नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (28 अगस्त) झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दे दी। इस दौरान शीर्ष अदालत ने एक बार फिर जोर देकर कहा कि जमानत एक नियम है और जेल अपवाद और मनी लॉन्ड्रिंग (पीएमएलए ) के मामले में भी यह लागू होता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में आरोपी द्वारा हिरासत में रहते हुए जांच अधिकारी को दिए गए किसी भी आरोपित बयान को सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। कोर्ट का यह फैसला भारत राष्ट्र समिति (BRS) की नेता के. कविता को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में राहत देने के एक दिन बाद आया। शराब नीति से जुड़े मामले में कविता को मार्च में गिरफ्तार किया गया था।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने आप नेता मनीष सिसोदिया को भी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जमानत देने में इसी सिद्धांत का पालन किया था। जस्टिस बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने कहा, “मनीष सिसोदिया के मामले में दिए गए फैसले के आधार पर, हमने कहा है कि पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) में भी जमानत एक नियम है और जेल अपवाद।
कोर्ट ने पीएमएलए की धारा 45 का उल्लेख किया
बेंच ने पीएमएलए की धारा 45 का उल्लेख किया जिसमें जमानत के लिए दो शर्तें बताई गई हैं। पहली, यह प्राथमिक तौर पर साबित होना चाहिए कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है, और दूसरी जमानत पर रहते हुए वह कोई अपराध करने की संभावना नहीं रखता है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 45 के तहत दोहरी शर्तों का ये मतलब नहीं है कि आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति की स्वतंत्रता हमेशा एक नियम होती है और उसे कानूनी प्रक्रिया के तहत छीनना अपवाद। ये दोहरी शर्तें इस सिद्धांत को नहीं बदलतीं।
हिरासत में आरोपित बयान सबूत नही माने जाएंगे
बेंच ने यह भी कहा कि पीएमएलए के मामले में हिरासत में रहते हुए आरोपी द्वारा दिए गए किसी भी आरोपित बयान को अदालत में सबूत के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी। कोर्ट ने कहा, “ऐसे बयानों को मान्य करना बेहद अनुचित होगा, क्योंकि यह न्याय के सभी सिद्धांतों के खिलाफ होगा।” कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष को जमानत के लिए प्राथमिक तौर पर मुद्दों और तथ्यों को स्पष्ट करना होगा।
कोर्ट ने प्रेम प्रकाश को राहत देते हुए कहा कि आरोपी प्राथमिक तौर पर अपराध का दोषी नहीं है और न ही सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना है, इसलिए यह जमानत के लिए उपयुक्त मामला है। ये टिप्पणियां केवल जमानत के लिए हैं और ट्रायल को प्रभावित नहीं करेंगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह ताजा आदेश के. कविता को मिली राहत के एक दिन बाद आया है, जिसमें कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसियों से सवाल किया था कि क्या वे आरोपियों को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं।
जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि “यह स्थिति देखकर दुख हुआ। अभियोजन पक्ष को निष्पक्ष होना चाहिए। आप किसी को चुन-चुनकर नहीं ले सकते। यह निष्पक्षता क्या है? खुद को दोषी ठहराने वाले व्यक्ति को गवाह बना दिया गया है।”
इस महीने की शुरुआत में भी सिसोदिया को राहत देते हुए अदालत ने ‘जमानत नियम है’ सिद्धांत का हवाला दिया था। अदालत ने निचली अदालतों को फटकार लगाते हुए कहा था कि “ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट को इस पर उचित ध्यान देना चाहिए था। अदालतें भूल गई हैं कि जमानत को सजा के तौर पर रोका नहीं जाना चाहिए। अदालत ने आरोपी के स्वतंत्रता के अधिकार को शुचिता करार दिया।