पटना: बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में बढ़ी हुई राजनीतिक सरगर्मी के बीच बुधवार को नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हुआ। मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें ऐसे तो पिछले कई महीनों से लग रही थीं, लेकिन पिछले 24 घंटों में जिस तरह तेजी से पूरी योजना को फाइनल किया गया उसने सभी का ध्यान खींचा।
चुनावी साल में आखिर इस मंत्रिमंडल विस्तार से बिहार में नीतीश सरकार क्या संदेश देना चाहती है? इस मंत्रिमंडल विस्तार में सभी 7 मंत्री भाजपा कोटे से ही क्यों रहे, जदयू से क्यों किसी को शामिल नहीं किया गया? मिथिलांचल से दो विधायकों को मंत्री बनाने के पीछे की क्या रणनीति है और क्या इसके जरिए जाति समीकरण को भी साधने की कोशिश हुई है...आईए इन सभी बिंदुओं को सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं।
राजभवन में शपथ...भाजपा के ये साथ विधायक बने मंत्री
सबसे पहले बात उन भाजपा विधायकों की जिन्हें मंत्री बनाया गया। इनमें संजय सरावगी (दरभंगा), सुनील कुमार (बिहारशरीफ), जीवेश मिश्रा (जाले), कृष्ण कुमार मंटू (छपरा, अमनौर), विजय मंडल (अररिया, सिकटी), राजू सिंह (साहेबगंज) और मोती लाल प्रसाद (रीगा) शामिल हैं।
इनमें 3 पिछड़े, 2 अति पिछड़े और 2 सवर्ण समुदाय से हैं। इन मंत्रियों के शपथ के साथ ही बिहार में कुल मंत्रियों की 36 हो गई है। बिहार में अधिकतम 36 मंत्री ही बनाए जा सकते हैं और इस विस्तार से ये संख्या पूरी हो गई है। इसमें 13 मंत्री जदयू कोटे से हैं। वहीं, भाजपा के कुल 21 मंत्री हो जाते हैं।
जेपी नड्डा के पटना दौरे पर बनी बात
बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर अटकलें पिछले करीब एक साल से चली आ रही थी। हालांकि, हर बार ये टल जा रहा था। पिछले साल के आखिर में ऐसी खबरें आई थीं कि खरमास खत्म (14 जनवरी) के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा। हालांकि, इसके बाद भी डेढ़ महीने बीत गए। इस बीच नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा चल रही थी और इस वजह से भी बात आगे नहीं बढ़ सकी।
इस बीच बजट सत्र भी करीब आ गया है। 28 फरवरी से बिहार विधानसभा का बजट सत्र शुरू होना है। इसके बाद चुनाव के कुछ ही महीने रह जाएंगे। ऐसे में नए मंत्रियों को शामिल करना ही था। मंगलवार को जेपी नड्डा पटना पहुंचे थे। नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद मंत्रिमंडल विस्तार पर सहमति बन गई।
सूत्रों के अनुसार जदयू के 45 विधायकों के लिहाज से मंत्रिमंडल में 13 मंत्री हैं। यह एक तरह से पर्याप्त है और इसलिए नीतीश ने इसे कोई मुद्दा नहीं बनाते हुए केवल भाजपा विधायकों को इस मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल करने की हरी झंडी दे दी।
मंत्रिमंडल विस्तार...मिथिलांचल पर फोकस?
राजनीतिक जानकार मान रहे हैं मंत्रिमंडल विस्तार के लिए नए मंत्रियों का चयन क्षेत्र सहित जाति समीकरण देखते हुए किया गया है। बीजेपी ने खासकर मिथिलांचल क्षेत्र से तीन विधायकों को मंत्री बनाकर बड़ा दांव खेलने की कोशिश की है।
गौर करने वाली बात है कि मिथिलांचल के दो जिलों दरभंगा और सीतामढ़ी से संजय सरावगी, जिवेश कुमार और मोती लाल प्रसाद ने मंत्री पद की शपथ ली। संजय सरावगी और जिवेश कुमार ने मैथिली में शपथ ली और 'पाग' पहनकर आए थे, जो मिथिला की सांस्कृतिक पहचान मानी जाती है।
मिथिलांचल से पहले से ही दो भाजपा विधायक मंत्रिमंडल में हैं। यहां ये भी जानना जरूरी है कि बिहार में कुल 243 सीटों में से एनडीए के पास 131 सीटें हैं। इनमें से 40 सीटें मिथिलांचल से हैं। इस लिहाज से यह क्षेत्र भाजपा के लिए अहम हो जाता है।
मिथिलांचल पर फोकस की एक वजह तेजस्वी भी?
मिथिलांचल पर भाजपा के फोकस की एक वजह तेजस्वी यादव भी माने जा रहे हैं। दरअसल, ऐसी अटकलें हैं कि राजद नेता तेजस्वी यादव इस बार 2 सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं। अनुमान लगाया जा नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव राघोपुर के अलावा मधुबनी की फुलपरास सीट से चुनाव लड़ सकते हैं।
फुलपरास सीट से कर्पूरी ठाकुर विधायक रहे थे। जाहिर तौर पर तेजस्वी की नजर यादव, मुस्लिम के अलावा अति पिछड़ी जाति के वोट बैंक पर है। फुलपरास सीट पर यादव और अति पिछड़ी जाति का वोट बैंक अधिक है।
बिहार के नए मंत्रियों की प्रोफाइल
संजय सरावगी (वैश्य समुदाय): ये मिथिलांचल में पार्टी का मुख्य चेहरा माने जाते हैं। लगातार 5 बार से विधानसभा चुनाव जीतते आ रहे हैं। ये फरवरी, 2005 में पहली बार विधायक बने थे और इसके बाद से एक भी चुनाव नहीं हारे हैं।
सुनील कुमार (कुशवाहा): ये लगातार 2005 से बिहारशरीफ से चुनाव जीत रहे हैं। दो बार जदयू से और दो बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने में सफल रहे। 2013 में जब नीतीश कुमार भाजपा से अलग हुए, तो ये जदयू छोड़ बीजेपी के साथ चले गए थे।
मोती लाल प्रसाद (तेली): सीतामढ़ी से आते हैं। दूसरी बार चुनाव जीते हैं। 2010 में पहली बार रीगा से चुनाव जीता था। 2015 में हारने के बाद 2020 में फिर जीतने में सफल रहे।
जीवेश मिश्रा: भूमिहार जाति से आते हैं। 1981 से 1998 तक ABVP के सक्रिय सदस्य रहे। 2002 में भाजपा में शामिल हुए। 2015 में पहला विधानसभा चुनाव जाले से जीते। 2020 में भी विजयी रहे।
कृष्ण कुमार मंटू: कुर्मी समाज से आते हैं। 2000 में मुखिया का चुनाव जीतकर राजनीतिक सफर की शुरुआत की। 2010 में पहली बार छपरा के अमनौर से विधानसभा चुनाव जीते। 2020 में दूसरी बार विधानसभा पहुंचे।
राजू सिंह: राजपूत जाति से आते हैं। 2005 में पहली बार एलजेपी के टिकट पर साहेबगंज से विधायक बने। 2015 में हारे। 2020 में वीआईपी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीतने के बाद भाजपा में शामिल हुए।
विजय कुमार मंडल: सीमांचल क्षेत्र से अहम चेहरा माने जाते हैं। केवट समाज से हैं। 2015 से सिकटी से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतते आ रहे हैं। पहली बार 1995 में आनंद मोहन की बीपीपी पार्टी से चुनाव जीते थे। राजद और एलजेपी के टिकट पर भी चुनाव लड़ चुके हैं।