अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और अब सीरिया, बदलाव के नाम पर लूटपाट क्या सुरक्षित भविष्य की गारंटी है?

मीडिया रिपोट्स के मुताबिक रविवार को विद्रोही लड़के और स्थानीय लोग प्रेसिडेंशियल प्लेस में घुस गए और वहां जमकर लूटपाट की। यह महल, लंबे समय से असद के कठोर शासन का प्रतीक था।

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(241208) -- DAMASCUS, Dec. 8, 2024 (Xinhua) -- Locals rally in a street in Damascus, Syria, Dec. 8, 2024. In a stunning turn of events on Sunday, opposition forces in Syria seized control of the capital, Damascus, following a rapid offensive that saw major Syrian cities falling like dominos within days. After taking over, opposition fighters appeared on state television channels to announce what they described as the fall of Damascus and the end of President Bashar al-Assad's rule. (Photo by Ammar Safarjalani/Xinhua)

नई दिल्लीः सीरिया की राजधानी रविवार को असाधारण घटनाक्रम की गवाह बनी। विद्रोही गुटों ने दमिश्क पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति बशर-अल-असद देश छोड़ कर भाग गए। इसके बाद शहर में वही सब देखने को मिला इससे पहले श्रीलंका और बांग्लादेश में देखने को मिला और इसने से सीरिया के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

मीडिया रिपोट्स के मुताबिक रविवार को विद्रोही लड़के और स्थानीय लोग प्रेसिडेंशियल प्लेस में घुस गए और वहां जमकर लूटपाट की। यह महल, लंबे समय से असद के कठोर शासन का प्रतीक था। माना जाता है कि यह महल आलीशान गाड़ियों, धन-संपत्ति और सैन्य हार्डवेयर का खजाना है। इस लूटपाट से जुड़े कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। हालांकि उनकी स्वतंत्रत रूप से पुष्टि नहीं की जा सकती। एक वायरल वीडियो में लोग राष्ट्रपति भवन से फर्नीचर लेते जाते दिखे।

एक अन्य तस्वीर में सीरियाई राष्ट्रपति भवन के अंदर एक बुजुर्ग सीरियाई व्यक्ति कुर्सी पर बैठकर विजय चिन्ह दिखाते हुए तस्वीर खिंचवा रहा है। महल में स्टोररूम और अलमारियां भी खाली कर दी गईं। वहीं एक वीडियो में लोग महल की पार्किंग में आलीशान गाड़ियों को ढूंढते नजर आए।

अराजकता और बदलाव के बीच अधिक फासला नहीं होता

पिछले कुछ दिनों में इस तरह के नजारे कुछ और देशों में भी देखे गए जहां अलग-अलग कारण से तख्ता पलट देखने को मिला। ये दृश्य डर पैदा करते हैं। अराजकता और बदलाव के बीच अधिक फासला नहीं होता है। ऐसे मौको पर उन्माद से भरी पड़ी इस फर्क को भूल जाती है। भीड़ भूल जाती है कि उसकी दुश्मनी सिर्फ नेताओं से थी और राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर वह सत्ता परिवर्तन पर सवालिया निशान खड़ा कर रही है।

अगस्त 2024 में बांग्लादेश में शेख हसीना के घर में लोगों ने लूटपाट की। यह तब हुआ जब हसीना को देश भर में हो रहे सरकारी विरोधी प्रदर्शनों की वजह से देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।

जुलाई 2022 में श्रीलंका में भी कुछ ऐसा ही कुछ हुआ था जब भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहे लोग राष्ट्रपति भवन में घुस गए। प्रेसिडेंट गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़ कर जाना पड़ा।

अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल को कब्जे में ले लिया था उस वक्त भी राष्ट्रपति भवन में तालिबानी लड़ाकों द्वारा लूटपाट करने के वीडियो वायरल हुए थे।

इन देशों के लिए आगे आने वाले दिन कोई सुखद नहीं रहे

हालांकि इन देशों के लिए आगे आने वाले दिन कोई सुखद नहीं रहे। श्रीलंका आर्थिक संकट से निकलने के लिए अब भी संघर्ष कर रहा है। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार जाने के बाद अल्पसंख्यकों विशेष तौर पर हिंदुओं को कथित तौर पर निशाना बनाया गया। वहीं अफगानिस्तान में दमनकारी तालिबान शासन ने महिलाओं के तमाम अधिकारों को छीन लिया और देश को कट्टरपंथी दिशा में मोड़ दिया।

सीरिया के सामने भी चुनौतियां कम नहीं है। राष्ट्रपति असद के शासन पर जहां कई गंभीर लगे वहीं विद्रोहियों का रिकॉर्ड भी पाक साफ नहीं है।

दमिश्क पर कब्जा करने वाले विद्रोहियों का नेतृत्व एक ऐसे संगठन द्वारा किया जा रहा है जिसे अल-कायदा से रिश्तों के कारण आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। संगठन का नाम नाम हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) है।

राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रविवार को कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि असद को सत्ता से हटाने वाले कुछ विद्रोही समूहों का आतंकवाद और मानवाधिकारों के हनन का गंभीर रिकॉर्ड है।"

इस बात पर सवाल बने हुए हैं कि सुन्नी एचटीएस चरम इस्लामी नियमों को लागू करने में किस हद तक आगे बढ़ेगा और यह शिया और अलवाइट्स जैसे गैर-सुन्नी मुसलमानों और ईसाइयों जैसे अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार करेगा।

(यह कहानी आईएएनएस समाचार एजेंसी की फीड द्वारा प्रकाशित है। )

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