आपको अब भी राजधानी में कुछ पत्रकार, जनसंघ या फिर भाजपा के नेता वगैरह मिल जाएंगे जो बताएंगे कि अटल बिहारी वाजपेयी का राजधानी दिल्ली में पहला घर 111 साउथ एवेन्यू था। उनका दिल्ली से सन 1957 में रिश्ता कायम हो गया था। वे तब पहली बार भारतीय जनसंघ की टिकट पर बलरामपुर से लोकसभा का चुनाव जीते थे। उन्हें तब साउथ एवेन्यू में फ्लैट अलॉट हुआ था। यह फ्लैट राष्ट्रपति भवन के करीब है।
इसके बाद वे मुख्य रूप से प्रेस क्लब के सामने 6 रायसीना रोड, फिर लोक कल्याणा मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास और जिंदगी के आखिरी दिन तक 6-ए कृष्ण मेनन मार्ग के बंगले में रहे। उनका 2018 में निधन हुआ था। इस तरह अटल बिहारी वाजपेयी राजधानी के इन सब घरों में लगभग छह दशकों तक रहे थे। शायद ही कोई दूसरा नेता होगा जो लुटियंस दिल्ली में इतने लंबे समय तक रहा हो।
डीटीसी बस में अटल जी का सफर
अटल बिहारी वाजपेयी जब साउथ एवेन्यू में रहते थे तब उनके पास कोई कार या दूसरा वाहन नहीं था। यहां पर उनके ग्वालियर के एक संबंधी मौरिस नगर में रहते थे। उनसे मिलने मिलने वाजपेयी तीन मूर्ति के बस स्टैंड से डीटीयू (अब डीटीसी) बस नंबर 15 लेकर जाते। इसी दौरान वे दिल्ली यूनिवर्सिटी मेन कैंपस के रामजस कॉलेज में भी जाते। वहां पर उनके मित्र और रामजस कॉलेज में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर बी.एन. कौल पढ़ाते और रहते थे।
रामजस कॉलेज में दशकों हिन्दी पढ़ाते रहे डॉ.राज कुमार जैन बताते हैं कि प्रोफेसर कौल रामजस कॉलेज से रिटायर होने के बाद अपनी पत्नी राज कुमारी कौल, बेटी नमिता और दामाद रंजन भट्टाचार्य के साथ अटल बिहरी वाजपेयी के रायसीना रोड के घर में शिफ्ट कर गए थे। अटल जी के परिवार के हिस्सा था कौल परिवार। वे भी अटल जी के साथ उनके जीवनकाल के अंत तक रहे।
अटल जी के घर में नई दिल्ली वाले
अटल बिहारी वाजपेयी 1977 और 1980 में नई दिल्ली लोकसभा सीट से विजयी होकर लोकसभा पहुंचे। वे तब तक 6 रायसीना रोड में शिफ्ट कर गए थे। नई दिल्ली वाले उनकी बोट क्लब, कनॉट प्लेस, मिन्टो रोड सरकारी प्रेस, सरोजनी नगर मार्केट की सभाओं को सुनने का बेसब्री से इंतजार करते थे। सबको अटल जी के ओजस्वी भाषणों को सुनना होता था। वे अपनी तकरीरों से समां बांध देते थे।
बोट क्लब और सुपर बाजार की रैलियों में हजारों लोग पहुंचते थे। हालांकि उनकी सभाएं तो सारी दिल्ली में ही रखी जाती थीं। उनका किसी सभा में आने का मतलब होता था कि वहां हर हालत में भीड़ जुटने की गारंटी। उनके मतदाता उनके घर में भी अपने कामकाज के सिलसिले में आते-जाते।
गोल मार्केट के सोशल वर्कर प्रीतम धारीवाल ने अटल जी की दर्जनों सभाओं को देखा। वे कहते हैं अटल जी को सुनने के लिए दिल्ली वाले टूट पड़ते थे। वे सुनने वालों से सीधा संवाद स्थापित कर लेते थे। अटल जी दिल्ली पर जान निसार करते थे। वे कई बार दिल्ली से बाहर के अपने दौरों को बीच में छोड़कर यहां आ जाते थे ताकि किसी पार्टी कार्यकर्ता या परिचित के परिवार में हुए सुख-दुख में शिरकत कर सकें।
अटल जी के घर के ‘हनुमान’ कौन
उनकी पहचान उनकी भारी-भरकम मूंछें थीं। वे अटल बिहारी वाजपेयी के साथी, सहयोगी और मित्र थे। वे अटल जी के साथ उनकी परछाई की तरह रहते थे। उनका नाम था शिव कुमार पारीक। अटल जी के हनुमान समझे जाने वाले शिव कुमार बजरंग बली के परम भक्त थे और कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर में मंगलवार को अवश्य मिलते थे। उन्हें अटल जी अपना हनुमान भी कहते थे।
