पश्चिम बंगाल के बहरामपुर लोकसभा सीट पर 13 मई को वोटिंग होगी। यहां से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने क्रिकेटर यूसुफ पठान को पाँच बार के कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ टिकट दिया है। जबकि भाजपा ने डॉ. निर्मल कुमार साहा को उम्मीदवार बनाया है। यूसुफ पठान की एंट्री से अल्पसंख्यक बहुल इस सीट पर लड़ाई दिलचस्प हो गई है। यूसुफ पठान ने साफ कहा है कि यहां खेला होबे! हालांकि उनकी उम्मीदवारी को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर उनके बाहरी होने का मुद्दा बना गया।
इस सीट पर भरतपुर से टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर टिकट के दावेदार माने जा रहे थे। लेकिन टीएमसी ने यूसुफ पठान को प्रत्याशी घोषित कर दिया। इससे हुमायूं कबीर काफी नाराज हुए। कबीर ने पार्टी पर आरोप लगाया कि जिला नेतृत्व से बिना बात किए ही यूसुफ पठान के नाम का ऐलान कर दिया गया। कबीर ने यूसुफ को बाहरी बताते हुए उनके खिलाफ वोट करने तक की बात कह दी थी। कबीर ने कहा था कि ‘यदि जरूरत पड़ी तो मैं अपना खुद का राजनीतिक दल बनाऊंग।’ लेकिन टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी से मुलाकात के बाद उन्होंने अपने बगावती तेवर से यूटर्न ले लिया।
पश्चिम बंगाल मेरा घर, यहां मैं रहने आया हूंः यूसुफ पठान
हालांकि यूसुफ ने कहा कि पश्चिम बंगाल उनका घर है और वे यहां रहने आए हैं। बाहरी होने के आरोप पर यूसुफ पठान का कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी भी गुजरात से हैं लेकिन वे चुनाव कहाँ से लड़ते हैं, वाराणसी से। गौरतलब है कि यूसुफ भी गुजरात से ही ताल्लुक रखते हैं। पूर्व क्रिकेटर ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि मैं बाहरी हूं। नरेंद्र मोदी गुजरात के हैं। लेकिन वह चुनाव बनारस से लड़ते हैं। ये मोहब्बत है। कार्य करने की जो क्षमता है। लगाव है। हिंदुस्तान में कहीं भी जाकर लड़ सकते हैं। ये मेरा घर है यहां मैं रहने आया हूं।’
माना जा रहा है कि यूसुफ पठान की बहरामपुर में एंट्री से राजनीतिक समीकरण में फेरबदल हो सकता है। बहरामपुर लोकसभा सीट पर मुस्लिम आबादी 65% से ऊपर है। यहां से कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी 1999 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। लेकिन 17 अप्रैल को रामनवमी पर इस लोकसभा क्षेत्र में हुई हिंसा और यूसुफ पठान की एंट्री ने उनके रास्ते में भी चुनौतियां खड़ी कर दी है। बहरामपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं- भरतपुर, बुरवान, कांदी, बहरामपुर, बेलदांगा, नाओदा और रेजीनगर। 17 अप्रैल को कांदी और रेजीनगर क्षेत्र के शक्तिनगर में ही हिंसा भड़की थी।
भाजपा नरेंद्र मोदी के विकसित भारत के संकल्प पर चुनाव लड़ रही
इस हिंसा को आधार बनाकर भाजपा लोगों को अपनी तरफ करने में लगी है। भाजपा ने टीएमसी और कांग्रेस दोनों को इसका जिम्मेदार ठहराया। बहरामपुर लोकसभा सीट के भाजपा उम्मीदवार निर्मल साहा ने कहा कि पार्टी नरेंद्र मोदी के विकसित भारत के संकल्प पर चुनाव लड़ रही है। उन्होंने घर, शौचालय और उज्ज्वला गैस दी है। यहां हिंदू-मुस्लिम साथ रहते हैं लेकिन टीएमसी यहां हिंसा फैला रही है। इंडिया टुडे से एक बातचीत में साहा ने अधीर रंजन चौधरी का नाम लेते हुए कहा कि उन्होंने बहरामपुर के विकास में बहुत कम योगदान दिया है। भ्रष्ट टीएमसी को भी उखाड़ फेंकना जरूरी है। लेकिन मुकाबला बहुत आसान नहीं होने वाला है।
कांग्रेस के मुस्लिम वोट में सेंध लगा सकते हैं यूसुफ पठान
अधीर रंजन के सामने भी इस बार चुनौतियां कम नहीं है। दैनिक भास्कर के मुताबिक बहरामपुर में पिछले दो सालों में भाजपा और आरएसएस की सक्रियता बढ़ी है। वहीं हिंसा के बाद अधीर रंजन चौधरी प्रभावितों से मिलने नहीं गए। इससे लोगों में उनके प्रति थोड़ी नाराजगी भी है। यूसुफ पठान के टिकट मिलने से कायास लगाए जा रहे हैं कि वे कांग्रेस के मुस्लिम वोट में सेंध लगा सकते हैं। यूसुफ की एंट्री पर अधीर रंजन ने कहा कि मुझे पता है कि मुझे कुछ बाउंसरों से निपटना होगा लेकिन मैं जानता हूं कि उन्हें कैसे खेलना है। मैंने अपना हेलमेट भी तैयार रखा है।
