अदालत ने तमिलनाडु सरकार को पुलिस की गंभीर चूक के लिए छात्रा को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का भी निर्देश दिया।
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चेन्नईः प्रतिष्ठित अन्ना यूनिवर्सिटी परिसर में 19 वर्षीय छात्रा के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। इस गंभीर घटना के बाद, मद्रास हाई कोर्ट ने शनिवार को तमिलनाडु सरकार को लापरवाही के लिए फटकार लगाते हुए मामले की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) गठित करने का आदेश दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यम और वी. लक्ष्मीनारायण की पीठ ने शनिवार को सुनवाई के दौरान दिया।
एफआईआर की चूक पर अदालत सख्त, सरकार पर भारी जुर्माना
न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यम और वी. लक्ष्मीनारायण की पीठ ने पुलिस द्वारा एफआईआर में पीड़िता की पहचान उजागर करने और उसमें "शर्मनाक भाषा" का उपयोग करने पर कड़ी आलोचना की। कोर्ट ने कहा कि यह न केवल पीड़िता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि उसे मानसिक पीड़ा देने और उसको दोषी ठहराने जैसा है।
एफआईआर में लिखा गया था कि आरोपी ने पीड़िता और उसके मित्र के निजी पलों का वीडियो रिकॉर्ड कर उसे ब्लैकमेल किया। न्यायमूर्ति ने कहा, "एफआईआर की भाषा पीड़िता को शर्मिंदा करने वाली है। यह पूरी तरह से अस्वीकार्य और समाज में महिलाओं के प्रति दकियानूसी सोच को बढ़ावा देने वाली है।"
अदालत ने तमिलनाडु सरकार को पुलिस की गंभीर चूक के लिए छात्रा को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का भी निर्देश दिया। पुलिस ने एफआईआर को सार्वजनिक रूप से अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर पीड़िता की पहचान उजागर कर दी थी। अदालत ने तमिलनाडु पुलिस को निर्देश दिया है कि छात्रा और उसके परिवार को सुरक्षा मुहैया कराई जाए।
कैसे हुई घटना, जानें मामला?
घटना 23 दिसंबर की है, जब दूसरे वर्ष की छात्रा अपने एक पुरुष मित्र के साथ अन्ना यूनिवर्सिटी परिसर में बैठी थी। इसी दौरान आरोपी, 37 वर्षीय ग्नानसेकरन ने छात्रा के मित्र को बुरी तरह पीटा और उसे एक इमारत के पीछे ले जाकर यौन उत्पीड़न किया। पुलिस ने पीड़िता की शिकायत पर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।
घटना के बाद तमिलनाडु में छात्रों और राजनीतिक संगठनों के बीच इस मुद्दे को लेकर भारी आक्रोश फैल गया। हाई कोर्ट ने मौजूदा जांच में खामियों की ओर इशारा करते हुए तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की एसआईटी गठित करने का आदेश दिया।
महिलाओं की सुरक्षा पर अदालत की सख्ती
अदालत ने राज्य और समाज की जिम्मेदारी पर जोर देते हुए कहा, "महिलाओं को स्वतंत्र रूप से घूमने, अपनी पसंद के कपड़े पहनने और किसी के साथ बातचीत करने का अधिकार है। उन्हें इसके लिए जज नहीं किया जाना चाहिए।"
पीठ ने यह भी जोड़ा, "यह पीड़िता की गलती नहीं थी, बल्कि समाज की है, जो महिलाओं को लगातार जज करता है।"
उधर, घटना की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने भी इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया और एक तथ्य-जांच समिति गठित की। महिला आयोग ने तमिलनाडु पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि आरोपी एक "आदतन अपराधी" है और पुलिस की चूक ने उसे ऐसे अपराध करने के लिए प्रेरित किया।
आयोग की अध्यक्ष विजय रहाटकर ने राज्य पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि पीड़िता को नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा और सुरक्षा दी जाए। आयोग ने आरोपी पर कड़े प्रावधानों के तहत कार्रवाई की मांग की और एफआईआर में गलती करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बात कही।