजी के वकील ने तर्क दिया कि लोकपाल ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि पॉलिसी की शर्तों के अनुसार, बीमाधारक को भारत में चिकित्सा खर्चों के संबंध में कोई दावा करने का अधिकार नहीं था।
टाटा एआईजी ने दावा किया कि लोकपाल ने गलत तरीके से यह निर्णय सुनाया कि कंपनी यदि विदेश में चिकित्सा खर्चों का भुगतान करने के लिए तैयार है, तो यह माना जाता है कि भारत में किया गया इलाज, विदेश में शुरू हुए इलाज की निरंतरता है और इसलिए इसकी अनुमति दी गई है।
हालांकि, बीमाधारक ने कहा कि चूंकि वह इतनी गंभीर रूप से बीमार हो गए थे कि उन्हें अपनी यात्रा रद्द कर भारत लौटना पड़ा, इसलिए उन्हें इन खर्चों की वसूली का अधिकार है।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति आर.एम. जोशी ने 14 अगस्त को कहा, “सिर्फ इस आधार पर कि बीमाकर्ता विदेश में चिकित्सा खर्चों का भुगतान करने के लिए सहमत हो गया है, यह नहीं माना जा सकता कि बीमाकर्ता भारत में किए गए चिकित्सा उपचार के लिए भी जिम्मेदार है।”
इसके अलावा, यह साबित नहीं किया गया है कि भारत में किया गया इलाज विदेश में शुरू हुए इलाज की निरंतरता कैसे है, जब बीमाधारक ने दावा किया कि उन्हें चक्कर आने (वर्टिगो) का इलाज किया गया था।
जज ने कहा, “स्वीकार किया गया है कि बीमाधारक को भारत में वर्टिगो के लिए नहीं, बल्कि अन्य बीमारी के लिए इलाज किया गया था… और जब तक पॉलिसी की किसी शर्त या बीमाकर्ता द्वारा पहले से कोई ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं की जाती, तब तक बीमाकर्ता पर ऐसी कोई ज़िम्मेदारी नहीं डाली जा सकती।”