चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ आरजेडी ने सुप्रीम कोर्ट का खटखटाया दरवाजा Photograph: (IANS)
पटनाः वोटर लिस्ट में संशोधन के खिलाफ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (ADR) के बाद अब राष्ट्रीय जनता दल (यूनाइटेड) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल, चुनाव आयोग ने राज्य में मतदाताओं के सत्यापन के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) शुरू किया है, जिसको लेकर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं।
इसी साल के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्यसभा सांसद और राजद नेता मनोज झा ने सुप्रीम कोर्ट से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार में एसआईआर करने के निर्देश जारी किए थे। इसके तहत 2003 की वोटर लिस्ट में जिन वोटर्स का नाम नहीं था, उन्हें अपनी नागरिकता सिद्ध करनी होगी।
चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों की जारी की सूची
चुनाव आयोग ने इसके लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है। हालांकि, इस लिस्ट में आधार कार्ड और राशन कार्ड को शामिल नहीं है। ऐसे में विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि इन दस्तावेजों को शामिल न करने से वंचित तबके और हाशिए के लोगों के नाम कट सकते हैं।
एडीआर ने भी सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा है इससे लाखों वोटर्स वोट के अधिकार से वंचित हो जाएंगे। एडीआर ने अपनी याचिका में कहा है कि चुनाव आयोग का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद- 14,19,21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है। इसके साथ ही जनप्रतिनिधित्व अधिनियम- 1951 (Representation of People Act) और मतदाता पंजीकरण अधिनियम, 1960 के नियम 21 ए का भी उल्लंघन करता है।
ADR ने EC के आदेश को रद्द करने की मांग की
एडीआर की तरफ से चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को जारी किए गए आदेश को रद्द करने की मांग की गई है। चुनाव आयोग ने कहा है कि ऐसा न करने से लाखों मतदाता वोट के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। याचिका में यह भी कहा गया कि यह कदम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को भी कमजोर कर सकता है। इसके अलावा संविधान के मूल ढांचे पर भी प्रहार कर सकता है।
चुनाव आयोग के आदेश के अनुसार, नागरिकों को अपनी नागरिकता सिद्ध करने के अलावा माता-पिता की भी नागरिकता सिद्ध करनी होगी जो कि संविधान के अनुच्छेद-326 का उल्लंघन करता है। नागरिकता प्रमाण पत्र न देने से वोटर्स को लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा जिससे वे वोट के अधिकार से वंचित हो सकते हैं।
बिहार में इसी साल अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने हैं। याचिका में कहा गया है कि चूंकि 2003 से अब तक लाखों नए वोटर जुड़े हैं, ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास एसआईआर के तहत मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं। ऐसे में उन्हें मतदाता के रूप में संकट का सामना करना पड़ सकता है।