नई दिल्लीः भारतीय संविधान की मूल हस्ताक्षरित प्रति को लेकर राज्यसभा में मंगलवार को जोरदार बहस हुई। भाजपा सांसद डॉ. राधामोहन अग्रवाल ने मुद्दा उठाते हुए कहा कि आज आम नागरिकों और विधि के छात्रों को संविधान की वह मूल प्रति नहीं मिलती, जिस पर 26 जनवरी 1950 को संविधान निर्माताओं ने हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने आरोप लगाया कि संविधान की प्रमुख कलाकृतियों और चित्रों को बिना किसी संवैधानिक प्रक्रिया के हटाया गया।

इस पर राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने स्पष्ट किया कि संविधान की मूल हस्ताक्षरित प्रति ही असली संविधान है, और उसमें केवल संसद द्वारा स्वीकृत संशोधन ही किए जा सकते हैं। उन्होंने निर्देश दिया कि संविधान की वही प्रति प्रचारित और प्रसारित की जाए, जिसमें उसके मूल चित्र और हस्ताक्षर मौजूद हैं।

संविधान से हटाए गए चित्रों पर बहस

डॉ. राधामोहन अग्रवाल ने राज्यसभा में बताया कि संविधान रचते समय संविधान सभा ने प्रसिद्ध कलाकार नंदलाल बोस को आमंत्रित किया था। सभा ने उन्हें निर्देशित किया था कि संविधान की भावनाओं को परिलक्षित करने के लिए कुछ चित्र बनाकर संविधान के हिस्से बनाए जाय। 

नंदलाल बोस ने संविधान के 22 अध्यायों के सर्वोत्तम पहले पेज पर ऊपर के स्थान पर 22 चित्र बनाए। उन चित्रों को लोगों ने हटा दिया। भगवान कृष्ण जब युद्ध के मैदान में उपदेश दे रहे थे, उस दृश्य को हटा दिया गया। भगवान बुद्ध के उपदेश वाली फोटो को हटाया गया। महावीर और विक्रमादित्य की फोटो को हटाया गया। यहां तक कि महात्मा गांधी की जो दो फोटो थी, उन्हें भी इन लोगों ने हटा दिया। लक्ष्मीबाई और शिवाजी की फोटो को भी हटाने का काम किया। नेता सुभाष चंद्र बोस को भी ये स्वीकार नहीं कर पा रहे थे, उसे हटा दिया। 

उन्होंने सवाल उठाया कि इन ऐतिहासिक चित्रों को बिना किसी संवैधानिक स्वीकृति के हटाया गया, जो अनुचित है। राधामोहन ने कहा कि संविधान संशोधन की प्रक्रिया में केवल संसद द्वारा अनुमोदित बदलाव ही किए जा सकते हैं, लेकिन संविधान की मूल प्रति से चित्रों को असंवैधानिक तरीके से हटाया गया।

धनखड़ ने संविधान की मूल प्रति के प्रचार पर दिया जोर

सभापति जगदीप धनखड़ ने इस बहस के दौरान कहा कि "संविधान की मूल प्रति वही है, जिस पर हमारे संविधान निर्माताओं ने हस्ताक्षर किए थे और जो 22 ऐतिहासिक चित्रों का अभिन्न हिस्सा थी। यदि इस प्रति को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं कराया जाता, तो यह संविधान निर्माताओं का अपमान होगा।"

उन्होंने यह भी कहा कि—"कोई भी बदलाव केवल संसद के अनुमोदन के बाद ही किया जा सकता है, अन्यथा उसे संवैधानिक रूप से स्वीकार नहीं किया जाएगा।"

खड़गे और नड्डा के बीच तीखी नोकझोंक

इस मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आपत्ति जताते हुए कहा कि "बाबासाहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसे अब विवादों में घसीटा जा रहा है। जब 1950 में यह लागू हुआ, तब इसमें किसी ने बदलाव नहीं देखा। नेहरू, पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी सभी उस समय मौजूद थे। लेकिन आज इसे अनावश्यक रूप से मुद्दा बनाया जा रहा है।"

खड़गे के इस बयान पर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जवाब देते हुए कहा कि "डॉ. राधामोहन अग्रवाल ने जो मुद्दा उठाया है, वह बेहद महत्वपूर्ण है। संविधान की मूल प्रति में ऐतिहासिक चित्रों का समावेश था, लेकिन वर्तमान में प्रकाशित प्रतियों में वे गायब हैं।"

उन्होंने सदन में संविधान की मूल प्रति दिखाते हुए कहा कि संविधान की कला और संस्कृति को संरक्षित करना जरूरी है। इस पर कांग्रेस सांसद जयराम रमेश नाराज हो गए, जिस पर सभापति धनखड़ ने मुस्कुराते हुए कहा— जयराम जी को गुस्सा क्यों आ रहा है, यह भारत के स्वास्थ्य मंत्री बताएंगे। नड्डा की तरफ इशारा करते हुए सभापति ने कहा कि यह आपकी जिम्मेदारी है।

 अब आगे क्या होगा?

टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने मुद्दे पर कहा कि यहां मेरे सामने मौजूद कम्प्यूटर में 404 पेज वाली संविधान हैं। यह भी गलत और गैरकानूनी होगा कि इसमें भी वो 22 कलाकृतियां नहीं है। सभापति जगदीप धनखड़ ने इसपर पछतावा जाहिर किया। उन्होंने निर्देश दिया कि देश में सभी के लिए मूल भारतीय संविधान होना आवश्यक है। धनखड़ ने कहा, हमें एक संशोधन करना चाहिए और मैंने सरकार सहित सभी संबंधित लोगों द्वारा यथासंभव शीघ्रता से ऐसा किया जाना चाहिए। यदि आपकी (सरकार) ओर से कोई प्रकाशन है, तो आप इन कदमों को उठाए जाने चाहिए, और मुझे यकीन है कि कम से कम संभव समय में। सरकार यह सुविधाजनक बनाएगी कि लोग केवल और केवल भारतीय संविधान के प्रामाणिक संस्करण को जानें।