सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बिहार में मतदाता सूची की विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया ‘वोटर-फ्रेंडली’, 7 की जगह 11 दस्तावेज मान्य

बिहार में मतदाता सूचियों के 'विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR)' के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया का समर्थन किया। पीठ ने कहा, "ईसीआई पहचान के लिए दस्तावेजों की संख्या बढ़ा रही है। हम बहिष्कृत करने वाली दलीलों को समझते हैं, लेकिन दस्तावेजों की संख्या 7 से बढ़ाकर 11 करना वास्तव में मतदाता-अनुकूल है..

SUPREME COURT TO HEAR PETITIONS AGAINST EC SIR ORDER AHEAD OF BIHAR ASSEMBLY ELECTIONS

सुप्रीम कोर्ट में SIR मामले में सुनवाई। Photograph: (बोले भारत डेस्क)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया को “वोटर-फ्रेंडली” बताया। कोर्ट ने कहा कि इसमें पहचान पत्रों की सूची का विस्तार किया गया है और आधार को लेकर जताई गई आशंकाओं को खारिज किया।

बिहार में मतदाता सूचियों के 'विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR)' के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया का समर्थन किया। पीठ ने कहा, "ईसीआई पहचान के लिए दस्तावेजों की संख्या बढ़ा रही है। हम बहिष्कृत करने वाली दलीलों को समझते हैं, लेकिन दस्तावेजों की संख्या 7 से बढ़ाकर 11 करना वास्तव में मतदाता-अनुकूल है, न कि बहिष्कृत करने वाला।" कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि अगर किसी गणना फॉर्म में वैधानिक फॉर्म भी शामिल हो, तो क्या यह उल्लंघन होगा या अधिक समावेशी अनुपालन?

हालाँकि, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस प्रक्रिया के समय पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि 2003 में इसी तरह का पुनरीक्षण संसदीय चुनाव से एक साल पहले हुआ था, जबकि यह पुनरीक्षण बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जुलाई में क्यों किया जा रहा है। सिंघवी ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने नागरिकता के प्रमाण पर अपनी स्थिति से 180 डिग्री का यू-टर्न लिया है। उन्होंने कहा, “पहले किसी को नागरिक न होने का आपत्ति दर्ज करनी होती थी, फिर ईआरओ नोटिस देता था और जवाब देने का समय मिलता था। लेकिन अब दो महीने में इतने व्यापक काम कैसे होंगे? अगर एसआईआर दिसंबर से शुरू हो और एक साल में हो तो किसी को ऐतराज नहीं होगा।”

सिंघवी ने कहा कि फॉर्म-6 के तहत अब भी आधार एक मान्य दस्तावेज है, लेकिन वर्तमान व्यवस्था में यह मान लिया गया है कि 2003 से 2025 के बीच पंजीकृत हर व्यक्ति ‘बहिष्कृत’ है, जब तक वह विपरीत साबित न करे।

उन्होंने समय पर भी सवाल उठाए—“2003 का एसआईआर लोकसभा चुनाव से एक साल पहले हुआ था। फिर बिहार में जुलाई में क्यों शुरू किया जा रहा है? क्यों न अरुणाचल से शुरू करें, जहां 2026 में चुनाव हैं, या लक्षद्वीप से, जहां 2028 में चुनाव हैं?”

क्या है बिहार का विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR)?

बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूचियों की सटीकता में सुधार के लिए SIR की शुरुआत की गई है। यह 2003 के बाद मतदाता सूचियों का पहला पूर्ण-स्तरीय पुनरीक्षण है। इसके तहत, 2003 की सूची में नहीं शामिल मतदाताओं को नागरिकता की स्व-घोषणा के साथ जन्मस्थान का प्रमाण देना होगा।

विरोधियों का कहना है कि यह प्रक्रिया बिहार के लगभग दो करोड़ मतदाताओं को मतदान के अधिकार से वंचित कर सकती है। वहीं, चुनाव आयोग ने एसआईआर का बचाव करते हुए इसे एक पारदर्शी और समावेशी प्रक्रिया बताया है और आश्वासन दिया है कि "किसी भी योग्य नागरिक को बाहर नहीं छोड़ा जाएगा।"

राहुल गांधी के 'वोट चोरी' के आरोपों पर ECI का पलटवार

बुधवार को चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों पर फिर जवाब देते हुए इसे झूठा और भ्रामक बताया है। आयोग ने कहा कि मतदाता सूचियाँ कानून के अनुसार, विशेषकर निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण नियम, 1960 के तहत तैयार की जाती हैं। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि किसी भी मतदाता का नाम बिना उचित कानूनी प्रक्रिया और ठोस सबूत के मनमाने ढंग से नहीं हटाया जा सकता।

आयोग ने आरोप लगाने वालों को चुनौती दी कि वे अपने दावों को शपथ पत्र के साथ औपचारिक रूप से प्रस्तुत करें। चुनाव आयोग ने चेतावनी दी कि केवल आरोपों के आधार पर नोटिस जारी करने से हजारों योग्य मतदाताओं को अनावश्यक रूप से परेशान किया जा सकता है। अंत में, चुनाव आयोग ने यह कहते हुए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई कि "चुनाव आयोग हर योग्य मतदाता के साथ था, है और हमेशा रहेगा," और देश की चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता की रक्षा के लिए वह पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।

गौरतलब है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपने 'votechori.in' अभियान और 'एक व्यक्ति, एक वोट' के सिद्धांत पर हमले का आरोप लगाते हुए, चुनाव आयोग पर बड़े पैमाने पर मतदाता धोखाधड़ी में शामिल होने का आरोप लगाया है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से डिजिटल मतदाता सूचियाँ जारी करने की मांग की, ताकि नागरिक और राजनीतिक दल स्वतंत्र रूप से उनका ऑडिट कर सकें।

 

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