नई दिल्ली: नीतीश कुमार सरकार को झटका देते हुए केंद्र ने सोमवार को बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से इनकार कर दिया। नीतीश कुमार एनडीए के सहयोगी हैं और लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बिहार के लिए स्पेशल स्टेटस की मांग के मुद्दे ने फिर जोर पकड़ लिया था। हालांकि, लोकसभा में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने मानसून सत्र के पहले दिन सोमवार को एक लिखित उत्तर में साफ कर दिया कि बिहार की ये मांग पूरी नहीं होने जा रही है। उन्होंने कहा कि अतीत में राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) द्वारा कुछ राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया। इसकी वजह इन राज्यों से जुड़ी विशेष परिस्थितियां थी।
बिहार की मांग क्यों हुई खारिज?
वित्त राज्य मंत्री चौधरी ने कहा कि एनडीसी द्वारा अतीत में विशेष श्रेणी का दर्जा कुछ विशेषताओं के आधार पर दिया गया था। उन्होंने कहा कि कुछ खास वजहों से इन राज्य पर विशेष ध्यान देने की जरूरत थी, जैसे कि पहाड़ी और कठिन भूभाग, कम जनसंख्या घनत्व या जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा होना, पड़ोसी देशों के साथ सीमा और रणनीतिक लिहाज से उसका महत्व, आर्थिक और ढांचागत पिछड़ापन।
मंत्री ने कहा कि इन वजहों के आधार पर निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा, ‘इससे पहले, विशेष श्रेणी (स्पेशल कैटेगरी स्टेटस) की स्थिति के लिए बिहार के अनुरोध पर एक अंतर-मंत्रालयी समूह (आईएमजी) ने विचार किया था, जिसने 30 मार्च 2012 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। आईएमजी ने निष्कर्ष निकाला कि मौजूदा एनडीसी मानदंडों के आधार पर विशेष श्रेणी की स्थिति का मामला बिहार के लिए नहीं बनता है।’
सरकार ने पहले भी तर्क दिया है कि 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट ने किसी और राज्य को ये दर्जा दिए जाने की संभावना को खारिज कर दिया है। विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर लाभार्थी राज्यों के लिए कर राहत और केंद्र से ज्यादा फंडिंग जैसे फायदे मिलते हैं।
क्या होता है विशेष राज्य का दर्जा?
विशेष श्रेणी के दर्जे के मुद्दे को पहली बार 1969 में राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की बैठक में उठाया गया था। इस बैठक के दौरान, डीआर गाडगिल समिति ने भारत में राज्यों से संबंधित योजनाओं के लिए केंद्रीय सहायता आवंटित करने का एक अलग फॉर्मूला पेश किया। इससे पहले राज्यों को धन वितरण के लिए कोई विशेष फॉर्मूला नहीं था और योजना के आधार पर अनुदान दिया जाता था।
हालांकि, एनडीसी द्वारा अनुमोदित गाडगिल फॉर्मूला ने असम, जम्मू और कश्मीर और नागालैंड जैसे राज्यों को विशेष श्रेणी देने की बात कही। पांचवें वित्त आयोग ने 1969 में विशेष श्रेणी की स्थिति की अवधारणा पेश की। इस स्थिति में कुछ पिछड़े राज्यों को केंद्रीय सहायता और कर छूट सहित अन्य लाभ प्रदान करने की बात कही गई। इसके बाद राष्ट्रीय विकास परिषद ने इन राज्यों की परिस्थिति के आधार पर केंद्रीय योजना सहायता आवंटित की।
रिकॉर्ड्स के अनुसार 2014-2015 वित्तीय वर्ष तक विशेष श्रेणी के तहत 11 राज्यों को लाभ हुआ। हालांकि, 2014 में योजना आयोग के विघटन और नीति आयोग के गठन के बाद 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया। इससे गाडगिल फॉर्मूला-आधारित अनुदान बंद हो गया।
2015 से प्रभावी 14वें वित्त आयोग ने साझा करने योग्य करों के वितरण में सामान्य श्रेणी और विशेष श्रेणी के राज्यों के बीच के अंतर को समाप्त कर दिया। इसके उलट साल 2015-2020 की अवधि के लिए राज्यों को साझा करने योग्य करों की हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी गई। वर्तमान में, किसी भी अतिरिक्त राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं दिया जा रहा है।
बिहार से क्यों होती रही विशेष राज्य के दर्जे की मांग?
साल 2000 में खनिज संपदा से संपन्न झारखंड से अलग होने के बाद से बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग मुखर रही है। सीएम नीतीश कुमार भी इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। नीतीश बिहार को विशेष राज्या का दर्जा देने के पीछे राज्य के पिछड़ेपन को वजह बताते रहे हैं। इसमें अनुपातहीन रूप से उच्च जनसंख्या भी शामिल है।
बिहार लगातार सबसे गरीब राज्यों में से एक रहा है। सीएम नीतीश कुमार का कहना है कि राज्य में 94 लाख गरीब परिवार हैं और विशेष श्रेणी का स्टेटस देने से सरकार को अगले पांच साल में कल्याणकारी योजनाओं के लिए जरूरी लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
केंद्र की ‘मल्टी-डायमेंशनल पोवर्टी इंडेक्स’ (एमपीआई) रिपोर्ट में भी बिहार को भारत के सबसे गरीब राज्य के रूप में स्थान मिला हुआ है। अनुमान है कि इसकी लगभग 52% आबादी की अपेक्षित स्वास्थ्य, शिक्षा और अच्छे जीवन स्तर तक पहुंच नहीं है। हालांकि, इन सब कारकों पर तो बिहार विशेष श्रेणी के दर्जे के अधिकांश मानदंडों को पूरा करता है, लेकिन यह पहाड़ी इलाकों और भौगोलिक रूप से कठिन क्षेत्रों के मानदंडों को पूरा नहीं करता है।
बिहार और नीतीश कुमार के लिए अब आगे क्या?
जेडीयू नेता विजय चौधरी ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देने के केंद्र सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि हम लोग चाहते हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले। अगर विशेष राज्य के दर्जा देने में दिक्कत है तो हमें विशेष पैकेज मिले।
उन्होंने कहा कि, हमारे मांगने का औचित्य है कि हम लोगों ने अपने सीमित संसाधनों के बल पर इस देश के अन्य प्रदेशों से तेज गति से प्रगति की है। हम लोग अपने सीमित संसाधन से तो पूरी तरह से विकास कर रहे हैं, लेकिन फिर भी हम गरीब हैं। इसलिए हम लोगों को विशेष सहायता और विशेष मदद की जरूरत है। जिसका प्रावधान संविधान और नीति आयोग के मैंडेट में है। इसलिए हम लोग कह रहे हैं कि विशेष राज्य का दर्जा अगर संभव नहीं है तो विशेष पैकेज ही दे।