नई दिल्लीः नई सरकार के गठन और केंद्र में विभागों के बंटवारे के बाद अब लोकसभा अध्यक्ष को लेकर खींचातान शुरू हो गई है। कई रिपोर्टों में दावा किया गया है कि यह पद एनडीए के दो बड़े घटक दलों जदयू और टीडीपी चाहती हैं। हालांकि भाजपा यह पद अपने पास रखना चाहती है। पिछली दो लोकसभाओं में सुमित्रा महाजन और ओम बिड़ला अध्यक्ष थे। अब सवाल यही है कि लोकसभा अध्यक्ष का पद किसे मिलेगा?
खबरों की मानें पीएम नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में लोकसभा अध्यक्ष रहे ओम बिड़ला इस दावेदारी में आगे हैं। प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल में उन्हें जगह नहीं दिए जाने के पीछे भी यही वजहें बताई जा रही हैं। इस बीच लोकसभा अध्यक्ष की रेस में डी पुरंदेश्वरी का नाम भी सामने आने लगा है। पुरंदेश्वरी टीडीपी के संस्थापक और दिग्गज नेता रहे एनटी रामाराव की बेटी हैं और आंध्र प्रदेश से भाजपा की नेता हैं। वह भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। साल 2009 में मानव संसाधन विकास मंत्री तथा वर्ष 2012 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री भी रह चुकी हैं।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, 18वीं लोकसभा के लिए चुने गए 543 नवनिर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण के लिए 18 जून से लोकसभा का सत्र शुरू हो सकता है। बताया जा रहा है कि सत्र के पहले दो दिनों के दौरान यानी 18 और 19 जून को नवनिर्वाचित सांसदों को सदन की सदस्यता की शपथ दिलाई जा सकती है। सांसदों के शपथ ग्रहण कार्यक्रम के संपन्न होने के बाद सदन को नए अध्यक्ष का भी चयन करना पड़ेगा।
लोकसभा अध्यक्ष के चुने जाने को लेकर कोई विशेष मानदंड नहीं है लेकिन राजनीतिक परंपरा के अनुसार, सरकार की तरफ से लोकसभा के अध्यक्ष के पद के लिए सांसदों में से ही एक सांसद का नाम प्रस्तावित किया जाएगा। अगर विपक्ष, सर्वसम्मति से लोकसभा अध्यक्ष के चयन के सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है तो फिर चुनाव की नौबत नहीं आएगी। अगर विपक्ष अपनी तरफ से भी उम्मीदवार खड़ा करता है तो फिर 20 जून को लोकसभा के नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए सदन में वोटिंग हो सकती है।
खबरों की मानें तो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 21 जून को दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, के संयुक्त सत्र को संबोधित कर सकती हैं। हालांकि सत्र की तारीखों को लेकर अभी औपचारिक घोषणा होनी बाकी है। वह प्रोटेम स्पीकर को शपथ भी दिलाएंगी जिसके लिए केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष कोडिकुन्निल सुरेश के नाम की चर्चा है।
अध्यक्ष का चुनाव कैसे होता है
संविधान के अनुसार, नई लोकसभा के पहली बार बैठक से ठीक पहले अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है। राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रोटेम स्पीकर नए सांसदों को पद की शपथ दिलाता है। इसके बाद, लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव साधारण बहुमत से होता है।
लोकसभा अध्यक्ष का पद एक पेचीदा पद माना जाता है। क्योंकि सदन को चलाने वाले व्यक्ति के रूप में, अध्यक्ष का पद गैर-पक्षपाती माना जाता है। लेकिन वे किसी न किसी पार्टी से जुड़े रहे हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेता एन संजीव रेड्डी ने चौथी लोकसभा के अध्यक्ष चुने जाने के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। पीए संगमा, सोमनाथ चटर्जी और मीरा कुमार जैसे अन्य लोगों ने औपचारिक रूप से पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया, लेकिन उन्होंने पुष्टि की कि वे पूरे सदन के हैं, किसी पार्टी के नहीं। वास्तव में, चटर्जी को 2008 में यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उनके गैर-पक्षपाती रुख के कारण सीपीएम ने निष्कासित कर दिया था।
लोकसभा अध्यक्ष पद पर टीडीपी और जदयू की नजरें क्यों?
टीडीपी और जदयू मौजूदा एनडीए सरकार में दो बड़े घटक दल हैं। दोनों के पास कुल 28 सीटें हैं। चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार राजनीतिक दिग्गज हैं औरअध्यक्ष का पद ‘बीमा’ के रूप में चाहते हैं। पिछले कुछ वर्षों में, सत्तारूढ़ दलों के भीतर विद्रोह के कई मामले सामने आए हैं। पार्टियों में टूट हुआ तो सरकारें भी गिरीं। ऐसे मामलों में, दलबदल विरोधी कानून लागू होता है। लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका तब काफी अहम हो जाती है। क्योंकि सदन के अध्यक्ष के पास दलबदल के आधार पर सदस्यों को अयोग्य करार देने का पूर्ण अधिकार होता है। नीतीश और नायडू इसी सोच के साथ यह पद अपने पास रखना चाहते हैं कि अगर भविष्य में भाजपा उनकी पार्टी में तोड़फोड़ की स्थिति पैदा की तो स्पीकर उस वक्त ढाल के रूप में काम आएंगे।