नई दिल्ली: हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए चौंकाने वाले रहे हैं। साल 2014 से राज्य में कांग्रेस सत्ता से बाहर है और इस बार उसे पूरी उम्मीद थी कि वो भारतीय जनता पार्टी को पटखनी देने में कामयाब रहेगी। विधानसभा चुनाव से पहले से ही ऐसी बातें कही जा रही थी। राजनीतिक विश्लेषक भी इसे मान रहे थे। यही नहीं, देश भर के तमाम मीडिया चैनल और सर्वे एजेंसियों तक ने अपने एग्जिट पोल में कांग्रेस के सिर पर जीत का सेहरा बांध दिया। हालांकि, मंगलवार को आए नतीजों ने कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
वोटों की गिनती मंगलवार सुबह 8 बजे शुरू हुई और शुरुआती घंटे में कांग्रेस रुझानों में जिस तरह से आगे बढ़ती नजर आई, कार्यकर्ताओं में जश्न का सिलसिला तक शुरू हो गया था। दिल्ली में कांग्रेस के मुख्यालय में जलेबी और ढोल नजर आने लगे थे लेकिन अगले कुछ मिनटों बाद जब तस्वीर और साफ हुई तो कांग्रेस के जश्न की तैयारी धरी की धरी रह गई।
भाजपा लगातार तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाने जा रही है। सबसे खास बात ये कि उसका प्रदर्शन पिछली बार से और बेहतर है। सवाल है कि आखिर कांग्रेस की इस हार और भाजपा की जीत के पीछे की क्या वजहें हैं? आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं…
1. कांग्रेस के भीतर की कलह: पार्टी ने 2019 के चुनाव में 31 सीटें जीती थी। इस लिहाज से देखें तो इस बार भी उसके प्रदर्शन कोई बहुत बड़ा सुधार नहीं हुआ है और ये लगभग पिछली बार की ही तरह है। हवा में कांग्रेसी के स्थानीय नेता भले ही अपने पक्ष में माहौल बनता दिखाने में कामयाब रहे लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और थी। खुद को जमीन का नेता बताने वाले हरियाणा कांग्रेस के कद्दावर नेता भी शायद इसे भांपने में नाकाम रहे। कांग्रेस में कुर्सी पर बैठने के लिए लगी होड़ और अंदरूनी कलह भी पार्टी की नाव डूबने की एक अहम वजह हो सकती है।
चुनाव जब काफी दूर था, उससे पहले से ही कांग्रेसी नेता ऐसा माहौल बनाने में कामयाब हो गए थे कि जैसे पार्टी ने चुनाव जीत लिया हो और ‘कुर्सी पर कौन बैठेगा’…इसे लेकर खींचतान नजर आने लगी थी। कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा और वरिष्ठ नेता कुमारी शैलजा के बीच सत्ता संघर्ष खुलकर दिखा। अन्य नेताओं को दरकिनार कर हुड्डा को जिस तरह उम्मीदवारों के चयन और गठबंधन पर फैसला लेने के लिए खुली छूट मिली…ये संभवत: उसका भी परिणाम हो सकता है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हरियाणा के 10 में से 5 सीटों पर इस बार जीत दर्ज की थी। इससे भी कांग्रेस का अति-आत्मविश्वास आसमान पर था।
2. क्षेत्रीय ताकतों, निर्दलियों ने खेल कर दिया: कांग्रेस वोट-शेयर में भाजपा से थोड़ी आगे है, लेकिन रुझानों से पता चलता है कि वह इसे सीटों में बदलने में बहुत सफल नहीं रही है। कई सीटों पर अंतर बहुत कम है, जो दर्शाता है कि क्षेत्रीय दलों और निर्दलियों ने हरियाणा में सत्ता विरोधी वोटों में सेंध लगा ली, जिससे भाजपा को फायदा हुआ। हालाँकि, क्षेत्रीय दल इस चुनाव में स्कोर करने में विफल रहे। फिलहाल इनेलो और बसपा एक-एक सीट पर आगे हैं और चार निर्दलीय आगे हैं।
दोपहर 1.50 बजे तक के आंकड़ों के अनुसार कांग्रेस को 39.86 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं, भाजपा के खाते में 39.62 प्रतिशत वोट हैं। कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में 28.08 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। ऐसे ही भाजपा को 40 सीटें मिली थी और उसका वोट प्रतिशत तब 36.49 प्रतिशत था। साफ दिखता है कि क्षेत्रीय पार्टियों को हुए नुकसान का फायदा कांग्रेस और भाजपा को हुआ है। पिछली बार दुष्यंत चौटाला की जननायक पार्टी 14.84 प्रतिशत वोट के साथ 10 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। इस बार इस पार्टी का वोट शेयर महज 0.91 प्रतिशत (दोपहर 2 बजे तक) है। लेकिन निर्दलियों को देखें तो इनके पास 11.16 प्रतिशत वोट आया है।
3. जाट-विरोधी वोटों ने हराया: हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस ने जाट वोटों पर खूब ध्यान दिया। माना जा रहा है कि इससे जाहिर तौर पर भाजपा के पक्ष में गैर-जाट वोटों का एकीकरण हुआ। कांग्रेस को जीत की उम्मीद शायद प्रभावशाली जाट समुदाय की उनकी ओर संभावित वापसी के इशारे को देखते हुए जगी होगी। दूसरी ओर इसके बजाय, ऐसा लगता है कि अन्य समुदायों ने सत्तारूढ़ दल के पक्ष में एकजुट होकर भारी मतदान किया है।
4. भाजपा की संगठित चुनावी मशीनरी: चुनाव विश्लेषकों ने हरियाणा में भाजपा की वापसी की संभावना को नकार दिया था, लेकिन लगता है कि जमीन पर चुपचाप किए गए काम ने माहौल सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में कर दिया। केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता धर्मेंद्र प्रधान को इस कठिन चुनाव के लिए पार्टी के अभियान की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। बीजेपी की संगठित चुनावी मशीनरी ने एक बार फिर कांग्रेस के जबड़े से जीत छीन ली। पिछले एक दशक में भाजपा को हरियाणा के शहरी क्षेत्रों, जैसे गुड़गांव और फरीदाबाद में मजबूत समर्थन प्राप्त हुआ है। कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह ग्रामीण इलाकों में जीत हासिल करेगी, लेकिन जैसा वो चाहती थी, ऐसा होता नहीं दिख रहा है। गुड़गांव, फरीदाबाद और बल्लभगढ़ में बीजेपी फिलहाल आगे चल रही है।
5. कांग्रेस मजबूत गठबंधन तैयार नहीं कर सकी: कांग्रेस हरियाणा सत्तारूढ़ भाजपा विरोधी वोटों को एकजुट करने के लिए एक मजबूत गठबंधन बनाने में नाकाम रही और हार की वजहों में इसे भी गिना जा सकता है। चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन की खूब चर्चाएं हुई। दोनों पार्टियां लोकसभा चुनाव के लिए साथ आई थी लेकिन हरियाणी में रास्ते अलग रहे। इसके अलावा जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) जैसे क्षेत्रीय दलों से गठजोड़ भी संभवत: कांग्रेस की राह आसान कर सकता था। विपक्ष के छोटे-छोटे अलग गठबंधन बने। इससे भाजपा की राह आसान हो गई।
(स्टोरी अपडेट की जा रही है….)