नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 2014 के आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत सीटों के परिसीमन को लागू करने संबंधी याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। अधिनियम के अनुसार, राज्य के पुनर्गठन के बाद दोनों राज्यों में सीटों की संख्या बढ़ाई जानी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 170 परिसीमन की अनुमति 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के आधार पर ही देता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 84वें और 87वें संविधान संशोधन के तहत परिसीमन की प्रक्रिया तब तक स्थगित है जब तक 2026 के बाद की जनगणना नहीं हो जाती।
याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया था कि केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में 2011 की जनगणना के आधार पर विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी, लेकिन आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को इससे वंचित रखा गया।
इस पर अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर एक केंद्रशासित प्रदेश है और वहां के लिए संसदीय कानून और संविधान के भाग VI के अध्याय III के प्रावधान लागू नहीं होते। अतः वहां पर परिसीमन की प्रक्रिया अलग तरीके से संचालित होती है।
तेलंगाना विधानसभा में पास हुआ था प्रस्ताव
मार्च 2025 में तेलंगाना विधानसभा ने एक प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या 119 से बढ़ाकर 153 की जाए। यह मांग 2011 की जनगणना और आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के अनुरूप थी।
मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने केंद्र सरकार की दोहरी नीति पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने संसद में पूछे गए अपने एक सवाल का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि सीटों का परिसीमन 2026 के बाद की जनगणना के आधार पर ही होगा।
रेवंत रेड्डी ने यह भी कहा कि सिक्किम में 2018 में कैबिनेट के प्रस्ताव के जरिए परिसीमन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई, जबकि आंध्र और तेलंगाना की मांगों को नजरअंदाज किया गया।