Lok Sabha Elections: 20 लाख लोहे की मतपेटियां, चार महीने लगे थे…जानिए आजाद भारत के पहले चुनाव की दिलचस्प कहानी

1947 में आजाद हुए भारत के पहले आम चुनाव का पहला वोट 25 अक्तूबर, 1951 को हिमाचल प्रदेश की चीनी तहसील में डाला गया। इसके बाद पूर देश में वोट डालने की प्रक्रिया 1952 के जनवरी और फरवरी में भी अलग-अलग चरणों में चलती रही।

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Story of first election of independent India

आजाद भारत में पहला आम चुनाव 1951-52 में कराया गया (प्रतीकात्मक तस्वीर, IANS)

भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। हालांकि वर्षों की गुलामी झेलने और तमाम चुनौतियों के बीच भारत में लोकतंत्र का सफर बहुत आसान भी नहीं रहा। देश आज 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटा है। ऐसे में यह मौका पीछे जाकर इतिहास के उस पन्ने को पलटने का भी है, जब भारत में आजादी के बाद पहली बार चुनाव कराये गए थे। उस समय लोक सभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी कराए गए। नए आजाद हुए देश में कई चुनौतियां थी। ऐसे में इस पूरी प्रक्रिया को पूरा करने में करीब चार महीने से ज्यादा का समय लगा और नतीजों के लिए भी कई दिनों का इंतजार करना पड़ा।

साल 1951-52 में कराया गया पहला चुनाव

भारत में कराया गया पहला चुनाव कई मायनों में बेहद अहम और अनूठा था। इतने बड़े देश में चुनाव कराने के लिए जिन मूलभूत सुविधाओं की जरूरत होती है, वह भी सभी जगहों पर नहीं थी। भारत विविधताओं से भरा देश है और ऐसा सिर्फ भाषा, संस्कृति आदि के मामले में ही नहीं बल्कि यहां भौगोलिक रूप से भी तमाम चुनौतियां हैं। बर्फीले पहाड़ से लेकर जंगल, नदियों तक को पार करना उस समय बड़ी चुनौती थी। यातायात के साधन बहुत सीमित थे। अलग-अलग राज्यों के मौसम के हालात भी बड़ी समस्या थी। ऐसे में फेयर और ट्रांसपैरेंट चुनाव कराना बेहद मुश्किल काम था।

पश्चिमी देश भी हो गए थे भारत के पहले चुनाव की सफलता से हैरान

भारत में 1951-52 में जब पहली बार आम चुनाव कराए गए तो देश की आबादी करीब 37 करोड़ थी। फैसला लिया गया कि 21 साल और इससे ज्यादा के उम्र के सभी लोगों को इस चुनाव में वोट देने का अधिकार होगा। फिर चाहे वह महिला हो, पुरुष हो, अमीर या फिर गरीब।

पश्चिमी देशों के लिए भारत का ये कदम हैरानी भरा था। उन्हें लगा कि जिस देश को हाल में आजादी मिली है और वो भी विभाजन और खून-खराबे की त्रासदी के साथ, वहां सभी व्यस्कों को मतदान का अधिकार देना नई मुश्किलें खड़ी कर सकता है। आजादी के बाद कई रियासतों को भी हाल में कड़े संघर्ष और कई कोशिशों के बाद भारत में मिलाया गया था। यह भी पहले चुनाव की सफलता को लेकर आशंका की अहम वजह थी। हालांकि इन सबके बावजूद चुनाव सफलतापूर्व कराये गए।

1947 में मिली आजादी…फिर चुनाव में क्यों हुई थी देरी?

भारत 1947 में आजाद हुआ। हालांकि पहला चुनाव 1951-52 में कराए गए। सवाल उठता है कि इतनी देरी क्यों हुई? दरअसल इसकी वजह ये रही कि हमारे पास अपना संविधान नहीं था, चुनाव को लेकर नियम-कायदे नहीं थे। संविधान बनने और लागू होते-होते 1950 का साल आ चुका था। इसलिए ये देरी हुई। वैसे चुनाव के लिए मतदाता सूची की तैयारी आजादी के तुरंत बाद ही शुरू हो गई थी। नवंबर 1947 में ही प्रांतीय और राज्य सरकारों को मतदाता सूची तैयार करने के लिए एक योजना तैयार करने के लिए कह दिया गया था।

सुकूमार सेन बने पहले मुख्य चुनाव आयुक्त

निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए एक अलग संस्था की जरूरत महसूस की गई। ऐसे में निर्वाचन आयोग का गठन जनवरी, 1950 में हुआ। इसके बाद इसी साल के मार्च में सुकूमार सेन की नियुक्ति भी चीफ इलेक्शन कमिश्नर ऑफ इंडिया के तौर पर हो गई। इसलिए अगर देश का पहला चुनाव सफल रहा तो इसका एक श्रेय सुकूमार सेन को भी जाता है।

सुकुमार सेन 1921 में भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी बने थे। बंगाल में लंबे समय तक काम करने के बाद वो पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव बने। इसके बाद उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर दिल्ली लाया गया।

