भारत के पहले आई ड्रॉप को बनाने की मिली मंजूरी जो पढ़ने के लिए चश्मे की जरूरत को कर देगा खत्म

इंडस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 109 से 180 करोड़ लोगों के इस स्थिति से प्रभावित होने का अनुमान है। मसूरकर के अनुमान के अनुसार, भारत में 40 साल से ज्यादा उम्र वाले 45 फीसदी लोगों को प्रेसबायोपिया है।

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Approval to make India's first PresVu eye drop which will eliminate the need for glasses for reading DCGI Entod Pharmaceuticals

प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो- IANS)

नई दिल्ली: ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने देश की पहली आई ड्रॉप को मंजूरी दे दी है। दावा है कि यह आई ड्रॉप पढ़ने के लिए चश्मे की जरूरत को खत्म कर सकती है।

करीब दो साल से भी अधिक समय के बाद इसे मंजूरी दी गई है जिसे प्रेसबायोपिया के इलाज के लिए बनाया गया है। इसे तैयार करने वाली कंपनी का नाम एंटोड फार्मास्यूटिकल्स और इस आई ड्रॉप को "प्रेसवु" नाम दिया गया है।

यह आई ड्रॉप अक्टूबर के पहले हफ्ते से भारत के मेडिकल दुकानों पर उपलब्ध होगी। इसे केवल पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर के प्रिस्क्रिप्शन के साथ ही बेचा जाएगा।

इसे इस्तेमाल करने के लिए पहले डॉक्टरों से इसे प्रेस्क्राइब कराना होगा। आई ड्रॉप की कीमत 345 रुपए रखा गया है और इसकी एक शीशी करीब एक महीने तक चल सकती है।

क्या है "प्रेसवु" आई ड्रॉप?

"प्रेसवु" भारत का पहला आई ड्रॉप है जिसे विशेष रूप से प्रेसबायोपिया से पीड़ित लोगों के लिए पढ़ने के चश्मे पर निर्भरता को कम करने के लिए विकसित किया गया है। प्रेसबायोपिया आंखों की एक ऐसी स्थिति है जिसमें लोग धीरे-धीरे नजदीक के चीजों को देखने की क्षमता को खो देते हैं।

पौधे से प्राप्त यौगिक पाइलोकार्पिन से बना यह आई ड्रॉप पुतलियों के आकार को कम करने काम करने के लिए बनाया गया है। इससे लोगों को करीब की चीजों को देखने में मदद मिलती है।

कैसे करता है यह काम

मुंबई स्थित एंटोड फार्मास्यूटिकल्स के सीईओ निखिल के मसूरकर के मुताबिक, आई ड्रॉप का केवल एक बूंद 15 मिनट में काम करना शुरू कर देता है और इसका असर छह घंटों तक रहता है।

पहली बूंद के तीन से छह घंटे के भीतर दूरसी बूंद डालने पर इसका असर और भी बढ़ जाता है। इस आई ड्रॉप को भारती मरीजों की आंखो पर टेस्ट किया गया है। इसे भारतीय आबादी की जेनेटिक्ट विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है जिससे यह विदेशों में मौजूद इस तरह के उत्पाद से इसे अलग बनाता है।

आई ड्रॉप से पहले लोगों के पास थे ये ऑप्शन

कंपनी को इस ड्रॉप को बनाने की मंजूरी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की विषय विशेषज्ञ समिति (एसईसी) की सिफारिश के बाद मिली है। कंपनी आंख, ईएनटी और त्वचाविज्ञान दवाओं में विशेषज्ञता के लिए जानी जाती है।

यह अपने उत्पाद को 60 से अधिक देशों में निर्यात करता है। इसके लॉन्च से पहले प्रेसबायोपिया से पीड़ित लोगों को चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस का इस्तेमाल करना पड़ता था या फिर सर्जरी करानी पड़ती थी।

दुनिया के अन्य देशों में भी आपूर्ति की है योजना

अपने अत्पाद पर बोलते हुए कंपनी ने कहा है कि आई ड्रॉप के बारे में डॉक्टरों को जानकारी देने और इसके इस्तेमाल के बारे में बताने के लिए कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी जा रही है।

कंपनी का कहना है कि भारत के आलावा उसकी नजर दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में इसकी मांग को भी पूरा करना है और इसे अमेरिका तब बढ़ाने की भी योजना है।

प्रेसबायोपिया किसे कहते हैं?

आंखों की एक ऐसी स्थिति को प्रेसबायोपिया कहते हैं जिसमें इससे पीड़ित लोगों को पास की चीजें दिखाई नहीं देती है। यह स्थिति आमतौर पर 40 साल से ज्यादा लोगों के बीच देखी जाती है जो 60 साल के लोगों में ज्यादा खराब स्थिति में चली जाती है।

इस स्थिति को दूर करने के लिए लोगों को चश्मे और कॉन्टैक्ट लेंस का इस्तेमाल करना पड़ता है। कई केस में लोग सर्जरी के जरिए भी इस समस्या को दूर करवाते हैं।

इंडस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 1.09-1.8 बिलियन (109 से 180 करोड़) लोगों के इस स्थिति से प्रभावित होने का अनुमान है। मसूरकर के अनुमान के अनुसार, भारत में 40 साल से ज्यादा उम्र वाले 45 फीसदी लोगों को प्रेसबायोपिया है।

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