नई दिल्ली: असम में फर्जी मुठभेड़ों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है।  कोर्ट ने राज्य मानवाधिकार आयोग से मामले को दोबारा जांच करने का आदेश दिया है।  जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने यह फैसला सुनाया है।  राज्य मानवाधिकार आयोग असम में मई 2021 से अगस्त 2022 के बीच हुए मुठभेड़ों की जांच करेगा। 

कोर्ट ने अपने फैसले में कही ये बात

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बिना सबूत के मुठभेड़ की घटनाओं का संकलन सुप्रीम कोर्ट के लिए निष्कर्ष वापस करने का आधार नहीं हो सकता, क्योंकि प्रत्येक घटना के लिए स्वतंत्र जांच की आवश्यकता है।  कोर्ट ने कहा कि मुठभेड़ में पीड़िता या घायलों के परिजनों को जांच प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी जाएगी।  कोर्ट ने कहा कि मुठभेड़ों से प्रभावित लोगों को वकीलों की सहायता लेने की अनुमति दी जाएगी। 

कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा सवाल

इससे पहले सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा था किपैर में गोली लगने का कोई मेडिकल सबूत है क्या? याचिकककर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि गोली लगने की बात स्वीकार की गई है।  वहीं सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा था कि वर्ष 2014 के सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पूर्ण पालन किया गया है।  असम सरकार ने ये भी कहा कि सुरक्षा बलों के जवानों को गैर जरूरी निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए, क्योंकि इससे उनका मनोबल कमजोर हो सकता है। 

कोर्ट ने कहा, "यह आरोप कि कुछ घटनाएं फर्जी एनकाउंटर हो सकती हैं, यह बेहद गंभीर हैं और अगर साबित हो जाता है तो ये संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन माने जाएंगे। हालांकि यह भी उतना ही संभव है कि निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच के बाद कुछ मामले कानूनन उचित और जरूरी पाए जाएं।" कोर्ट के इस आदेश के बाद अब यह जिम्मेदारी असम मानवाधिकार आयोग की होगी कि वह सभी मामलों की निष्पक्षता से पड़ताल करे और यह सुनिश्चित करे कि पीड़ित परिवारों की आवाज सुनी जाए।