नई दिल्लीः असम की विधानसभा में शुक्रवार जुमे की नमाज के लिए दी जाने वाली तीन घंटे के ब्रेक को खत्म कर दिया गया है। यह ब्रेक 11 बजे से 2 बजे तक होता था और इस दौरान सदन को स्थगित कर दिया जाता था। लेकिन इस फैसले का काफी विरोध हो रहा है।
एनडीए के घटक दल जदयू असम सरकार के इस फैसले का विरोध कर रही है। जदयू नेता नीरज कुमार ने हिमंत सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि सरकार के आदेशों के जरिए किसी भी धार्मिक, सामाजिक रीति-रिवाजों या मान्यताओं पर हमला किसी भी लिहाज से सही नहीं लगता है।
नीरज कुमार ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से मैं जानना चाहता हूं कि शुक्रवार को होने वाली छुट्टी पर तो रोक लगा रहे हैं लेकिन असम में कामाख्या मंदिर में हर दिन बलि होती है, इस पर प्रतिबंध लगाकर देखिए कितना विरोध होगा। जदयू नेता ने कहा कि धार्मिक प्रथाओं पर पाबंदी लगाने का किसी को अधिकार नहीं है। उसे अपने जीने के तौर तरीके का, खाने का रहने का सबको अपना अधिकार है।
जदयू ही नहीं लालू प्रसाद यादव की राजद भी इस फैसले का पुरजोर विरोध की है। पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसा करते हैं। भाजपा के लोगों ने नफरत फैलाने और मोदी-शाह का ध्यान आकृष्ट करने एवं समाज में ध्रुवीकरण करने के लिए मुसलमान भाइयों को सॉफ्ट टारगेट बना लिया है। ये लोग समाज में नफरत पैदा करना चाहते हैं।
इस मामले में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला का कहना है कि कुछ भी स्थायी नहीं है और समय आने पर चीजें बदल जाती हैं। फारूख अब्दुल्ला ने कहा कि भारत विविधता में एकता के लिए जाना जाता है और सरकारों को हर धर्म की रक्षा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे पास हर धर्म और हर भाषा है। तमिलनाडु हो, कश्मीर हो, बंगाल हो या महाराष्ट्र हो, कोई भी राज्य हो, हर राज्य की एक अलग संस्कृति है। और यही कारण है कि भारत एक संघीय ढांचा है और हमें हर धर्म की रक्षा करनी है।
असम सरकार के इस फैसले को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद डॉ. सैयद नसीर हुसैन ने बड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को इन्हीं सब चीजों में ज्यादा रुचि है। उनको डेवलपमेंट, प्रोग्रेस, राहत का काम करने, लोगों को सुविधाएं दिलाने और जनकल्याणकारी नीतियों में कोई विश्वास नहीं है।
नसीर हुसैन ने कहा कि उनको लगने लगा है कि उनकी नई पार्टी बीजेपी के जो आका हैं, उनसे खुश नहीं है। ऐसे में ज्यादा लॉयल्टी दिखाने के चक्कर में वह यह सब हरकतें कर रहे हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
भाजपा और मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने क्या कहा?
इस फैसले पर हो रहे विरोध को लेकर भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि यह दुष्प्रचार है कि नमाज पढ़ने से किसी को रोका जा रहा है। उन्होंंने कहा कि किसी को भी नमाज पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं है। जिसको नमाज पढ़ना है वो पढ़ेंगे, लेकिन इसकी वजह से अन्य लोगों की भी छुट्टी होती थी, उनकी छुट्टी खत्म की गई है। भारत की सरजमीं पर जिसको नमाज पढ़ना है, उन्हें कोई रोक नहीं है। यह दुष्प्रचार है कि नमाज पढ़ने से किसी को रोका जा रहा है। शाहनवाज ने कहा कि जुमे की नमाज हो या फिर पांच वक्त की नमाज। किसी को भी नहीं रोका जा रहा। जिसको नमाज पढ़ना है, वे पढ़ सकते हैं।
फैसले को लेकर विरोध झेल रहे मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि यह कदम रूल कमेटी की मीटिंग और सभी हिंदू, मुस्लिम विधायकों ने फैसला के बाद उठाया गया है। सभी विधायकों ने कहा कि दो घंटे के अवकाश की कोई जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री ने कहा कि दो घंटे के ब्रेक के बजाय इस दौरान उन्होंने काम करने का फैसला लिया। ये प्रथा 1937 में शुरू हुई थी जिसे अब बंद कर दिया गया है।
वहीं, भाजपा प्रवक्ता अजय आलोक ने असम विधानसभा अध्यक्ष के इस फैसले की सराहना की है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर हल्ला मचाने वाले लोग बताएं कि संविधान के किस अनुच्छेद में ये लिखा है कि जुमे की नमाज के लिए दो घंटे की छुट्टी होनी चाहिए।
ये एक कोलोनियल फैसला था, जिसको हटाया गया। लेकिन अगर विपक्ष का मन है कि जुमे की दिन नमाज के लिए दो दिन की छुट्टी मिलनी चाहिए तो कांग्रेस पार्टी के नौ एमपी, टीएमसी के पांच एमपी और सपा के चार एमपी मुसलमान हैं, वो सदन में बिल लाकर इसको संविधान में डाल दें।
क्यों उठाया गया ये कदम, असम के स्पीकर बिस्वाजीत डिमरी ने क्या कहा?
