चेन्नईः मद्रास हाईकोर्ट ने अन्ना विश्वविद्यालय यौन उत्पीड़न मामले में दर्ज एफआईआर के लीक होने की जांच कर रही विशेष जांच टीम (SIT) को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने पत्रकारों को परेशान करने पर आपत्ति जताई और SIT को निर्देश दिया कि वह रिपोर्टर्स को डराने-धमकाने से बचे और जांच पूरी होने के बाद जब्त किए गए मोबाइल फोन लौटाए।
SIT इस बात की जांच कर रही है कि एफआईआर कैसे लीक हुई। यह एफआईआर लीक होने के कारण पीड़िता की पहचान उजागर हो गई थी, जिसकी जांच SIT कर रही है। इसके अलावा 23 दिसंबर को विश्वविद्यालय परिसर में एक बाहरी व्यक्ति द्वारा 19 वर्षीय छात्रा के यौन शोषण की घटना भी इस जांच का हिस्सा है।
'अधिकारियों से पूछताछ के बजाय पत्रकारों को परेशान किया जा रहा'
कोर्ट ने कहा कि SIT पहले एफआईआर तैयार करने और उसे अपलोड करने वाले पुलिस अधिकारियों से पूछताछ करने के बजाय पत्रकारों को बुलाकर प्रताड़ित कर रही है और उनके मोबाइल फोन जब्त कर रही है। पत्रकारों ने इसको लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
याचिका में कहा गया कि जांच एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए व्हाट्सएप पर क्राइम बीट के पत्रकारों को कई बार समन भेजा, उनके मोबाइल फोन जब्त किए और महिला SIT सदस्यों ने उनके परिवार, निजी जीवन और संपत्तियों से संबंधित गैर-जरूरी सवाल पूछे। एक पत्रकार ने तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक (DGP) शंकर जिवाल को बताया कि उन्हें तो संपत्ति जब्ती का दस्तावेज (Return of Property) तक नहीं दिया गया।
हाईकोर्ट ने SIT की कार्रवाई पर कड़ी नाराजगी जाहिर की
मंगलवार को सुनवाई के दौरान न्यायाधीश जीके इलंथिरायन ने SIT पर कड़ी नाराजगी जाहिर की।
उन्होंने पूछा, "क्या पत्रकारों ने पीड़िता की पहचान उजागर की? एफआईआर को इंटरनेट पर किसने डाला? पुलिस ने खुद इसे अपलोड किया, क्योंकि वे ही इस दस्तावेज के स्वामी थे। तो फिर गलती किसकी है? पत्रकारों के अलावा और कितने लोगों को समन भेजा गया? क्या संबंधित पुलिस अधिकारियों से पूछताछ हुई? क्या एफआईआर लिखने वाले अधिकारी से सवाल किया गया? आखिर पत्रकारों को क्यों परेशान किया जा रहा है? उनके फोन क्यों जब्त किए गए? जब एफआईआर खुद पुलिस वेबसाइट पर डाली गई थी, तो असली जांच क्यों नहीं हो रही?"
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, चार पत्रकारों ने राज्य पुलिस की वेबसाइट से यौन शोषण मामले की एफआईआर डाउनलोड की थी। उनका कहना था कि एफआईआर डाउनलोड करना अपराध नहीं है और उन्होंने अपनी रिपोर्टिंग में पीड़िता की पहचान का खुलासा नहीं किया।
FIR कैसे लीक हो गई, पुलिस कमिश्नर ए अरुण ने क्या बताया?
घटना के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ग्रेटर चेन्नई सिटी पुलिस कमिश्नर ए अरुण ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता (IPC) से भारतीय न्याय संहिता (BNS) में बदलाव के दौरान तकनीकी खामी के कारण एफआईआर गलती से अपलोड हो गई थी। अन्यथा यह अपराध और अपराधियों की ट्रैकिंग नेटवर्क प्रणाली (CCTNS) में स्वचालित रूप से लॉक हो जाती और गोपनीय रहती।
पुलिस ने 25 दिसंबर को कोट्टूरपुरम इलाके से 37 वर्षीय बिरयानी विक्रेता ज्ञानसेकरण को गिरफ्तार किया था। उस पर आरोप है कि उसने विश्वविद्यालय में घुसकर दूसरी वर्ष की छात्रा के साथ यौन शोषण किया। पीड़िता ने अपनी शिकायत में बताया कि 23 दिसंबर को वह एक इमारत के पीछे अपने पुरुष मित्र के साथ समय बिता रही थी, तभी आरोपी ने उन्हें धमकाया। पहले आरोपी ने तीसरे वर्ष के छात्र उसके मित्र के साथ मारपीट की और फिर पीड़िता के साथ यौन शोषण किया। अगले दिन पीड़िता ने कोट्टूरपुरम महिला थाने में शिकायत दर्ज कराई। इस घटना ने राज्य में भारी राजनीतिक बवाल मचा दिया था।