नई दिल्लीः केंद्र सरकार अब उस जनगणना की तैयारी में है, जो 2021 में कोविड-19 के चलते रुक गई थी। लेकिन इस बार की जनगणना सिर्फ आंकड़े नहीं जुटाएगी; इसका असर दो अहम मुद्दों पर पड़ेगा—पहला, दशकों से लंबित संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन और दूसरा, संसद में महिलाओं के लिए आरक्षण का क्रियान्वयन। आधिकारिक घोषणा अभी बाकी है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अगले साल से यह प्रक्रिया शुरू हो सकती है, जो भारत के संवैधानिक और राजनीतिक परिदृश्य को नया मोड़ देगी।
हर दशक की शुरुआत में होती है जनगणना
1881 से लेकर अब तक भारत की जनगणना हर दशक की शुरुआत में होती आई है, लेकिन 2021 में पहली बार यह प्रक्रिया तय समय पर नहीं हो सकी। महामारी का असर 2022 तक खत्म हो चुका था, जिससे जनगणना 2023 या 2024 में शुरू की जा सकती थी। ऐसा माना जा रहा है कि सरकार ने जनगणना की शुरुआत जानबूझकर विलंबित की ताकि परिसीमन या संसदीय क्षेत्रों के पुनर्गठन का कार्य जनगणना के तुरंत बाद किया जा सके।
परिसीमन का पहलू
परिसीमन एक संवैधानिक अनिवार्यता है, जो हर जनगणना के बाद किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में संसद और राज्य विधानसभाओं की सीटों की संख्या को नई जनसंख्या के अनुसार समायोजित किया जाता है ताकि प्रत्येक सांसद या विधायक द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए लोगों की संख्या समान रहे। हालांकि, 1976 से इस प्रक्रिया को राजनीतिक सहमति के अभाव में रोक दिया गया है।
परिसीमन की सामान्य प्रक्रिया के अनुसार विभिन्न राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दरों में भिन्नता के कारण कुछ राज्यों की संसदीय सीटें घट सकती हैं जबकि कुछ में वृद्धि हो सकती है। दक्षिणी राज्यों का तर्क है कि जनसंख्या नियंत्रण के लक्ष्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के कारण उनकी सीटों में कटौती करना उनके साथ अन्याय होगा।
परिसीमन का तय कार्यक्रम
भारत में जनगणना की प्रक्रिया दो चरणों में होती है। पहले चरण में घरों की सूची बनाना और उन्हें नंबर देना शामिल है, और दूसरे चरण में जनसंख्या की गणना की जाती है। घरों की सूची बनाना और नंबर देना जनगणना वर्ष से एक साल पहले, आमतौर पर अप्रैल से सितंबर के बीच किया जाता है। जनसंख्या गणना जनगणना वर्ष के फरवरी महीने के दूसरे और चौथे सप्ताह के बीच होती है।
जनगणना के दौरान एकत्र किए गए आंकड़े 1 मार्च की मध्यरात्रि तक भारत की जनसंख्या को दर्शाते हैं। फरवरी के दौरान गणना अवधि में होने वाले जन्म और मृत्यु को ध्यान में रखते हुए, गणनाकर्ता मार्च के पहले सप्ताह में घरों का पुनः दौरा करते हैं और संशोधन करते हैं। जनगणना के प्राथमिक परिणाम, विशेष रूप से जनसंख्या के कुल आंकड़े, कुछ महीनों के भीतर जारी किए जाते हैं, जो आमतौर पर उसी वर्ष में होते हैं जब जनगणना की जाती है। पूर्ण परिणामों को आने में एक से दो वर्ष का समय लगता है।
दिलचस्प बात यह है कि अगर जनगणना 2025 में शुरू होती है और 2026 में पूरी होती है, तो तत्काल परिसीमन नहीं हो पाएगा। 84वें संविधान संशोधन के अनुसार, परिसीमन केवल 2026 के बाद की पहली जनगणना के आंकड़ों पर ही किया जा सकता है।
इसका मतलब है कि जनगणना के जनसंख्या गणना वाले भाग को 2026 के बाद ही किया जाना चाहिए। इसलिए, यदि अगले साल से जनगणना शुरू होती है और सरकार इसके बाद परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करना चाहती है, ताकि 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले यह पूरा हो सके, तो मौजूदा प्रावधान में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है।
हालांकि, परिसीमन को लागू करने में संवैधानिक प्रावधानों से ज्यादा राजनीतिक असहमतियाँ चुनौतीपूर्ण हैं। परिसीमन की प्रक्रिया पिछले कई दशकों से राजनीतिक दलों के बीच मतभेदों के कारण निलंबित है। विशेषकर दक्षिणी राज्य, जिनकी संसद में सीटें जनसंख्या के आधार पर कम हो सकती हैं, परिसीमन को स्थगित करने की मांग कर सकते हैं। इसे टालने के लिए इन्हें किसी और प्रकार से संतुलन या मुआवजा दिया जा सकता है।
इसके अलावा, 16वें वित्त आयोग की सिफारिशें भी यहाँ अहम भूमिका निभा सकती हैं। यह आयोग हर पांच साल में केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण की सिफारिश करता है और अपनी रिपोर्ट अगले वर्ष के अंत तक प्रस्तुत करेगा।
संसद ने पिछले साल 128वें संविधान संशोधन को मंजूरी दी थी, जिसमें लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। लेकिन यह प्रावधान परिसीमन प्रक्रिया के बाद ही लागू हो पाएगा, जब लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों का पुनर्गठन किया जाएगा।
जाति जनगणना की मांग
यह संभावना है कि आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े भी एकत्र किए जा सकते हैं, जिससे जाति आधारित अलग से जनगणना की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। आजादी के बाद अब तक केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आंकड़े ही एकत्र किए गए हैं। इससे पहले, 1941 तक की जनगणनाओं में जातिगत जानकारी भी एकत्र की जाती थी, लेकिन स्वतंत्रता के बाद इस प्रथा को बंद कर दिया गया। ऐसे में आगामी जनगणना न केवल जनसंख्या संबंधी आँकड़े जुटाने में सहायक होगी, बल्कि संवैधानिक और राजनीतिक परिवर्तनों की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।