हैदराबादः वक्फ अधिनियम में हालिया संशोधनों के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने विरोध अभियान शुरू करने की घोषणा की है। बोर्ड ने इसे "संविधान विरोधी" और मुस्लिम अधिकारों पर हमला बताया है। बोर्ड ने कहा है कि यह आंदोलन तेलंगाना से शुरू होकर अगले तीन महीनों तक देशभर में शांतिपूर्ण तरीके से चलाया जाएगा।
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, बोर्ड द्वारा शनिवार को जारी बयान में कहा गया कि "वक्फ अधिनियम में हालिया संशोधन न केवल भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों- विशेषकर अनुच्छेद 14, 15, 25, 26 और 29- का स्पष्ट उल्लंघन हैं, बल्कि यह सरकार की उस मंशा को भी उजागर करते हैं जो मुस्लिम वक्फ संपत्तियों पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करना चाहती है।"
बोर्ड का आरोप है कि संसद में बहुमत का उपयोग करते हुए सरकार ने लाखों मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों की आपत्तियों को दरकिनार कर कानून पारित किया। बोर्ड ने इसे ‘एकतरफा निर्णय’ बताया, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की आत्मा के विरुद्ध है।
'स्वायत्तता को कमजोर करने वाला संशोधन'
बोर्ड का कहना है कि संशोधित अधिनियम मुस्लिम समुदाय को अपनी धार्मिक संपत्तियों का प्रबंधन करने के अधिकार से वंचित करता है। केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों की संरचना और सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव कर, इन संस्थाओं की स्वायत्तता को गंभीर रूप से प्रभावित किया गया है।
बोर्ड ने विशेष रूप से उस नए प्रावधान पर आपत्ति जताई जिसमें वक्फ संपत्ति दान करने वाले व्यक्ति (वकिफ) के लिए पिछले पांच वर्षों से ‘प्रैक्टिसिंग मुस्लिम’ होना अनिवार्य कर दिया गया है। बोर्ड का कहना है कि यह शर्त इस्लामी शरीयत और भारतीय संविधान, दोनों की भावना के विरुद्ध है।
'अन्य धर्मों को संरक्षण, मुसलमानों के अधिकारों में कटौती?'
बोर्ड ने सरकार पर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा, "हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन समुदायों को उनकी धार्मिक संपत्तियों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है।"
मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के अनुसार, इन संशोधनों के विरोध में देशभर से लगभग 5 करोड़ मुसलमानों ने संयुक्त संसदीय समिति को ईमेल भेजकर आपत्ति दर्ज कराई, साथ ही मौखिक और लिखित सुझाव भी दिए गए। बावजूद इसके, बोर्ड का कहना है कि इन सबको नज़रअंदाज कर दिया गया।
बोर्ड ने कहा कि उसने इस कानून को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है और अब यह मामला जनता की अदालत में भी ले जाया जा रहा है। तीन महीने तक चलने वाले इस राष्ट्रव्यापी अभियान की शुरुआत तेलंगाना में एक राज्यस्तरीय कार्यक्रम से होगी। बोर्ड ने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण, संवैधानिक और कानूनी दायरे में रहेगा।
धार्मिक नेताओं, राजनीतिक प्रतिनिधियों, नागरिक समाज और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की भी इस अभियान में भागीदारी की योजना है।
कानून संविधान के अनुरूपः सरकार
उधर, केंद्र सरकार ने 25 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक प्राथमिक हलफनामा दायर कर बोर्ड की याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। सरकार का कहना है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पूरी तरह संवैधानिक है और यह किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता।
गौरतलब है कि यह संशोधित अधिनियम 2 और 3 अप्रैल को क्रमशः लोकसभा और राज्यसभा में पारित हुआ और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद विधि रूप में लागू हो गया।