शिव कुमार कई दशकों तक लगातार अटल बिहारी वाजपेयी के घरों का स्थायी चेहरा रहे। वे अटल जी के 111 साउथ एवेन्यू, 6 रायसीना रोड, फिर लोक कल्याणा मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास और अंत में 6-ए कृष्ण मेनन मार्ग के घरों में सुबह से देर शाम या रात तक रहा करते थे। अटल जी से मिलने से पहले शिव कुमार से मिलना पड़ता था।
अटल जी के घरों में शिव कुमार के अलावा सुप्रीम कोर्ट के वकील एन.एम. घटाटे भी मिला करते थे। इन सबके बीच लगभग 60 वर्षों तक रोज मिलना-जुलना रहा। पर अटल जी के इन मित्रों ने कभी अटल जी के साथ अपने संबंधों का किसी तरह से लाभ नहीं उठाया। कभी किसी ने इन पर किसी तरह का आरोप लगाने की हिम्मत नहीं की। अटल जी जिन दिनों में अस्वस्थ थे, तब एक बार शिवकुमार ने कहा था कि “अटल जी न स्वस्थ हैं और न अस्वस्थ हैं, वृद्धावस्था से ग्रस्त हैं। खामोश अटल बहुत अलर्ट हैं। वह प्रतिक्रिया नहीं करते पर देखते और मूल्यांकन सबका करते रहते हैं।”
अटल जी के शिव कुमार और घटाटे से संबंध सदैव एक जैसे रहे। अटल जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी बैठकी के दौर जारी रहे। हां, बैठकें कम अवश्य हो गईं थीं। पर संबंध पहले की तरह मधुर बने रहे। बढ़ती उम्र के बावजूद ये दोनों अटल जी के साथ उनके अंतिम दिनों तक रहे। ये दोनों अटल जी की निस्वार्थ भाव से सेवा करते रहे।
अटल जी की अंतिम समय तक सेवा करने वाले शिव कुमार जी जनसंघ के जमाने से ही उनके साथ थे। शिवकुमार, सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सहायक के तौर पर ही नहीं, बल्कि उनके हर राजनीतिक उतार-चढ़ाव में भी उनके साथ रहे। उनकी अनुपस्थिति में कई साल तक शिवकुमार ने ही लखनऊ संसदीय क्षेत्र को संभाला था।
किसके होली मिलन में नरेंद्र मोदी
अटल बिहारी वाजपेयी के 111 साउथ एवेन्यू, 6 रायसीना रोड, फिर लोक कल्याणा मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास के होली मिलन समारोह और कवि सम्मेलनों में अटल जी खुद सब अतिथियों को गुलाल लगाया करते थे। इनमें देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी भाग लेते थे। वे तब भाजपा के संगठन से जुड़े हुए थे। इस अवसर पर लजीज गुजिया और स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था रहती थी।
अटल जी के घर पर होने वाले होली मिलन की सारी व्यवस्था उनके परम मित्र शिव कुमार किया करते थे। वे ही चांदनी चौक के घंटेवाले या गोल मार्केट के बंगला स्वीट हाउस की बालूशाही अवश्य मंगवाते ताकि अतिथि भोग लगाते रहें।
वरिष्ठ लेखक और ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ के वरिष्ठ संपादक रहे दुर्गा प्रसाद नौटियाल को कई बार अटल जी के घर में होने वाले कवि सम्मेलनों और दूसरे आयोजनों में भाग लेने का मौका मिला था। वे बताते थे कि अगर कोई अतिथि मिष्ठान लेने में आना-काना करता तो अटल जी से उसे प्यार-प्यार में डांट भी देते थे।
अटल जी ने कभी भी अपने को सिर्फ राजनीति तक ही सीमित नहीं किया। उनके सियासत से इतर के मित्र भी कम नहीं रहे। इनमें कवियों की संख्या अच्छी-खासी रही। वे इनकी ताजा कविताएं सुनते, बदले में इनका मुंह मीठा करवाते। उनके 6- रायसीना रोड के बंगले में महीने में एक-दो पुस्तकों के विमोचन होना सामान्य बात थी। इधर नवोदित लेखकों-कवियों की भी पुस्तकों का विमोचन होता रहा। वे यहां 1977 में आ गए थे। फिर वे यहां लगभग 20 वर्षों तक रहे। अब इधर भाजपा के नेता मुरली मनोहर जोशी रहते हैं।
