अयोध्या: लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी को भारतीय सेना में अधिकारी के तौर पर कमिशन हुए छह महीने ही बीते थे, हालांकि जब जान पर खेलने की बारी आई तो वे पीछे नहीं हटे। एक साथ की जान बचाने की कोशिश में उनकी अपनी जान चली गई। महज 23 साल की उम्र में अपनी जान कुर्बान करने वाले भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी की कहानी अब चर्चा में है। वे मूल रूप से अयोध्या के रहने वाले थे।
उत्तरी सिक्किम में एक ऑपरेशनल गश्त के दौरान शशांत तिवारी ने एक साथी सैनिक को डूबने से बचाने के लिए बर्फीले, तेज बहने वाले पहाड़ी नाले में छलांग लगा दी। उन्होंने अपने साथी को तो सफलतापूर्वक बचाया, लेकिन ऐसा करते हुए, उनकी जान चली गई। वे अपने माता-पिता के इकलौती संतान थे।
भारतीय सेना की पूर्वी कमान ने उनके साहस और बलिदान को श्रद्धांजलि दी। आधिकारिक बयान में कहा गया, 'लेफ्टिनेंट जनरल आर.सी. तिवारी, #आर्मीसीडीआरईसी और सभी रैंक लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी के निधन पर हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं, जिन्होंने उत्तर सिक्किम के उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्र में एक ऑपरेशनल गश्त के दौरान एक साथी को बचाते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया।'
शशांक तिवारी का सर्वोच्च बलिदान...क्या हुआ था?
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार गुरुवार की सुबह लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी उत्तरी सिक्किम के एक ऊंचे इलाके में एक रूट-क्लियरिंग टीम का नेतृत्व कर रहे थे। टीम एक रणनीतिक अग्रिम बेस की ओर जा रही थी जिसे भविष्य में तैनाती के लिए तैयार किया जाना है।
Lest We Forget
— Trishakticorps_IA (@trishakticorps) May 23, 2025
Lt Shashank Tiwari made the supreme sacrifice while rescuing a fellow soldier during an operational patrol in high-altitude North #Sikkim.
A wreath was laid with full military honours by Lt Gen Zubin A Minwalla, GOC Trishakti Corps, at Bengdubi Military Station,… pic.twitter.com/v4qzekcpBe
इसी गश्ती के दौरान सुबह करीब 11 बजे, अग्निवीर स्टीफन सुब्बा नाम का एक सैनिक रास्ते में एक अस्थायी लॉग ब्रिज को पार करते समय अपना संतुलन खो बैठा और बर्फीले पानी वाले तेज बहाव में बह गया।
इसे देख बिना किसी हिचकिचाहट के शशांक तिवारी उसे बचाने के लिए बर्फीले पानी में कूद पड़े। जल्द ही नायक पुकार कटेल भी उनके साथ पानी में उतरे। दोनों ने साथ मिलकर अग्निवीर सैनिक को सुरक्षित बाहर निकाला।
हालांकि, दुर्भाग्यपूर्ण बात ये रही कि अपने साथी को बचाने की कोशिश में तिवारी खुद भी तेज धारा में फंस गए। गश्ती दल के तेज बचाव प्रयासों के बावजूद, उनका शव करीब 30 मिनट बाद करीब 800 मीटर नीचे की ओर बरामद किया गया।
सेना ने अपने युवा अधिकारी के निधन की घोषण करते हुए कहा, 'उनकी बहादुरी और कर्तव्य के प्रति समर्पण पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।'
लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी कौन थे?
युवा अधिकारी लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी उत्तर प्रदेश के अयोध्या के गदोपुर मझवा गांव के रहने वाले थे। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। उनके पिता जंग बहादुर तिवारी भारतीय मर्चेंट नेवी में सेवारत थे और अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
तिवारी को जानने वाले लोग उन्हें एक अनुशासित, समर्पित और होनहार युवक के रूप में याद कर रहे हैं। रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, 'उनके बलिदान की पूरे देश में सराहना की गई है। वह साहस और निस्वार्थता के प्रतीक हैं।'
शशांक तिवारी के एक रिश्तेदार राजेश दुबे ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा कि तिवारी हमेशा से देश की सेवा करने का सपना देखते थे। वे पढ़ाई में अच्छे थे और फैजाबाद में एक सीबीएसई स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। साल 2019 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद, उन्हें राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के लिए चुना गया।
अधिकारी को 14 दिसंबर, 2024 को भारतीय सेना की सिक्किम स्काउट्स इकाई में कमीशन दिया गया। सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने भी फेसबुक पर एक भावपूर्ण पोस्ट में उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई
घटना के बाद तिवारी का पार्थिव शरीर शुक्रवार दोपहर को सिलीगुड़ी के बागडोगरा एयरपोर्ट से अयोध्या लाया गया। अयोध्या एसपी (सिटी) मधुबन सिंह के अनुसार शाम को शव उनके गृहनगर पहुंचा। उनका अंतिम संस्कार पूरे सैन्य सम्मान के साथ किया गया।
इस दौरान अयोध्या में मौजूद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तिवारी के बलिदान को नमन किया। उन्होंने ऐलान किया कि अयोध्या में उनकी याद में एक स्मारक बनाया जाएगा और राज्य सरकार उनके परिवार को 50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देगी।