महिला मतदाताओं के नाम जोड़ना और निरक्षरता थी बड़ी समस्या

इस पहले चुनाव में एक बड़ी समस्या महिला मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में जोड़ना था। असल में उस दौर में उत्तर भारत में ज्यादातर महिलाएं अपना नाम बताने से कतराती थीं। वे खुद को किसी की बेटी या फलां की पत्नी कहलाना ठीक मानती थीं। ऐसे में उनका नाम वोटर्स लिस्ट में कैसे जोड़ा जाए, ये बड़ी समस्या थी। इसके बावजूद निर्वाचन आयोग का साफ निर्देश था कि केवल मतदाता का नाम ही मतदाता सूची में लिखा जाए। इस वजह से तब करीब 28 लाख महिलाओं का नाम मतदाता सूची में नहीं लिखा जा सका।

इसके अलावा तब निरक्षरता भी एक बड़ी समस्या थी। 37 करोड़ की आबादी में करीब 17 करोड़ योग्य वोटर्स थे। इसमें भी करीब 80 प्रतिशत लोग पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे।

ऐसे में चुनाव आयोग ने एक नया आइडिया निकाला। मतपत्र में उम्मीदवारों के नाम के आगे चुनाव चिन्ह छापा गया और इसके अलावा हर मतदान केंद्र पर अलग-अलग मतपेटियां रखी रहती थीं, जिस पर पार्टी का चुनाव चिन्ह बना होता था और मतदाताओं को उसमें अपना मत डालना पड़ता था।

पहले चुनाव के लिए बनाई गई थी लोहे की 20 लाख मतपेटियां

साल 1951-52 के इस पहले चुनाव में कुल मिलाकर करीब 4500 सीटों के लिए वोट डाले गए थे जिसमें 489 सीटें लोकसभा की थीं। पूरे भारत में कुल 2 लाख 24 हजार मतदान केंद्र बनाए गए थे। इसके अलावा लोहे की 20 लाख मतपेटियां बनाई गई थीं। कुल 16500 लोगों को मतदाता सूची बनाने के लिए छह महीने के अनुबंध पर रखा गया था। मतदान केंद्र बनाने के लिए सरकारी इमारतों सहित कई जगहों पर निजी इमारतों का भी इस्तेमाल निर्वाचन आयोग ने किया। कई जगहों पर तम्बू आदि लगाकर उसे बतौर मतदान केंद्र इस्तेमाल किया गया।

भारत में कई राज्यों में वहां की मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों से निपटना भी निर्वाचन आयोग के लिए बड़ी समस्या थी। मसलन, राजस्थान जैसे राज्य में आयोग को कठिन चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा, जहां विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र थे और सड़कें तथा संचार सुविधाओं का अभाव था। ऐसे में जैसलमेर और जोधपुर जैसे कुछ रेगिस्तानी जिलों में मतदान कर्मियों के परिवहन के लिए बड़ी संख्या में ऊंटों को किराए पर लिया गया।

इसके अलावा चुनाव में धांधली नहीं हो सके और एक शख्स एक बार से अधिक वोट नहीं करे, इसके लिए भी निर्वाचन आयोग ने रास्ता निकाला। निर्वाचन आयोग ने भारतीय वैज्ञानिकों की मदद से खास स्याही तैयार करवाई, जिसे तत्काल नहीं मिटाया जा सकता था। आगे चलकर यह उंगली पर लगी यह स्याही भारतीय चुनाव की पहचान बन गई।

25 अक्टूबर, 1951 को डाला गया पहला वोट

आजाद भारत के इस पहले आम चुनाव का पहला वोट 25 अक्टूबर, 1951 को हिमाचल प्रदेश की चीनी तहसील में डाला गया। पूर देश में वोट डालने की प्रक्रिया 1952 के जनवरी और फरवरी में भी अलग-अलग चरणों में चलती रही। पूरे देश व्यापक अशिक्षा और तमाम तरह की मुश्किलें के बावजूद करीब 51 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।

इन चुनाव में कांग्रेस पार्टी स्पष्ट रूप से मुख्य और बड़ी दावेदार थी, हालांकि इसके अलावा कम्युनिस्ट पार्टी से लेकर भारतीय जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी आदि कई पार्टियां चुनावी मैदान में उतरी। इस चुनाव से पहले 14 पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता दी गई, जबकि कुल 53 पार्टियों ने यह चुनाव लड़ा।

साल 1952 के फरवरी के अंतिम सप्ताह में पूरे देश में मतदान समाप्त हुआ। कांग्रेस पार्टी को लोकसभा में 489 में से 364 सीटें मिलीं जबकि राज्य विधानसभाओं की कुल 3280 सीटों में 2247 सीटें कांग्रेस को मिलीं। भारत के पहले आम चुनाव में सीपीआई कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया दूसरे नंबर पर रही। उसने लोकसभा चुनाव में 49 सीटों पर चुनाव लड़ा और 16 सीटें जीतीं।

इसके अलावा जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी ने 254 सीटों पर चुनाव लड़कर 12 सीटें हासिल की। भारतीय जनसंघ ने भी तीन सीटों पर जीत हासिल की। डॉ. भीमराव अम्बेडकर की शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन ने 35 सीटों पर चुनाव लड़ा और उनमें से दो सीटों पर उसे जीत मिली। साथ ही इस पहले चुनाव में 37 निर्दलीय भी जीत हासिल करने में कामयाब रहे।

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