भारत बंदः 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी होंगे शामिल, बैंकिंग, डाक समेत ये सेवाएं रहेंगी प्रभावित

केंद्रीय यूनियनों ने बुधवार को भारत बंद (Bharat Bandh) का आह्वान किया है। इसमें बैंकिंग, डाक समेत अन्य सेवाएं बंद रहेंगी। यूनियनों ने केंद्र सरकार पर श्रम बल को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है।

bharat bandh on wednesday over 25 crore workers likely to join hit banking postal services

9 जुलाई को भारत बंद में शामिल हो सकते हैं 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी Photograph: (आईएएनएस)

नई दिल्लीः बैंकिंग, बीमा, डाक सेवाओं से लेकर कोयला खनन तक के क्षेत्रों के करीब 25 करोड़ कर्मचारी बुधवार को राष्ट्रव्यापी हड़ताल में शामिल हो सकते हैं। बुधवार को राष्ट्रव्यापी बंद का ऐलान 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की तरफ से किया गया है। इसे 'भारत बंद' नाम दिया गया है। इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल बुलाने का उद्देश्य केंद्र सरकार की "मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और राष्ट्र विरोधी कार्पोरेट नीतियों" के खिलाफ आंदोलन करना है। 

ट्रेड यूनियनों ने कहा है कि औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों में महीनों से इसको लेकर तैयारियां चल रहीं थीं। यूनियन ने इस बंद को एक बड़ी सफलता बनाने का आह्वान किया। समाचार एजेंसी पीटीआई ने ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के अमरजीत कौर के हवाले से लिखा "हड़ताल में 25 करोड़ से अधिक लोगों के शामिल होने की उम्मीद है। देशभर में किसान और ग्रामीण श्रमिक भी विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे।"

बैंकिंग, डाक समेत ये सेवाएं होंगी प्रभावित

व्यापक स्तर पर होने वाली इस हड़ताल में सार्वजनिक क्षेत्र और उद्योगों पर कुछ प्रभाव देखने को मिल सकता है। हिंदू मजदूर सभा के हरभजन सिंह सिंधु ने कहा "हड़ताल के कारण बैंकिंग, डाक, कोयला खनन, फैक्ट्रियां और राज्य की परिवहन सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं।"

गौरतलब है कि बीते साल यूनियनों द्वारा श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया के सामने 17 मांगों का एक चार्टर सौंपा था। यूनियनों का दावा है कि सरकार ने इन मांगों को नजरअंदाज किया है और सरकार बीते एक दशक से वार्षिक श्रम सम्मेलन आयोजित करने में भी विफल रही है। यूनियनों का कहना है सरकार का यह कदम श्रम बल के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाता है। 

यूनियनों ने इसके लिए एक संयुक्त जारी कर आरोप लगाया कि सरकार के श्रम सुधार के लिए जिन चार नए श्रम संहिताओं की शुरुआत की है, श्रमिकों के अधिकार को खत्म करने के लिए बनाए गए हैं। ॉ

यूनियन गतिविधियों को कमजोर करने का प्रयास

यूनियनों ने तर्क दिया कि इन संहिताओं का उद्देश्य सामूहिक सौदेबाजी को खत्म करना, यूनियन गतिविधियों को कमजोर करना, काम के घंटे बढ़ाना और नियोक्ताओं को श्रम कानूनों के तहत जवाबदेही से बचाना है। 

यूनियन फोरम ने यह भी कहा कि सरकार ने कल्याणकारी राज्य के दर्जे को त्याग दिया है और विदेशी और भारतीय कॉर्पोरेट्स के हित में काम कर रही है और यह उसकी नीतियों से स्पष्ट है कि जिसे सख्ती से आगे बढ़ाया जा रहा है। 

इसमें यह भी कहा गया है कि ट्रेड यूनियन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण के विरोध में लड़ रही हैं। इसके साथ ही सार्वजनिक सेवाओं में आउटसोर्स की नीतियों, ठेकेदारी, कार्यबल के अस्थायीकरण की नीतियों के खिलाफ लड़ रही हैं। 

यूनियन नेताओं ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि श्रमिक यूनियनों के संयुक्त मोर्चे ने इस हड़ताल को समर्थन दिया है और ग्रामीण भारत में बड़े पैमाने पर लामबंदी करने का फैसला लिया है। 

ट्रेड यूनियनों ने इससे पहले 26 नवंबर 2020, 28-29 मार्च 2022 और 16 फरवरी 2024 को ऐसे ही बंद का आह्वान किया था।

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