दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद और विधानसभा चुनाव में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (AIMIM) उम्मीदवार ताहिर हुसैन को चुनाव प्रचार के लिए जमानत देने से इंकार किया है। हालांकि हाई कोर्ट ने उन्हें नामांकन करने के लिए कस्टडी पैरोल दी है।
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने ताहिर हुसैन को कस्टडी पैरोल देते हुए कहा कि राज्य को नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए सुविधा प्रदान करनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 लड़ने के लिए जरूरी औपचारिकताओं को भी पूरा करने का निर्देश भी प्रशासन को दिया।
अदालत ने हिरासती पैरोल देते हुए कुछ शर्तें भी लगाईं। इन शर्तों में कहा गया है कि हुसैन को इंटरनेट, मोबाइल फोन या फिर लैंडलाइन की पहुंच नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि वह नामांकन प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों के अलावा किसी से बात नहीं करेगा। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि हुसैन मीडिया से बात नहीं करेंगे।
अरविंद केजरीवाल और अब्दुल इंजीनियर का दिया था उदाहरण
हुसैन ने अंतरिम जमानत की अर्जी के लिए आप संयोजक अरविंद केजरीवाल और जम्मू कश्मीर के सांसद अब्दुल राशिद शेख उर्फ इंजीनियर जैसे कई उदाहरणों का हवाला दिया था। इन लोगों को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी गई थी। हालांकि न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा कि “अंतरिम जमानत देते समय प्रत्येक मामलों की विशिष्टताओं पर स्वतंत्र रूप से विचार किया जाना चाहिए।”
न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा कि केजरीवाल एक मौजूदा मुख्यमंत्री राष्ट्रीय पार्टी के संयोजक थे। वहीं राशिद के मामले में राज्य को चुनाव के उद्देश्य से अंतरिम जमानत पर उनकी रिहाई में कोई आपत्ति नहीं थी। आपको बता दें कि राशिद ने 2024 लोकसभा चुनाव जेल से लड़ा था, बाद में उसी साल हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
कोर्ट द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि “इस मामले में आवेदक/याचिकाकर्ता आम आदमी पार्टी का पूर्व पार्षद है और वर्तमान में सांसद नहीं हैं। इस मामले में आवेदक/याचिकाकर्ता के खिलाफ 2020 में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में हुए दंगों के संगीन आरोप दर्ज हैं। इस दंगे में करीब 59 लोगों की मौत हुई है, इसलिए इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। सिर्फ इसलिए कि याचिकाकर्ता पूर्व में नगर-निगम का पार्षद रह चुका है, यह कोई अनोखी परिस्थिति नहीं हो सकती है कि इस आधार पर उसे अंतरिम जमानत दी जा सके।”
यह आदेश दिल्ली पुलिस द्वारा मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष यह स्वीकार किए जाने के बाद आया है कि वह पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन को विधानसभा चुनावों के लिए नामांकन दाखिल करने के लिए हिरासत पैरोल की सुविधा देने के लिए उत्तरदायी है। लेकिन कोर्ट ने सुझाव देते हुए अंतरिम जमानत देने से इंकार किया कि इससे ध्रवीकरण बढ़ सकता है।
ताहिर हुसैन: दिल्ली दंगों के हैं आरोपी
ताहिर हुसैन के ऊपर 2020 में हुए उत्तर-पूर्वी दंगों के आरोप हैं। पूर्व पार्षद ताहिर ने 14 जनवरी से 9 फरवरी तक अंतरिम जमानत की मांग की थी। वह पिछले महीने एआईएमआईएम पार्टी में शामिल हुए और मुस्तफाबाद विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
हुसैन 16 मार्च 2020 से ही कस्टडी में हैं और 2020 में हुए दंगों में मारे गए आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा का आरोप है। उनके खिलाफ यूएपीए समेत दंगों से संबंधित साजिश और मनी लॉन्ड्रिंग 11 मामले दर्ज हैं। दिल्ली में हुए दंगों के मामले में आरोपी बनाए जाने के बाद आम आदमी पार्टी ने ताहिर हुसैन को निलंबित किया था।
पुलिस का पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा के समक्ष कहा कि “आपको (ताहिर हुसैन) को 4-5 हफ्तों के लिए अंतरिम जमानत पर रखने का विरोध पुलिस द्वारा किया जा रहा है…यह दिल्ली दंगों के दौरान हुए ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता है। यह बहुत संवेदनशील मुद्दा है, हम इसे बर्दास्त नहीं कर सकते।”
हुसैन की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन के कहा कि उनका मुवक्किल हिरासत पैरोल स्वीकार करने के लिए तैयार है जिससे कि वह जेल से पेपर पूरे कर सकें, बैंक खाता खोल सकें और जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर सकें। हालांकि, जॉन ने प्रचार के लिए अंतरिम जमानत पर जोर दिया। जॉन ने कहा- “मैं 8 मामलों में बेल पर हूं… यूएपीए मामले में रेगुलर बेल कोर्ट में लंबित है… मुझे सभी 11 मामलों में बरी किया जा सकता है… चुनाव प्रचार 4 फरवरी को खत्म हो रहा है… भले ही मुझे कस्टडी पैरोल मिल जाए, मैं इसे लेने के लिए तैयार हूं लेकिन इसके बाद कृपया चुनाव प्रचार करने के लिए जमानत दे दें।”
शर्मा ने अंतरिम जमानत के लिए हुसैन की याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि “वह समाज के लिए खतरा है… यहां वह मुख्य आरोपी है, मुख्य फंडर है”।
अंतरिम जमानत के लिए अपनी याचिका में, हुसैन ने 2024 में AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जब उन्हें लोकसभा चुनाव में भाग लेने के लिए जमानत दी गई थी। हालाँकि, शर्मा ने कहा कि केजरीवाल के मामले में एक अलग कानूनी और तथ्यात्मक मैट्रिक्स था।
अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल ने कहा “… (चुनाव) लड़ने का अधिकार मौलिक नहीं है… यदि गंभीर आरोप हैं, तो आप अपना नामांकन दाखिल कर सकते हैं और खुद को उम्मीदवार के रूप में पेश कर सकते हैं, लेकिन प्रचार करने और गवाहों को प्रभावित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती… यहां आरोप एक आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या का है …उनका शव मिला, सिर और चेहरे पर तेज चोट के निशान थे। मामले में चार गवाह पहले ही मुकर चुके हैं। मुकदमा महत्वपूर्ण चरण में है…सभी गवाह एक ही इलाके से हैं।”