बिहार में 65 फीसदी आरक्षण मामले पर नीतीश सरकार को राहत नहीं, सुप्रीम कोर्ट का पटना हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार

बिहार सरकार ने पिछले साल नवंबर में विधानसभा में इस आरक्षण की घोषणा की थी। घोषणा के बाद इस सिलसिले में एक बैठक भी हुई थी और फिर विधानमंडल के दोनों सदनों में इसे पारित किया गया था।

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सुप्रीम कोर्ट (फोटो- IANS)

पटना: वंचितों, आदिवासियों एवं पिछड़े वर्गों के लिए 65 फीसदी आरक्षण वाले मामले में बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है। उच्चतम न्यायालय ने पटना हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।

बिहार सरकार ने अपनी याचिका में हाई कोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में अंतरिम राहत नहीं दी जाएगी।

ऐसे में कोर्ट के इस आदेश के बाद अब राज्य में पात्रों को अधिकतम 50 फीसदी ही आरक्षण दिया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने सितंबर में याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया है। इस बेंच में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।

बिहार सरकार ने क्या कहा है

बिहार सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने पटना हाई कोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने पर जोर दिया था। श्याम दीवान ने छत्तीसगढ़ के एक ऐसे ही मामले का उदाहरण देते हुए का था कि इस तरह के एक मामले में अंतरिम राहत दी गई थी।

इस पर मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि हाई कोर्ट ने पाया था कि 68 फीसदी सिविल सेवा के पदों पर पहले से ही आरक्षित उम्मीदवारों का कब्जा है।

अंतरिम व्यवस्था के महत्व पर जोर देते हुए श्याम दीवान ने कहा कि इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ को सौंपने की भी आवश्यकता हो सकती है। ऐसे में उन्होंने पीठ से अंतरिम राहत के लिए कम से कम नोटिस जारी करने का आग्रह किया था।

हालांकि अदालत ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह इस स्तर पर अंतरिम राहत प्रदान किए इस मामले की आगे सुनवाई की जाएगी।

क्या है पूरा मामला

दरअसल, बिहार सरकार ने वंचितों, आदिवासियों एवं पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया गया था।

बिहार सरकार ने पिछले साल नवंबर में विधानसभा में इसकी घोषणा की थी। घोषणा के बाद इस सिलसिले में एक बैठक हुई थी और फिर विधानमंडल के दोनों सदनों में इसे पारित किया गया था।

ऐसे में इस फैसले को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी जिसे 20 जून 2024 को कोर्ट ने असंवैधानिक मानते हुए इसे रद्द कर दिया था। इसके बाद तीन जुलाई को बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और इस पर आज कोर्ट में सुनवाई हुई है। कोर्ट ने अब हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।

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