दंगाइयों पर भारी पड़े अटल जी
अटल बिहारी वाजपेयी का देश ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजधानी में भड़के सिख विरोधी दंगों के समय एक अलग रूप देखा था। वे तब 6 रायसीना रोड के बंगले में रहते थे। राजधानी जल रही थी। यहां पर मौत का नंगा नाच खेला जा रहा था, मानवता मर रही थी।
अटल जी ने 1 नवंबर,1984 को सुबह दसेक बजे अपने बंगले के गेट से बाहर का भयावह मंजर देखा। उनके घर के सामने स्थित टैक्सी स्टैंड पर काम करने वाले सिख ड्राइवरों पर हल्ला बोलने के लिए गुंडे-मवालियों की भीड़ खड़ी थी। वे तुरंत बंगले से अकेले ही निकलकर टैक्सी स्टैंड पर पहुंच गए। उनके वहां पर पहुंचते ही हत्याएं करने के इरादे से आई भीड़ तितर-बितर होने लगी।
भीड़ ने अटल जी को तुरंत पहचान लिया। उन्होंने भीड़ को कसकर खरी-खरी सुनाई। मजाल थी कि उनके सामने कोई आँखें ऊपर कर देख लेता। तब उस टैक्सी स्टैंड में ईस्ट दिल्ली के ट्रांसपोर्टर और भाजपा नेता बलबीर सिंह विवेक विहार की कुछ टैक्सियां भी लगी हुईं थीं। उस घटना की जानकारी उन्हें अपने ड्राइवरों से मिली। उन्हें बताया गया कि अटल जी फरिशता बनकर वहां पर प्रकट हो गए थे। अगर वे चंदेक पल देर से वहां आते तो काम खत्म हो चुका होता। ड्राइवरों और टैक्सियों को जला दिया गया होता।
उसी दिन शाम को अटल जी अपने लाल कृष्ण आडवाणी के साथ तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री पी.वी.नरसिंह राव से मुलाकात की। उन्हें सारी घटना की विस्तार से जानकारी दी। बताया कि जलती दिल्ली को तुरंत बर्बाद होने से बचाया जाए।
भाजपा के पूर्व राज्य सभा सांसद आर.के.सिन्हा हालांकि उस दौरान वे अस्वस्थ चल रहे थे, फिर भी उन्होंने रात के समय भाजपा के 11 अशोक रोड दफ्तर में एक मीटिंग तलब की। उसमें विजय कुमार मल्होत्रा, मदन लाल खुराना और केदार नाथ साहनी सरीखे पार्टी के असरदार नेताओं को बुलाया गया। अटल जी ने दिल्ली के इन नेताओं को निर्देश दिए कि वे पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर सिखों के कत्लेआम को हर कीमत पर रोकें।
कैसा बदला अटल जी के घर का पता
अटल बिहारी वाजपेयी 2004 में प्रधानमंत्री पद से हटे तो उन्हें 6 कृष्ण मेनन मार्ग (पहले किंग जॉर्ज एवेन्यू) का बंगला अलॉट हुआ। अटल जी इसमें 2004 से लेकर अपनी मृत्यु तक रहे। इतिहासकार डॉ. स्वपना लिड्डल कहती हैं कि इस बंगले के पीछे वाले भाग में एक फव्वारा भी है। ये शायद लुटियन जोन का एकमात्र सरकारी बंगला है, जिसमें फव्वारा है। हालांकि प्राइवेट बंगलों में तो फव्वारे हो सकते हैं।
अटल जी ने कृष्ण मेनन के बंगले का एड्रेस बदलवा दिया था। सन 2004 से पहले इस बंगले का पता 8 कृष्ण मेनन मार्ग था। इधर शिफ्ट होने से पहले वाजपेयी जी अपने नए आवास का पता 7-ए रखवाना चाहते थे। लेकिन ये संभव नहीं था क्योंकि लुटियंस जोन के बंगलों के नंबर सड़क के एक तरफ विषम हैं और दूसरी ओर सम हैं। इसलिए उन्होंने 8-कृष्ण मेनन मार्ग वाले बंगले के लिए 6-ए कृष्ण मेनन मार्ग का एड्रेस स्वीकार कर लिया था। उनके आग्रह के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), शहरी विकास मंत्रालय और नई दिल्ली नगर परिष्द (एनडीएमसी) ने इस बंगले को नया पता दे दिया था। हालांकि ये गुत्थी कभी नहीं सुलझी कि अटल जी ने अपने घर का एड्रेस क्यों बदलवाया था?
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