हैदराबाद: भारत में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर विभिन्न राज्यों में चर्चा हो रही है। आंध्र प्रदेश ने हाल ही में अपनी “दो-बच्चों की नीति” को खत्म कर दिया था। पहले यह नियम था कि दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति पंचायत चुनावों में भाग नहीं ले सकते हैं।
लेकिन सरकार ने इस नियम को खत्म कर सभी को चुनावों में भाग लेने की अनुमति दे दी थी। अब यही काम तेलंगाना भी करने जा रहा है। तेलंगाना पहले आंध्र प्रदेश का हिस्सा था। उसको आंध्र प्रदेश की तरह ही अपने राज्य में “दो बच्चों की नीति” को खत्म करने के लिए अपनी पंचायत राज अधिनियम 2018 में बदलाव करना होगा।
अंग्रेजी वेबसाइट ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि यह मुद्दा जल्द ही राज्य के मंत्रिमंडल के पास जाएगी। उनका कहना था कि राज्य को भविष्य में अपनी बूढ़ी होती आबादी से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। तेलंगाना में साल 2047 तक युवाओं की संख्या को बढ़ाने की जरूरत होगी।
खबर के मुताबिक “दो बच्चों की नीति” को आंध्र प्रदेश ने जब खत्म किया था, तब कहा गया था कि राज्य की प्रजनन दर बहुत कम हो गई है और बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है।
राज्य के मंत्री के पार्थसारथी के मुताबिक आंध्र प्रदेश की प्रजनन दर केवल 1.5 है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 2.11 है, जो लंबे समय में राज्य की उत्पादकता पर असर डाल सकता है।
तेलंगाना को परिसीमन और लोकसभा में कम सीट मिलने की भी चिंता
इस बीच, जनसांख्यिकीविदों (Demographers) का मानना है कि यह नीति खत्म करने से बुजुर्गों की संख्या में कमी नहीं आएगी, लेकिन इसे साल 2026 में होने वाले परिसीमन से जोड़ा जा रहा है।
परिसीमन की प्रक्रिया जनसंख्या के आधार पर होगी, और इससे यह डर है कि दक्षिणी राज्यों को उत्तर भारत के मुकाबले कम लोकसभा सीटें मिल सकती हैं। इस चिंता को लेकर, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के नेताओं ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वे इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाए और आर्थिक प्रदर्शन के आधार पर सीटों का वितरण करें।
बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव ने क्या कहा था
भारत राष्ट्र समिति (BRS) के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव ने भी केंद्र से आग्रह किया कि दक्षिणी राज्यों को परिवार नियोजन के कारण सजा नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इन राज्यों की स्थिति अलग है और केंद्र को परिसीमन में किसी भी प्रकार के अन्याय से बचना चाहिए।
उधर, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी जनसंख्या गिरावट पर चिंता जताई और तीन बच्चों की नीति का समर्थन किया है। उनका कहना था कि अगर जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे गिरती है, तो समाज की स्थिरता संकट में पड़ सकती है।
दो बच्चों की नीति का इतिहास भी दिलचस्प है। वर्ष 1981 और 1991 के बीच जनसंख्या नियंत्रण के उपायों के अपेक्षित परिणाम न मिलने के बाद, “दो-बच्चों की नीति” को लागू किया गया था।
इस नीति के तहत दो से अधिक बच्चों वाले लोग सरकारी चुनावों में नहीं खड़े हो सकते थे। अब तेलंगाना यदि इस नीति को खत्म करता है, तो वह छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश के बाद इस कदम को उठाने वाला छठा राज्य बन जाएगा।