इमरजेंसी की 50वीं बरसी: जब 21 महीने के लिए 'कैद' हो गया था देश...इंदिरा गांधी का एक फैसला और रौंद दिया गया था भारत का लोकतंत्र

आपातकाल के दौरान आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी सहित समेत 24 अन्य संगठनों पर बैन लगा दिया गया था।

एडिट
50 years of Emergency When country imprisoned for 21 months decision of congress Indira Gandhi India democracy trampled pm modi amit shah

इंदिरा गांधी (फोटो: X @INCKerala)

नई दिल्ली: आज से 49 साल पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। 21 महीनों तक चलने वाले आपातकाल में भारतीयों के अधिकार का बड़े पैमाने पर हनन हुआ था।

इस दौरान विपक्ष के कई नेताओं को जेल में भी डाल दिया गया था और कई संस्थानों पर प्रतिबंध भी लगा दिया था। देश में आपातकाल लगने के पीछे कई कारणों में सबसे प्रमुख कारण राजनीतिक अस्थिरता थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद रायबरेली से सांसद इंदिरा गांधी अयोग्य साबित हो गई थीं। उन्हें कोर्ट द्वारा चुनाव प्रकिया से दूर भी रहने को कहा गया था।

इस कारण पूरे देश में विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक तनाव बढ़ा था। इंदिरा गांधी की सरकार ने तब यह दावा किया था कि देश में गहरी अशांति और आंतरिक अस्थिरता का माहौल है। यह हवाला देकर देश में इमरजेंसी लागू की गई थी।

आपातकाल पर क्या बोली इंदिरा गांधी

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की थी। उन्होंने आधी रात को ऑल इंडिया रेडियो पर अपने प्रसारण में इसकी घोषणा करते हुए कहा था कि राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की है, ऐसे में लोगों को इससे घबराने की जरूरत नहीं है। प्रसारण में इंदिरा गांधी ने उनके खिलाफ रचे गए साजिश का जिक्र किया था।

आपातकाल के पीछे की वजह क्या थी?

दरअसल, 1971 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने तत्कालीन 521 सदस्यीय संसद में 352 सीटों से प्रचंड जीत हासिल की थी। इस चुनाव में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे राज नारायण ने इंदिरा गांधी पर चुनाव में हेरफेर और धांधली का आरोप लगाया था और मामला कोर्ट तक भी गया था।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में 12 जून 1975 को फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी को बतौर
बतौर सांसद अयोग्य घोषित कर दिया। इसके बाद पूरे देश में कई जगहों पर इंदिरा गांधी के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे। विपक्ष के नेता इंदिरा गांधी से इस्तीफा मांग रहे थे।

इधर दूसरी ओर कोर्ट का फैसला मानने की बजाय इंदिरा गांधी इसके खिलाफ तत्काल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थीं। सुप्रीम कोर्ट से उन्हें थोड़ी राहत मिली। सुप्रीम कोर्ट ने 24 जून 1975 को अपने फैसले में कि वह लोकसभा में संसद सदस्य (सांसद) के रूप में बनी रह सकती है, लेकिन इसकी कार्यवाही में भाग नहीं ले सकती और न ही सांसद के रूप में मतदान कर सकती हैं। कोर्ट ने ये भी कहा कि वह एक सांसद के रूप में कोई भत्ता या पारिश्रमिक नहीं लेंगी।

अहम बात यह रही कि शीर्ष अदालत ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति दी और बतौर पीएम उन्हें सदन में और प्रधानमंत्री के रूप में वेतन लेने की भी अनुमति दी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला हालांकि पूरी तरह से गांधी के खिलाफ नहीं था, यह उनके साथ भी नहीं था। इंदिरा गांधी इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को पूरी तरह से मिटाना चाहती थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट से फैसला उनके मुताबिक नहीं आया।

उस समय इंदिरा गांधी को कई और समस्याओं का भी सामाना करना पड़ रहा था। मसलन गुजरात में छात्रों के नवनिर्माण आंदोलन और बिहार में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन ने इंदिरा गांधी की समस्या को और बढ़ा दिया था।

सन 1974 में रेलवे की हड़ताल भी इंदिरा गांधी के खिलाफ माहौल तैयार कर रही थी। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के 24 जून को आए फैसले के एक दिन बाद ही यानी 25 जून, 1975 से देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी गई।

अनुच्छेद 352 के तहत इमरजेंसी का हुआ था ऐलान

कोर्ट के फैसले और देश में विरोध प्रदर्शन को देखते हुए आपातकाल की घोषणा की गई थी। इंदिरा गांधी की शिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में इमरजेंसी का ऐलान किया था।

यह अनुछेद राष्ट्रपति को युद्ध, बाहरी आक्रमण या आंतरिक गड़बड़ी के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे की स्थिति में आपातकाल घोषित करने की अनुमति देता है।

इमरजेंसी के ऐलान के बाद क्या हुआ

आपातकाल की घोषणा के बाद जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, राज नारायण, मुलायम सिंह यादव, विजयाराजे सिंधिया, अटल बिहार वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस और अरुण जेटली जैसे विपक्षी नेताओं और कई कार्यकर्ताओं को जबरन जेल में भी डाल दिया गया था।

यही नहीं उस दौरान बड़े पैमाने पर जबरन लोगों की नसबंदी भी कराई गई थी और प्रेस की आजादी पर भी रोक लगा दी गई थी। इस दौरान देश के नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का भी हनन किया गया था और बड़े पैमाने पर सत्ता का केंद्रीकरण भी हुआ था।

इन संगठनों पर लगाया गया था बैन

इमरजेंसी के दौरान आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी सहित समेत 24 और संगठनों पर बैन लगा दिया गया था।

कब खत्म हुआ था आपातकाल

21 महीने तक आपातकाल चलने के बाद 18 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनाव का आह्वान किया था। उस समय देश में 16 से 20 मार्च तक चुनाव हुआ था। इस चुनाव के बाद 21 मार्च 1977 को आपातकाल हटा दिया गया था।

इमरजेंसी पर क्या बोले पीएम मोदी 

आपातकाल पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, "आज का दिन उन सभी महान पुरुषों और महिलाओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया। हमें याद दिलाती है कि कैसे कांग्रेस पार्टी ने बुनियादी स्वतंत्रता को नष्ट कर दिया और भारत के संविधान को कुचल दिया, जिसका हर भारतीय बहुत सम्मान करता है।"

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी अपने एक्स हैंडल पर कहा, "देश में लोकतंत्र की हत्या और उस पर बार-बार आघात करने का कांग्रेस का लंबा इतिहास रहा है। साल 1975 में आज के ही दिन कांग्रेस के द्वारा लगाया गया आपातकाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अहंकार में डूबी, निरंकुश कांग्रेस सरकार ने एक परिवार के सत्ता सुख के लिए 21 महीनों तक देश में सभी प्रकार के नागरिक अधिकार निलंबित कर दिए थे। इस दौरान उन्होंने मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी थी, संविधान में बदलाव किए और न्यायालय तक के हाथ बांध दिए थे। आपातकाल के खिलाफ संसद से सड़क तक आंदोलन करने वाले असंख्य सत्याग्रहियों, समाजसेवियों, श्रमिकों, किसानों, युवाओं व महिलाओं के संघर्ष को नमन करता हूं।"

यही नहीं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी और बीजेपी नेता जेपी नड्डा ने भी आपातकाल पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article