बाबूलाल मरांडी का झारखंड ट्रेजरी से 2,812 करोड़ गायब होने का आरोप, सरकार से पूछा सवाल

भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा, मार्च 2023 में गठित उच्चस्तरीय समिति ने इस मुद्दे की समीक्षा की थी, लेकिन इसके बाद भी रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

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bjp leader Babulal Marandi says Jharkhand govt should tell where treasury rs 2812 crore gone

झारखंड सरकार को बताना चाहिए ट्रेजरी से निकाले गए 2,812 करोड़ रुपये कहां गए: बाबूलाल मरांडी (फोटो- IANS)

रांची: झारखंड की ट्रेजरी से निकाले गए 2,812 करोड़ रुपए का हिसाब नहीं मिलने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। ट्रेजरी से 2,812 करोड़ गायब होने को लेकर भाजपा नेता और प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्य सरकार पर निशाना साधा है।

बाबूलाल मरांडी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि 2800 करोड़ से ज्यादा रुपए कहां गायब हो गए, यह सरकार को बताना चाहिए। ऐसी लापरवाही नहीं चल सकती। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि शायद इन लोगों ने अपनी तिजोरी भर ली है, कहां क्या किया है यह जांच का विषय है।

मरांडी ने आगे कहा है कि सरकार को जनता को बताना चाहिए पैसा कहां गया है। पैसा जनता का होता है, यह जनता का पैसा है। अगर पैसा इधर से उधर होता है, गायब होता है, उसका हिसाब नहीं मिलता है तो उसके लिए सरकार जिम्मेदार है। सरकार को बताना चाहिए कि पैसा कहां गया?

बाबूलाल मरांडी ने सरकारी खजाने में गबन का किया दावा

बता दें कि इससे पहले बाबूलाल मरांडी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट कर कहा, "झारखंड सरकार के खजाने से 2,812 करोड़ रुपए के गबन का गंभीर मामला सामने आया है। यह राशि पिछले कई सालों में एसी-डीसी बिल के तहत एडवांस के रूप में निकाली गई, लेकिन अब तक इसका कोई हिसाब नहीं दिया गया। महालेखाकार (सीएडी) ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि 4,937 करोड़ रुपए के डीसी बिल लंबित हैं, जिनमें से सिर्फ 1,698 करोड़ रुपए का समायोजन हुआ है।"

पिछले साल उच्चस्तरीय समिति ने की थी समीक्षा

बाबूलाल मरांडी ने आगे कहा, "रिपोर्ट के अनुसार, विशेष रूप से ग्रामीण विकास विभाग से 411 करोड़ रुपए अन्य विभागों ने निकाले, जिसका कोई हिसाब नहीं। नियमों के अनुसार, एडवांस में निकाली गई राशि का उपयोग और हिसाब एक महीने के भीतर देना अनिवार्य है, लेकिन राज्य सरकार के कई विभाग इस प्रक्रिया को सालों से नजरअंदाज कर रहे हैं। मार्च 2023 में गठित उच्चस्तरीय समिति ने इस मुद्दे की समीक्षा की थी, लेकिन इसके बाद भी रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। गबन का यह मामला न केवल सरकारी तंत्र की उदासीनता को दर्शाता है, बल्कि वित्तीय पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल उठाता है।"

(यह आईएएनएस समाचार एजेंसी की फीड द्वारा प्रकाशित है। इसका शीर्षक बोले भारत न्यूज डेस्क द्वारा दिया गया है।)

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