पिछले लोकसभा चुनाव के आँकड़े बताते हैं कि पश्चिम बंगाल की 42 में से करीब 40 सीटों पर भाजपा और टीएमसी के बीच सीधा मुकाबला हुआ। टीएमसी को 22, भाजपा को 18 जबकि कांग्रेस को केवल दो सीटों- बहरामपुर और मालदा दक्षिण पर ही जीत मिली सकी थी। 34 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार को 10 प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे। इनमें से ज्यादातर सीटों पर तो कांग्रेस को 2 प्रतिशत के आसपास ही वोट मिले थे। भाजपा को 40 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे।
निर्मल साहा का संघ से है नाता
भाजपा ने डॉ. निर्मल साहा के चेहरे पर बड़ा दांव खेला है। बहरामपुर के रहने वाले डॉ. निर्मल साहा शहर के लोकप्रिय शख्सियत हैं। उनके परिवार का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ लंबे समय से संबंध रहा है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत सहित संघ के कई लोग से उनके अच्छे संबंध हैं। वहीं साहा के बड़े भाई संघ की स्थानीय शाखा के पूर्व पदाधिकारी हैं। भाजपा को 2021 के विधानसभा चुनाव में बहरामपुर सीट पर सुब्रत मैत्रा के नाम पर दांव लगाया था जिन्हें जीत हासिल हुई थी। अल्पसंख्यक बहुल इलाके में एक गैर-अल्पसंख्यक उम्मीदवार की जीत से भाजपा की उम्मीदें जगी थीं।
25 साल से बहरामपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा
पाँच बार सांसद चुने जाने से पहले अधीर रंजन चौधरी 2 बार विधानसभा का चुनाव भी लड़े थे। 1991 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधायकी का चुनाव लड़ा जिसमें उनको हार का सामना करना पड़ा। 1996 में एक बार फिर सीपीएम के गढ़ रहे नबग्राम से मैदान में उतरे और जीत हासिल की। गौरतलब बात है कि अधीर रंजन ने यह चुनाव जेल में रहते हुए जीती थी। उन पर सीपीएम नेता के परिजन की हत्या का आरोप था। 1999 में बहरामपुर संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतरे और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी से इस सीट को छीन लिया। तब से अधीर रंजन एक भी चुनाव नहीं हारे हैं।
1952 में पहली बार इस सीट पर चुनाव होने के बाद से बहरामपुर में 2 पार्टियों के केवल 5 सांसद रहे हैं – आरएसपी से त्रिदीब चौधरी, नानी भट्टाचार्य और प्रमोथेस मुखर्जी, और कांग्रेस से आतिश चंद्र सिन्हा और अधीर रंजन चौधरी। 2011 से बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी रही ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस अभी तक यह सीट नहीं जीत पाई है। भाजपा भी इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाने में असमर्थ रही है। इस साल, टीएमसी लोकसभा चुनाव के लिए बहरामपुर निर्वाचन क्षेत्र में क्रिकेटर यूसुफ पठान को मैदान में उतारकर अधीर रंजन को हराने की उम्मीद कर रही है।
2019 लोकसभा चुनाव:
उम्मीदवार | पार्टी | वोट |
---|---|---|
अधीर रंजन चौधरी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | 5,91,106 |
अपूर्बा सरकार | तृणमूल कांग्रेस | 5,10,410 |
कृष्णा जॉयदार | भारतीय जनता पार्टी | 1,43,038 |
2014 लोकसभा चुनाव:
उम्मीदवार | पार्टी | वोट |
---|---|---|
अधीर रंजन चौधरी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | 5,83,549 |
इंद्रनील सेन | तृणमूल कांग्रेस | 2,26,982 |
प्रमोथ्स मुखर्जी | क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी | 1,05,322 |
2009 लोकसभा चुनाव:
उम्मीदवार | पार्टी | वोट |
---|---|---|
अधीर रंजन चौधरी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | 5,08,607 |
कृष्ण चंद्र पाल | तृणमूल कांग्रेस | 4,18,456 |
प्रमोथ्स मुखर्जी | क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी | 1,02,858 |