नई दिल्ली: भारत ने म्यांमार पर संयुक्त राष्ट्र की एक मानवाधिकार रिपोर्ट की कड़ी निंदा करते हुए इसे पक्षपातपूर्ण और सांप्रदायिक बताया है। भारत ने कहा है कि इस रिपोर्ट को आधारहीन विश्लेषण कहा है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि अप्रैल में पहलगाम आतंकवादी हमले ने रोहिंग्या प्रवासियों के साथ व्यवहार को प्रभावित किया है।
इस रिपोर्ट पर मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा की तीसरी समिति में भारत का बयान देते हुए लोकसभा सांसद दिलीप सैकिया ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत थॉमस एच एंड्रयूज द्वारा किए गए दावों का ‘कोई भी तथ्यात्मक आधार नहीं है।’ उन्होंने टिप्पणी को भारत के खिलाफ ‘पक्षपाती और पूर्वाग्रही’ बताया।
भाजपा सांसद सैकिया ने कहा, ‘मैं अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के निर्दोष पीड़ितों के प्रति विशेष प्रतिवेदक (एसआर) द्वारा पक्षपातपूर्ण सांप्रदायिक दृष्टिकोण अपनाए जाने की कड़ी निंदा करता हूं।’ सैकिया ने कहा, ‘मेरा देश विशेष प्रतिवेदक द्वारा इस तरह के पूर्वाग्रह और संकीर्ण विश्लेषण को अस्वीकार करता है।’
उन्होंने म्यांमार में मानवाधिकारों पर एक ब्रीफिंग में कहा, ‘यह आरोप बिल्कुल भी तथ्यात्मक नहीं है कि इस आतंकवादी हमले ने म्यांमार के विस्थापितों को प्रभावित किया है।’
सांसद ने कहा कि अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले को म्यांमार के विस्थापितों से जोड़ने वाले दावे का ‘कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है।’
क्या कहा गया था रिपोर्ट में?
दरअसल संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि पहलगाम हमले के बाद भारत में म्यांमार के शरणार्थियों को अधिकारियों के दबाव और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जबकि इसमें म्यांमार का कोई नागरिक शामिल नहीं था। एंड्रयूज ने आरोप लगाया कि कुछ शरणार्थियों को हिरासत में लिया गया और उन्हें निर्वासित करने की धमकी दी गई।
सैकिया ने आरोपों को खारिज करते हुए संयुक्त राष्ट्र से भारत की छवि खराब करने वाली ‘असत्यापित और पूर्वाग्रहित मीडिया रिपोर्टों’ पर भरोसा न करने का आग्रह किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत में 20 करोड़ से ज्यादा मुसलमान रहते हैं, जो वैश्विक मुस्लिम आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है, और सभी धर्मों के लोगों के साथ सद्भाव से रह रहे हैं।
असम से सांसद सैकिया ने यह भी कहा कि भारत म्यांमार में बिगड़ते हालात और नशीले पदार्थों की तस्करी, हथियारों की तस्करी और मानव तस्करी सहित इसके सीमा पार प्रभावों को लेकर बेहद चिंतित है। उन्होंने चेतावनी दी कि कुछ विस्थापित समूहों में बढ़ते कट्टरपंथ ने कानून-व्यवस्था की चुनौतियाँ पैदा की हैं।
बता दें, दिलीप सैकिया महासभा में भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने वाले सांसदों में से एक हैं। भारत में रोहिंग्याओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरा देश विस्थापितों के बीच कट्टरपंथ के खतरनाक स्तर को देख रहा है, जिसके परिणामस्वरूप कानून-व्यवस्था की स्थिति पर दबाव और प्रभाव पड़ रहा है।’
म्यांमार में संकट पर भारत का रुख
भारत के रुख को दोहराते हुए सैकिया ने कहा कि म्यांमार में स्थायी शांति केवल समावेशी राजनीतिक संवाद और लोकतंत्र की शीघ्र बहाली से ही आ सकती है। उन्होंने कहा कि भारत ‘म्यांमार-स्वामित्व वाली और म्यांमार-नेतृत्व वाली’ शांति प्रक्रिया का समर्थन करता रहेगा और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए आसियान और संयुक्त राष्ट्र के सभी प्रयासों का समर्थन करता है।
म्यांमार को लेकर भारत के दृष्टिकोण के बारे में सैकिया ने कहा कि भारत हिंसा की तत्काल समाप्ति, राजनीतिक कैदियों की रिहाई, मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति, और समावेशी राजनीतिक संवाद के पक्ष में है।
बताते चलें कि एंड्रयूज अमेरिकी कांग्रेस के पूर्व डेमोक्रेटिक पार्टी सदस्य हैं और अब हार्वर्ड विश्वविद्यालय के दक्षिण-पूर्व एशिया मानवाधिकार परियोजना के निदेशक हैं। उन्होंने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों ने उन्हें बताया कि हाल के महीनों में उन्हें ‘भारतीय अधिकारियों द्वारा तलब किया गया, हिरासत में लिया गया, पूछताछ की गई और निर्वासन की धमकी दी गई।’
उन्होंने आरोप लगाया था कि लगभग 40 रोहिंग्या शरणार्थियों को समुद्र के रास्ते म्यांमार के तट पर छोड़ दिया गया, जबकि अन्य को बांग्लादेश भेज दिया गया।

