नई दिल्ली: भारत ने पूर्वी लद्दाख में अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ावा देने के एक बड़े कदम के तौर पर चीन से लगी सीमा के पास अपने नए न्योमा एयरबेस का संचालन शुरू कर दिया है। एयरबेस की शुरुआत बुधवार को हुई। यह उस समय हुआ है जब पूर्वी मोर्चे पर अरुणाचल प्रदेश में ‘पूर्वी प्रचंड प्रहार’ नामक एक बड़ा सैन्य अभ्यास चल रहा है।
चीन के साथ लगे 3,488 किलोमीटर लंबे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर नया एयरबेस भारत के लिहाज से बेहद अहम है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार एक सीनियर अधिकारी ने बताया, ‘दोनों देशों में द्विपक्षीय राजनयिक संबंधों में लगातार सुधार हो रहा है। आपसी सैन्य विश्वास बहाली के उपाय भी लगातार मजबूत किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर विश्वास की कमी अभी भी बनी हुई है।’
उन्होंने कहा, ‘एलएसी पर पूरी तरह तनाव कम न होने के कारण अप्रैल-मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में कई चीनी घुसपैठों के बाद से लगातार छठी सर्दियों में भी सैनिकों की अग्रिम तैनाती जारी रहेगी।’
न्योमा एयरबेस को अपग्रेड करने में 230 करोड़ का खर्च
भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह खुद दिल्ली के बाहरी इलाके हिंडन से एक सी-130जे ‘सुपर हरक्यूलिस’ विमान उड़ाकर न्योमा स्थित मुध हवाई अड्डे तक पहुँचे। यह 13,710 फीट की ऊँचाई पर स्थित दुनिया के सबसे ऊँचे हवाई अड्डों में से एक है। भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम इस एयरबेस के औपचारिक उद्घाटन के लिए उनके साथ पश्चिमी वायु कमान के प्रमुख एयर मार्शल जीतेंद्र मिश्रा भी मौजूद थे।
एलएसी से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित न्योमा में 230 करोड़ रुपये की लागत से अपग्रेडेशन का काम किया गया है। इसमें मूल हवाई पट्टी को 2.7 किलोमीटर लंबे ‘रिगिड पेवमेंट’ रनवे में विस्तारित करना, एक नया एटीसी कॉम्प्लेक्स, हैंगर, क्रैश बे और आवास बनाना शामिल है।
मुध हवाई अड्डा अब दोनों दिशाओं से भारी मालवाहक परिवहन विमानों और लड़ाकू विमानों के संचालन को संभालने और बनाए रखने में पूरी तरह सक्षम है। मुख्य रूप से यह पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो, डेमचोक और देपसांग जैसे क्षेत्रों में सैनिकों, हथियारों और रसद को तेजी से पहुँचाने में मदद करेगा। यह हवाई अड्डा 2026 की शुरुआत तक लड़ाकू अभियानों के लिए भी उपलब्ध होगा।
चीन ने भी कई हवाई अड्डे और हेलीपोर्ट किए तैयार
चीन ने पिछले पाँच वर्षों में भारत के पास स्थित अपने सभी हवाई अड्डों को उच्च ऊँचाई और दुर्लभ वायु क्षेत्र के कारण होने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए काफी काम किया है।
चीन के पास अब उन्नत जे-20 स्टील्थ लड़ाकू विमानों सहित अतिरिक्त लड़ाकू विमान, बमवर्षक, टोही विमान और ड्रोन हैं, जिन्हें होटन, काश्गर, गर्गुंसा, शिगात्से, बांगडा, न्यिंगची और होपिंग जैसे उसके हवाई अड्डों पर तैनात किया गया है। उसने एलएसी पर कई नए हेलीपोर्ट भी बनाए हैं।
भारत का ‘पूर्वी प्रचंड प्रहार’ अभ्यास भी जारी
दूसरी ओर पूर्वी हिमालय के सुदूर क्षेत्रों में भारतीय सेना की 3 स्पीयर कोर के हजारों सैनिक, भारतीय वायुसेना, आईटीबीपी और अन्य के साथ, अब मेचुका और अरुणाचल प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के उच्च ऊंचाई वाले इलाकों में ‘पूर्वी प्रचंड प्रहार’ अभ्यास में लगे हुए हैं।
हवाई परिवहन और फोर्स प्रोजेक्शन से लेकर पर्वतीय युद्धाभ्यास और बहु-क्षेत्रीय एकीकृत अभियानों तक, इस अभ्यास का उद्देश्य तीव्र गतिशीलता, परिचालन रसद और सटीक प्रहार क्षमताओं का टेस्ट करना है। एक अधिकारी ने कहा, ‘संघर्ष के दौरान सही बल को सही समय पर सही जगह पहुँचना चाहिए।’
बहरहाल, लेह, कारगिल और थोईस हवाई अड्डों और दौलत बेग ओल्डी ALG (एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड) के बाद न्योमा लद्दाख में भारतीय वायुसेना का एक और परिचालन अड्डा होगा। भारत ने अरुणाचल प्रदेश में पासीघाट, मेचुका, वालोंग, टूटिंग, अलोंग और जीरो जैसे एएलजी में भी बुनियादी ढाँचे को उन्नत किया है। इसी प्रकार LAC के मध्य क्षेत्र (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश) में सिविल एएलजी का भी अब सैन्य उद्देश्यों के लिए तेजी से उपयोग किया जा रहा है।