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, असम के स्पीकर बिस्वाजीत डिमरी से जब इस मामले को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि ब्रिटिश जमाने में सैदुल्लाह साहब के कार्यकाल में यह परंपरा जैसी हो गई थी। विधानसभा को 11.30 बजे से स्थगित कर दिया जाता था। डिमरी ने कहा कि उस समय बांग्लादेश असम के साथ था जिसकी राजधानी शिलांग में थी। हो सकता है कि उस समय इस्लाम धर्म को मानने वाले कई सदस्य ये प्रस्ताव लेकर आए होंगे। बकौल डिमरी, जबसे मैं स्पीकर बना हूं, मैंने नोटिस किया कि शुक्रवार को समयाभाव के कारण बहस नहीं हो पाती है।
बिना स्थगन हर दिन अब सुबह 9:30 बजे कार्यवाही शुरू होगी
बता दें कि नियम संशोधन के बाद असम विधानसभा में अब शुक्रवार को स्थगन प्रावधान के बिना हर दिन सुबह 9:30 बजे कार्यवाही शुरू होगी। यह निर्णय चल रहे सत्र के अंतिम दिन लिया गया। शुक्रवार 31 अगस्त को भाजपा असम प्रदेश ने अपने एक एक्स पोस्ट में इसकी जानकारी देते हुए लिखा था कि “सैदय सादुल्लाह द्वारा असम विधानसभा में जुमे की नमाज के लिए तीन घंटे के स्थगन के नियम को खारिज कर दिया गया है। अब से सदन में जुमे की नमाज के लिए कोई ब्रेक नहीं हुआ करेगा।
आदेश के एक अंश में कहा गया, “असम विधानसभा के गठन के बाद से, शुक्रवार को विधानसभा की बैठक सुबह 11 बजे स्थगित कर दी जाती थी, ताकि मुस्लिम सदस्य नमाज के लिए जा सकें। मुस्लिम सदस्यों के नमाज से वापस आने के बाद दोपहर के भोजन के बाद विधानसभा की कार्यवाही फिर शुरू होती थी। अन्य दिनों में सदन की कार्यवाही, धार्मिक उद्देश्यों के लिए बिना किसी स्थगन के चलती थी।”
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने फैसले का किया स्वागत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) ने असम सरकार के फैसले का समर्थन किया है। एमआरएम के राष्ट्रीय संयोजक शाहिद सईद ने कहा कि, यह निर्णय देश के धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील मूल्यों को सुदृढ़ करने में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘कर्म ही पूजा है’ का सिद्धांत सभी धर्मों के लोगों पर समान रूप से लागू होता है, और सरकारी कामकाज में धार्मिक आधार पर किसी भी तरह का विशेषाधिकार असमानता को बढ़ावा देता है।
उन्होंने कहा, 1937 में मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्लाह द्वारा शुरू की गई इस प्रथा का उद्देश्य विशेष रूप से मुसलमानों को ध्यान में रखते हुए नमाज के लिए छुट्टी प्रदान करना था। लेकिन, एमआरएम का तर्क है कि यदि यह प्रथा इतनी ही आवश्यक होती, तो इसे केवल असम की विधानसभा में ही नहीं, बल्कि पूरे देश के अन्य विधानसभाओं और संसद (लोकसभा और राज्यसभा) में भी लागू किया गया होता। इसके विपरीत, कोई भी सरकार, यहां तक कि वो पार्टियां जो मुस्लिम वोट बैंक के समर्थन के लिए जानी जाती हैं, जैसे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस आदि, ने भी इस प्रकार के नियम को अपनाने की आवश्यकता महसूस नहीं की। मंच के मुताबिक, यह निर्णय देश के धर्मनिरपेक्ष और समानता के मूल्यों को बनाए रखने में भी सहायक सिद्ध होगा।