पॉक्सो (POCSO) कोर्ट ने मंगलवार 1990 के दशक के शुरुआती दौर के चर्चित अजमेर सेक्स स्कैंडल में छह आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। अजमेर की स्पेशल पॉक्सो कोर्ट के जज रंजन सिंह ने हर आरोपी पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
अभियोजन पक्ष के वकील वीरेंद्र सिंह ने बताया कि “अजमेर में 1992 में हुए बलात्कार के लिए छह आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। दोषियों में नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद जमीर हुसैन शामिल हैं।
वीरेंद्र सिंह ने बताया कि अदालत ने उनमें से प्रत्येक पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। कुल 16 लड़कियों ने अदालत में अपने बयान दर्ज कराए। वहीं, बचाव पक्ष के वकील अजय कुमार वर्मा ने कहा कि हम हाईकोर्ट में सजा के खिलाफ अपील दायर करेंगे।
बता दें कि आरोपियों को जुलाई में तत्कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) और 120 बी (षड्यंत्र) के तहत दोषी ठहराया गया था। हुसैन अग्रिम जमानत पर बाहर था, जबकि बाकी पहले से ही अलग-अलग अवधि के लिए जेल में रह चुके हैं।
वीरेंद्र सिंह ने कहा कि उपरोक्त छह लोगों के लिए एक अलग मुकदमा चलाया गया क्योंकि पहली चार्जशीट दाखिल करने के समय उनके खिलाफ जांच लंबित रखी गई थी।
क्या है अजमेर सेक्स स्कैंडल?
अजमेर सेक्स स्कैंडल 1992 में सामने आया। इस स्कैंडल में 11 से 20 वर्ष की आयु की स्कूली लड़कियों का व्यवस्थित यौन शोषण और नग्न तस्वीरों के जरिए ब्लैकमेल करना शामिल था। व्यक्तियों का एक गिरोह नाबालिग लड़कियों से दोस्ती करता था, समझौता करने की स्थिति में उनकी तस्वीरें लेता था, पीड़ितों को एक फार्महाउस में बुलाता था और बाद में उनके साथ बलात्कार करता था।
अपराधी प्रभावशाली परिवारों के संपन्न युवक थे, जिनमें खादिमों, सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के रखवाले और अजमेर युवा कांग्रेस और अजमेर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े लोग शामिल थे।
कैसे हुआ अजमेर सेक्स स्कैंडल का खुलासा?
1990-92 के बीच अजमेर के एक नामी गर्ल्स कॉलेज की हाई प्रोफाइल छात्राओं की न्यूड तस्वीरें अचानक से शहर में सर्कुलेट होने लगीं। अजमेर के एक स्थानीय अखबार में काम करने वाले रिपोर्टर संतोष गुप्ता ने खबर की पड़ताल की और इस घटना को सामने लाया।
उन्होंने समाचार पत्र ‘दैनिक नवज्योति’ में “बड़े लोगों की पुत्रियां ब्लैकमेल की शिकार” शीर्षक से खबर छापी। इस सनसनी मामले के सामने आते ही देश में व्यापक आक्रोश और भय फैल गया था।
राजस्थान में उस वक्त भैरो सिंह शेखावत की सरकार थी। उन्होंने मामले की जांच सीआईडी और सीबी को सौंप दी। जांच में घटना की कई तहें खुलीं। पता चला कि आरोपियों ने पहले अजमेर के एक बड़े व्यापारी के बेटे से दोस्ती की। फिर उसे जबरन गलत हरकतों में फंसाकर उसकी अश्लील तस्वीरें लीं। इन तस्वीरों के जरिए व्यापारी के बेटे को ब्लैकमेल कर आरोपियों ने उसकी गर्लफ्रेंड को एक पोल्ट्री फार्म पर बुलाया।
इसके बाद, आरोपियों ने उस लड़की के साथ बलात्कार किया और उसकी भी अश्लील तस्वीरें लीं। इन तस्वीरों से उसे ब्लैकमेल कर आरोपियों ने उस पर दबाव बनाया कि वह अपनी सहेलियों को उनके पास बुलाए। बदनामी से डरकर लड़की धोखे से अपनी सहेलियों को आरोपियों के अड्डों पर ले जाने लगी, जहां आरोपी उन लड़कियों का भी बलात्कार कर उनकी अश्लील तस्वीरें खींचते और फिर उन्हें ब्लैकमेल कर अन्य लड़कियों को शिकार बनाते रहे।
इस गिरोह ने 100 से ज्यादा लड़कियों को अपना शिकार बनाया था। मामले में कुल 18 लोग शामिल थे। इनसमें से 9 को पहले ही सजा हो चुकी है, एक ने आत्महत्या कर ली और एक (जहूर चिश्ती) पर लड़के से छेड़छाड़ का आरोप लगा। इसपर अलग से मुकदमा चला। वहीं, एक (अलमास) 1994 में फरार हो गया। बाद में उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया था। मंगलवार 20 अगस्त को बचे हुए आरोपियों को दोषी करार दिया गया है।
आरोपी पहुंचे हाईकोर्ट
मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए 8 आरोपियों ने डीजे कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। 2001 में अदालत ने सबूतों के अभाव में 4 आरोपियों को बरी कर दिया जबकि अन्य चार की सजा बरकरार रखी। उन्हें 1998 में एक स्थानीय अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
चार ने की सुप्रीम कोर्ट में अपील
अन्य चार आरोपियों ने इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुनाया और सभी चारों की सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 2003 में 10 साल कर दी। चूंकि आरोपी पहले ही 10 साल जेल की सजा काट चुके थे, इसलिए सभी को जेल से रिहा कर दिया गया।