आंध्र प्रदेश ने 3 दशक बाद 2 बच्चे वालों के चुनाव लड़ने पर रोक की नीति हटाई, जानें वजह?

विजयवाड़ा में आयोजित एक कैबिनेट बैठक में यह कहा गया है कि राज्य में जो मौजूदा बुजुर्गों की आबादी है वह 11 फीसदी है जिसके 2047 तक 19 प्रतिशत होने का अनुमान है।

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Andhra Pradesh ended two-child policy after three decades Chandrababu Naidu know reason

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू (फाइल फोटो- IANS)

विजयवाड़ा: आंध्र प्रदेश सरकार ने दो बच्चों वाली नीति को खत्म करने का फैसला किया है। इस कानून के तहत राज्य में जिस किसी शख्स के पास दो बच्चों थे उनके स्थानीय और नागरिक निकाय चुनाव लड़ने पर रोक लगी हुई थी।

राज्य में घटती प्रजनन दर जैसी अन्य समस्याओं को देखते हुए सरकार ने यह फैसला लिया है। दिलचस्प बात यह है कि एक तरफ जहां भारत के अन्य राज्य जैसे राजस्थान, असम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए सख्त कानून लाए जा रहे हैं।

ऐसे समय में आंध्र प्रदेश इस तरह के कानून को खत्म करने की बात कह रहा है। इस तरह के कानून को रद्द करने वाला आंध्र प्रदेश पहला राज्य है।

साल 1994 से शुरू हुई इस नीति को हाल में बनी मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली सरकार ने इसे खत्म करने का फैसला किया है। सात अगस्त को सीएम नायडू की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक इस पर फैसला लिया गया है।

केवल आंध्र प्रदेश ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत के कई राज्यों में दो बच्चे वाली नीति अभी भी लागू है। इन राज्यों में महाराष्ट्र, ओडिशा, कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्य शामिल हैं।

पंचायत राज चुनावों के लिए हटा था प्रतिबंध

बुधवार को राज्य मंत्रिमंडल द्वारा एपी नगर निगम अधिनियम 1994 और पंचायत राज अधिनियम 1994 में आवश्यक संशोधन करने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। हालांकि 2019 में जब राज्य में पंचायत राज चुनाव हुआ था तब इस बैन को हटा दिया गया था लेकिन अन्य स्थानीय निकायों पर यह कानून अभी भी लागू है।

इस कारण समाप्त किया जा रहा है कानून

इस कानून को खत्म करने के पीछे कई कारण हैं। इन कारणों में आंध्र प्रदेश की लगातार गिर रही जनसंख्या मुख्य कारण है। कानून को रद्द कर राज्य की जनसांख्यिकी को बेहतर ढंग से प्रबंधित करना का लक्ष्य है।

दक्षिण भारत के जिन राज्यों में यह कानून लागू है, उनका यह कहना है कि उन्हें केंद्र सरकार से कम फंड मिलते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर किसी राज्य को फंड का आवंटित किया जाता है। देश के अन्य राज्यों के मुकाबले कम जनसंख्या होने के कारण इन राज्यों को केंद्र से कम फंड मिल रहे हैं।

आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्य को यह चिंता है कि उनके सफल जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों से साल 2026 में परिसीमन पर रोक समाप्त होने के बाद लोकसभा में उनके प्रतिनिधित्व में कमी आ सकती है।

इन राज्यों में भी है यह कानून

यह कानून अभी भी भारत के कई राज्यों में लागू है। नीचे उन राज्यों की लिस्ट दी गई है जहां पर इस तरह के कानून लागू है।

महाराष्ट्र: राज्य के जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम के तहत जिस शख्स के पास दो से अधिक बच्चे होंगे, वे स्थानीय चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। इसके अलावा यहां पर महाराष्ट्र सिविल सेवा (छोटे परिवार की घोषणा) नियम 2005 भी लागू है जिसमें दो से अधिक बच्चे वालों को राज्य सरकार की नौकरियां भी नहीं मिलेगी।

ओडिशा: ओडिशा जिला परिषद अधिनियम के तहत जिस शख्स के पास दो से अधिक बच्चे हैं, उनके चुनाव लड़ने पर रोक है।

कर्नाटक: भारत के इस दक्षिणी राज्य में 1993 का ग्राम स्वराज और पंचायत राज कानून लागू है। इस कानून के तहत उस शख्स को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं मिलती है जिसके घर में उसके परिवार के इस्तेमाल के लिए साफ शौचालय नहीं है।

गुजरात: साल 2005 में सरकार ने गुजरात स्थानीय प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन किया था। इस संशोधन के तहत जिस शख्स के पास दो बच्चे थे, वे चुनाव नहीं लड़ सकते थे। ऐसे शख्स पर पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों सहित स्थानीय स्व-शासन निकायों के चुनावों में भी भाग लेने पर रोक है।

लगातार गिर रही जनसंख्या से चिंतित है आंध्र प्रदेश

विजयवाड़ा में आयोजित एक कैबिनेट बैठक में यह कहा गया है कि राज्य में जो मौजूदा बुजुर्गों की आबादी है वह 11 फीसदी है जिसके 2047 तक 19 प्रतिशत होने का अनुमान है। वहीं अगर राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो इस स्तर पर 60 वर्ष और उससे अधिक आयु वालों की जनसंख्या मौजूदा 10 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत होने की भविष्यवाणी है।

युवाओं की घटती संख्या और वरिष्ठ नागरिकों की बढ़ती आबादी से राज्य काफी चिंतित है। ऐसे में कैबिनेट ने यह राय दी है कि तेजी से बदलती जनसांख्यिकीय प्रोफाइल को रोकने की कोशिश की जानी चाहिए।

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